अमरीका-ईरान लड़ाई में पिसेगा भारत

Thursday, May 10, 2018 - 10:04 AM (IST)

 तेहरानः परमाणु डील को लेकर छिड़ी अमरीका और ईरान की लड़ाई का खमियाजा भारत को भुगतना पड़ेगा। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से ईरान परमाणु डील को रद्द किया है उसमें भारत का पिसना लाजिमी है। भारत ने पिछले 3 वर्षो में ईरान के साथ आर्थिक व कूटनीतिक रिश्तों को लेकर काफी कुछ दांव पर लगा रखा है। चाहे देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना हो या अफगानिस्तान में पाकिस्तान की साजिशों से निपटना या चीन की वन बेल्ट वन रोड (OBOR) योजना के मुकाबले अपनी कनेक्टिविटी परियोजना लागू करना हो, हर जगह भारत को ईरान की मदद की जरूरत है। ऐसे में अमरीकी प्रतिबंध से अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मचती है तो उसका दंश भारत को भी झेलना पड़ेगा।

 ट्रंप के फैसले से भारत नाखुश
ट्रंप के फैसले पर भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में संकेत दिया है कि वह ईरान पर जबरदस्ती के खिलाफ है।  भारत का मानना है कि ईरान के परमाणु मुद्दे का समाधान बातचीत व कूटनीति से होनी चाहिए। इसमें  परमाणु के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के ईरान के अधिकार का आदर होना चाहिए और साथ ही उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की शंकाओं का निदान भी होना चाहिए। इसका साफ मतलब है कि भारत को अमरीकी राष्ट्रपति का फैसला मंजूर नहीं है।


भारत को आएंगी ये दिक्कतें  
 भारत को तेल आपूर्ति करने वाला ईरान एक बड़ा देश है। सउदी अरब और ईराक के बाद भारत सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही खरीदता है। अप्रैल, 2017 से जनवरी, 2018 के बीच भारत ने ईरान से 1.84 टन कच्चा तेल खरीद चुका है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसे और बढ़ाने की तैयारी है। अमरीकी प्रतिबंधों से इस पर असर होगा। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि अगर यूरोपीय देश अमरीकी दबाव में आ जाते हैं तो भारत के लिए ईरान से तेल खरीदने में दिक्कत होगी।  अमरीका ने   कहा है कि वह यूरोपीय व एशियाई देशों पर दबाव बनाएगा कि वे ईरान से क्रूड नहीं खरीदे। क्रूड की कीमतों में तेजी से भी भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।

चाबहार पर पड़ेगा असर  
अमेरिकी प्रतिबंध का भारत के लिए दूसरा बड़ा असर चाबहार बंदरगाह के निर्माण के तौर पर हो सकता है। भारत इसका पहला बर्थ बना चुका है और इसका संचालन भी भारतीय कंपनी को सौंप दिया गया है। भारत ने अफगानिस्तान को इस रास्ते गेहूं का निर्यात किया है। भारत इस बंदरगाह के जरिए मध्य एशियाई देशों के बाजार में अपने उत्पाद तेजी से पहुंचाने की मंशा रखता है। भारत चाबहार में 2 लाख करोड़ रुपए के निवेश से एक औद्योगिक पार्क भी बनाने का प्रस्ताव ईरान के समक्ष रख चुका है।
चाबहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसके जरिए भारत अफगानिस्तान में पाकिस्तान को बेअसर करना चाहता है। लेकिन अमरीकी प्रतिबंध की वजह से भारतीय कंपनियों के लिए चाबहार परियोजना के लिए फंड जुटाने में मुश्किल हो सकती है।

बढ़ेगी कूटनीतिक चुनौती  
हाल के वर्षो में राजग सरकार ने ईरान, सउदी अरब और इसराईल तीनों के साथ एक समान तौर पर रिश्तों को मजबूत करने की कवायद शुरु की थी। अब जबकि सउदी अरब और इसराईल अमरीकी प्रतिबंध के पक्ष में है तो भारतीय कूटनीति के लिए आने वाले वक्त में इन देशों के साथ सामंजस्य बनाना काफी मुश्किल हो सकती है। हालात भारतीय विदेश नीति के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। पाकिस्तान पर अमरीकी दबाव में भी कमी हो सकती है।

 
 

Tanuja

Advertising