मौत के 5 साल बाद पिता बनेगा यह शख्स, दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, वजह कर देगी आपको हैरान
punjabkesari.in Saturday, Oct 05, 2024 - 05:04 PM (IST)
नेशनल डेस्क: दिल्ली हाईकोर्ट ने सरोगेसी को लेकर एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक मृत व्यक्ति के फ्रीज किए गए शुक्राणुओं को उसके माता-पिता को सौंपने का आदेश दिया है, ताकि वे सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा कर सकें। यह मामला लगभग पांच साल पुराना है और इसमें कई संवेदनशील मुद्दे जुड़े हुए हैं।
बेटे के वंश को आगे बढ़ाने की ठानी
यह मामला उस समय का है जब एक युवा व्यक्ति ने कैंसर से जूझते हुए अपने जीवन का संघर्ष किया और 2018 में अपनी जान गंवाई। उसके माता-पिता के लिए यह एक कठिन समय था, लेकिन उन्होंने अपने बेटे के वंश को आगे बढ़ाने की ठानी। उन्होंने सर गंगाराम हॉस्पिटल में जाकर अपने बेटे के फ्रीज किए गए शुक्राणुओं को लेने की कोशिश की, लेकिन अस्पताल ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि उनके पास इसे रिलीज करने का कोई सरकारी आदेश नहीं है।
स्पर्म को फ्रीज करने की अनुमति दी
अस्पताल से निराश होकर, मृतक के माता-पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें अनुरोध किया गया कि उनके बेटे के फ्रीज किए गए शुक्राणुओं को रिलीज किया जाए। उनका मानना था कि इस प्रक्रिया से वे अपने बेटे का वंश आगे बढ़ा सकेंगे। उनकी याचिका में यह भी कहा गया कि यदि उनके बेटे ने जीवित रहते हुए स्पर्म को फ्रीज करने की अनुमति दी थी, तो यह प्राकृतिक है कि वे अब इसका उपयोग करना चाहेंगे।
बच्चों के वंश को आगे बढ़ाने का अधिकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यदि स्पर्म या एग के मालिक की सहमति मिल जाए, तो उसकी मौत के बाद भी बच्चा पैदा करने पर कोई रोक नहीं है। न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि परिवार के सदस्य, विशेष रूप से माता-पिता, अपने बच्चों के वंश को आगे बढ़ाने का अधिकार रखते हैं। कोर्ट ने मृतक के पिता की अपील को गंभीरता से लिया और स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह अस्पताल से फ्रीज किए गए शुक्राणुओं को रिलीज करने के मामले में उचित कदम उठाए।
स्पर्म को रिलीज न करने को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं
हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर सर गंगाराम हॉस्पिटल और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। अस्पताल ने पहले कहा था कि उसे स्पर्म रिलीज करने के लिए कोई सरकारी आदेश नहीं मिला है। कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जमे हुए स्पर्म को रिलीज न करने को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है। इसके साथ ही, कोर्ट ने कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की गाइडलाइंस और सरोगेसी अधिनियम इस मुद्दे पर चुप हैं, इसलिए सरकार का इस मामले में दृष्टिकोण बेहद महत्वपूर्ण है।
कानून और समाज को भी विकसित होने की आवश्यकता
इस फैसले ने कई सामाजिक और कानूनी सवाल उठाए हैं। क्या एक मृत व्यक्ति के शुक्राणुओं का उपयोग किया जा सकता है? क्या इस प्रक्रिया से परिवार की भावनात्मक स्थिति को ध्यान में रखा जा सकता है? कोर्ट के निर्णय ने यह साबित कर दिया है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ कानून और समाज को भी विकसित होने की आवश्यकता है। यह फैसला ऐसे परिवारों के लिए एक उम्मीद की किरण हो सकता है जो सरोगेसी के माध्यम से अपने प्रियजनों की याद में नया जीवन लाना चाहते हैं।
साथ ही, यह स्पष्ट करता है कि जीवन और मृत्यु के बाद भी एक व्यक्ति का वंश कैसे आगे बढ़ सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल मृतक के माता-पिता के लिए, बल्कि समाज में सरोगेसी और उसके कानूनी पहलुओं पर व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। यह मामला परिवार, वंश, और तकनीकी प्रगति के जटिल रिश्तों को उजागर करता है। ऐसे मामलों के लिए स्पष्ट कानूनी ढांचे की आवश्यकता अब अधिक महसूस की जा रही है, जिससे भविष्य में इस तरह की स्थिति में बेहतर निर्णय लिया जा सके।