वह गवर्नर जिसने राजभवन को बना डाला ''खेत''
Sunday, Jul 07, 2019 - 12:43 PM (IST)
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): यह महज संयोग ही था। हम कई दिन से राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मुलाकात करना चाह रहे थे उनके जीरो बजट या प्राकृतिक खेती के प्रकल्प को लेकर। और संयोग देखिये कि जिस दिन मुलाकात तय हुई उसी दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में किसानों की आय दोगुना करने के लिए उसी जीरो बजट खेती को अपनाने की बात की जिसे आचार्य देवव्रत बरसों से न सिर्फ खुद कर रहे हैं बल्कि तीन साल में उन्होंने इसे हिमाचल में भी शुरू कर रखा है। हम जब कैमरा और लाइट्स लगाकर उनका इंतज़ार कर रह थे महामहिम तब भी खेत से ही लौट रहे थे। गाड़ी से उतरकर जब वे इंटरव्यू के लिए हमारे सामने बैठे तो उनके हाथ में दो बड़े बड़े टमाटर थे।
आचार्य देवव्रत ने उत्साह के साथ से हमें बताया कि देखिये इन टमाटरों को कितने स्वस्थ हैं, और इनकी शेल्फ लाइफ भी ज्यादा है। जब हमने उन्हें बताया कि इस बीच जब वे खेत में थे तब केंद्र सरकार ने उनके प्रकल्प को बजट में शामिल कर लिया है, तो उनके चेहरे पर असीम संतोष साफ़ देखा जा सकता था। लेकिन वे अति उत्साहित नहीं दिखे और न ही दिखना चाहते हैं। उनके मुताबिक उन्हें विश्वास था कि जनता इस और लौटेगी ही। सरकार ने जनता से पहले ध्यान दिया यह और बेहतर है क्योंकि इससे जीरो बजट खेती को बढ़ाने में जो दिक्कतें आ रही थीं वे दूर होंगी। राज्यपाल देवव्रत ने हिमाचल को 2022 तक पूर्णतया जीरो बजट खेती वाला राज्य बनाने का लक्ष्य रखा है। पिछले साल उन्होंने तीन हज़ार किसानों को इसके साथ जोड़ा था। इस साल टारगेट 50 हज़ार का है।
आखिर है क्या यह जीरो बजट खेती
आचार्य देवव्रत बताते हैं कि जब हम जीरो बजट खेती की बात करते हैं तो ऐसी खेती की बात करते हैं जिसके लिए किसान को क़र्ज़ न लेना पड़े। यह तो सम्भव ही नहीं की कोई लागत न हो। लेकिन यह न्यूनतम हो यह इस खेती की विशेषता है। यह खेती गोवंश पर आधारित है। इसमें किसी कीटनाशक, रसायन या उर्वरक के बजाये गोमूत्र और गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए एक गाय की जरूरत है। तीस एकड़ भूमि पर एक देसी गाय से खेती की जा सकती है। अब अगर शुरू ही करना है तो फिर तो गाय खरीदनी ही पड़ेगी, लेकिन अगर घर में पहले से है तो कोई लागत नहीं है। गाय के गोबर और गोमूत्र से कीटनाशक और कम्पोस्ट खाद बनाई जाती है। इससे उत्पादन ज्यादा मिलता है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। बिना रसायनों वाला उत्पाद होगा तो दाम बेहतर मिलेंगे और उत्पादन लागत न्यूनतम /शून्य के बराबर होगी तो भी लाभ होगा इस तरह से किसान की आय दोगुनी हो जाएगी। यही नहीं मृदा संरक्षण तीसरा लाभ है और चौथा और सबसे बड़ा लाभ यह कि ऐसे उत्पाद खाने से बीमारियां नहीं होंगी। बिना शक असाध्य रोगों के पीछे रसायनयुक्त भोज्य पदार्थ मुख्य कारण हैं। जब उत्पाद विशुद्ध रूप से जैविक होंगे तो अस्पताल जाने की नौबत नहीं आएगी। यानी यहां भी लाभ। ऊपर से जो गौवंश सड़कों पर परित्यक्तावस्था में घूम रहा है उसका भी संरक्षण/संवर्धन हो जायेगा।
खुद भी करते हैं प्राकृतिक खेती
आईडिया कहाँ से आया ? इसके जवाब में आचार्य देवव्रत बताते हैं कि वे हरियाणा में गुरुकल चलाते थे (अभी भी चलाते हैं ) उसकी भूमि पर वे इसी तरीके से खेती करते रहे हैं। न तो उन्होंने महंगी खाद और कीटनाशक डाले और न ही उनके पास इतने संसाधन थे। जब वे राज्यपाल बने तो उन्होंने इस प्रकल्प पर काम शुरू किया। पचास किसानो को आकर्षित करने का लक्ष्य था लेकिन पहली ही कार्यशाला में पांच सौ किसान आने से उनको हौसला मिला। अब वे कृषि और औद्यानिकी विश्वविधालयों के मार्फत लगातार ऐसी कार्यशालाएं लगा रहे हैं। पिछले दो वर्ष में कई किसानों ने इस खेती को सफलता से अंजाम दिया है और लाभ कमा रहे हैं। जाहिर है अब उस लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ा जा रहा है जब 2022 में हिमाचल देश का पहला प्राकृतिक /जीरो बजट फार्मिंग प्रदेश बन जायेगा।
प्रयोगधर्मी हैं आचार्य देवव्रत
आचार्य देवव्रत वास्तव में अन्य राज्यपालों से हटकर हैं। पहले ही दिन उन्होंने शिमला के राजभवन से मधुशाला हटवा दी थी और यञशाला स्थापित करवाई। राज भवन के समारोहों में मांसाहार परोसने पर पाबन्दी लगाई फिर उन्होंने बिजली की फ़िज़ूल खर्ची पर लगामलगाई। सौर ऊर्जा के अधिकाधिक प्रयोग और बिना बात बिजली जलाये रखने की समस्या पर ध्यान केंद्रित किया। नतीजा दो साल में राजभवन में दस लाख का बिजली खर्च बचाया जा चुका है।
जलसंकट दूर करने पर भी फोकस
आचार्य देवव्रत प्रदेश में जल संकट दूर करने पर भी फोकस किये हुए हैं। उनके आग्रह पर दो बार प्रोफेसर राजेंद्र सिंह प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। नदी जल प्रबंधन के अतिरिक्त भू-जल संरक्षण पर भी बड़ी प्लानिंग हो रही है जिसके नतीजे आने वाले बरसों में सुखद रूप में देखने को मिलेंगे।