क्या ऐसे होगा टीबी मुक्त भारत?
punjabkesari.in Saturday, Mar 24, 2018 - 12:23 PM (IST)

जीटीबी नगर (अनुराग जैन): टीबी मुक्त भारत का सपना साकार होता दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार चाहती है कि देश को 2025 तक टीबी मुक्त कर दिया जाए, लेकिन टीबी अस्पतालों के हालात देखकर ऐसा नहीं लगता? पंजाब केसरी की पड़ताल में सामने आया है कि एशिया के सबसे बड़े राजन बाबू टीबी अस्पताल में एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट) पेशेंट को भर्ती करने के लिए बिस्तर तक खाली नहीं है।
मरीजों को दूसरे अस्पताल में किया जा रहा है रेफर
अस्पताल में बने सभी एमडीआर वार्ड पूरी तरीके से फुल हो चुके हैं। ऐसे में एमडीआर मरीजों को दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया जा रहा है या फिर अन्य किसी वार्ड में शिफ्ट कर दिया जा रहा है। जबकि नियम के मुताबिक एमडीआर पेशेंट को किसी अन्य वार्ड में भर्ती करना खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि यह बिगड़ी हुई और गंभीर टीबी मानी जाती है। इस बीमारी का इलाज डॉक्टरों की देखरेख में 24 से 27 माह तक चलता है। दरअसल, टीबी अस्पताल में एमडीआर पेशेंट के लिए कुल चार वार्ड है, दो महिलाओं के लिए दो पुरुषों के लिए। इन चारों वार्डों में करीब 100 बिस्तर लगे हुए हैं। उधर, इस मामले में डीएचए अरुण यादव का कहना है कि इस मामले में मुझे कोई जानकारी नहीं है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक इस मामले में सही जानकारी दे पाएंगे। उधर इस मामले पर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक सुशील गुप्ता का कहना है कि अगर ऐसा है तो मैं शनिवार को अस्पताल में जाकर इस मामले को चेक कराऊंगा।
अन्य मरीजों को हो सकता हैं खतरा
एमडीआर का खतरा अन्य मरीजों को भी हो सकता है। टीबी के वह रोगी जो एचआईवी से पीड़ित हैं, जिन्हें फिर से टीबी रोग हुआ हो, टीबी की दवा लेने पर भी बलगम में इस रोग के कीटाणु आ रहे हैं या टीबी से प्रभावित वह मरीज जो एमडीआर टीबी रोगी के संपर्क में रहा है, उसे एमडीआर टीबी का खतरा हो सकता है।
लिफ्ट पड़ी हैं खराब
टीबी अस्पताल में असुविधाओं की भरमार है। मेल वार्ड 10-14 की लिफ्ट काफी समय से खराब पड़ी हुई है। ऐसे में तिमारदारों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर से बुजुर्गों और दिव्यांगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। केवल इतना ही नहीं अस्पताल की इमारत भी काफी जर्जर हो चुकी है। जगह-जगह लेंटर के सरिये दिखाई देने लगे हैं। बावजूद उसके अस्पताल प्रशासन ने चुप्पी साधी हुई है।