ऑफ द रिकॉर्ड: विपक्षी दलों की संयुक्त रैली में रोड़ा बनी सर्जिकल स्ट्राइक

punjabkesari.in Tuesday, Mar 05, 2019 - 06:06 AM (IST)

नेशनल डेस्क: 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक 21 विपक्षी दलों की संयुक्त रैली आयोजित करने की योजना में रोड़ा बन गई है। चाहे वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू हों या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल या फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार ही क्यों न हों, सभी दलों के नेता संयुक्त रैली के मामले में बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। 
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नायडू ने तो 2 महीने पहले पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा आयोजित रैली के मंच से ही अमरावती में ठीक इसी प्रकार का मैगा शो आयोजित करने की घोषणा भी कर दी थी लेकिन उनकी यह योजना भी कहीं दफन हो गई है। चुनाव नजदीक आते ही सभी दल एक-दूसरे के खिलाफ तैयारी में जुट गए हैं और ऐसे हालात में एक साथ मंच सांझा करने को लेकर आरामदायक स्थिति में नहीं हैं।
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विपक्षी दलों के नेताओं ने दिल्ली में मुलाकात कर मोदी सरकार के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण करने को लेकर प्रस्ताव पारित किया था लेकिन बैठक में सभी प्रमुख राज्यों में संयुक्त रैली को लेकर किसी भी योजना पर सहमति नहीं बनी। संयुक्त मैगा रैलियां आयोजित कर भारतीय जनता पार्टी को विपक्षी दलों के समूहीकरण का मजाक उड़ाने का मौका देने की बजाय 21 दलों के ढीले गठबंधन के लिए द्विपक्षीय या संयुक्त ब्रेनस्टॉर्मिंग सैशन्स आयोजित करना बेहतर विकल्प होगा। संयुक्त रैलियां आयोजित करने के लिए उनके पास शायद ही समय होगा। 
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भाजपा द्वारा पश्चिम बंगाल में मुस्लिम तुष्टीकरण की तृणमूल कांग्रेस की नीति के खिलाफ जोरदार आक्रमण करने से आने वाले संकट को ध्यान में रखते हुए ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए आतुर नजर आ रही हैं। वह यह भी महसूस कर रही हैं कि चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं होने की स्थिति में लोकसभा चुनाव के बाद समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि ऐसे में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर राष्ट्रपति अपनी इच्छा से किसी भी गठबंधन को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए बुला सकते हैं। पिछले कुछ दिनों में तेज रफ्तार घोड़े पर सवार नजर आ रही कांग्रेस की गति भी धीमी पड़ गई है। 
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कांग्रेस महसूस कर रही है कि भले ही भाजपा ने देर से ही जमीनी पकड़ हासिल की है लेकिन एकला चलो (अकेले चलना) की नीति कांग्रेस को ज्यादा नुक्सान पहुंचा सकती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी राहुल गांधी के लिए समस्या बने हुए हैं। उदाहरण के तौर पर शीला दीक्षित दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर हाईकमान की एक नहीं सुन रही हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में पार्टी के आधार खोने के बावजूद स्थानीय कांग्रेस इकाई अब भी पूरी तरह से विभाजित है।
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Pardeep

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