SC का सवाल, क्या एक बलात्कार की कीमत 6500 है?

punjabkesari.in Thursday, Feb 15, 2018 - 05:48 PM (IST)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार के मामलों के प्रति मध्य प्रदेश सरकार के रवैये पर हैरानी जाहिर करते हुए आज सवाल किया, ‘‘क्या एक बलात्कार की कीमत 6500 है? न्यायालय ने राज्य सरकार से सवाल किया कि यौन उत्पीडऩ के पीड़ितों को इतनी कम राशि देकर क्या आप ‘‘खैरात’’ बांट रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हतप्रभ है कि मध्य प्रदेश, जो निर्भया कोष योजना के तहत केंद्र से अधिकतम धन प्राप्त करने वाले राज्यों में है, प्रत्येक बलात्कार पीड़ित को सिर्फ 6000-6500 रूपए ही दे रहा है। दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को हुये सनसनीखेज सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड की हृदय विदारक घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिये सरकारों और गैर सरकारी संगठनों को आॢथक मदद देने के लिये केन्द्र ने 2013 में निर्भया कोष योजना की घोषणा की थी। न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार के हलफनामे का अवलोकन करते हुये कहा, ‘‘आप (मप्र) और आपके चार हलफनामों के अनुसार आप बलात्कार पीड़ित को औसतन छह हजार रूपए दे रहे हैं। आप की नजर में बलात्कार की कीमत 6500 रूपए है?’’ 

 पीठने अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सवाल किया, ‘‘मध्य प्रदेश के लिए यह बहुत ही अच्छा आंकड़ा है। मध्य प्रदेश में 1951 बलात्कार पीडित हैं और आप उनमें से प्रत्येक को 6000-6500 रूपए तक दे रहे हैं। क्या यह अच्छा है, सराहनीय है? यह सब क्या है? यह और कुछ नहीं सिर्फ संवदेनहीनता है।’’ पीठ ने कहा कि निर्भया कोष के अंतर्गत सबसे अधिक धन मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने 1951 बलात्कार पीड़ितों पर सिर्फ एक करोड़ रूपए ही खर्च किए हैं। हरियाणा सरकार को भी आज न्यायालय की नाराजगी का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने निर्भया कोष के बारे में विवरण के साथ अपना हलफनामा दाखिल नहीं किया था। शीर्ष अदालत ने पिछले महीने ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया था। उन्हें इसमें यह भी बताना था कि निर्भया कोष के अंतर्गत पीड़ितों के मुआवजे के लिये कितना धन मिला और कितनी पीड़ितों में कितनी राशि वितरित की गयी। कम से कम 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अभी भी अपने हलफनामे दायर करने हैं। 

सुनवाई के दौरान जब हरियाणा के वकील ने कहा कि वे अपना हलफनामा दाखिल करेंगे तो पीठ ने टिप्पाी की, ‘‘यदि आपने हलफनामा दाखिल नहीं किया है तो यह बहुत ही स्पष्ट संकेत है कि आप अपने राज्य मे महिलाओं की सुरक्षा के बारे में क्या महसूस करते हैं।’’ न्यायालय के निर्देश के बावजूद 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा हलफनामे दाखिल नहीं किये जाने पर टिप्पणी करते हुये पीठ ने कहा, ‘‘आप अपना समय लीजिए और अपने राज्य की महिलाओं को बताइये कि आपको उनकी परवाह नहीं है।’’ एक याचिकाकर्ता के वकील ने जब पीठ से कहा कि उन्हें अभी तक तक सिक्किम की ओर से ही एक हलफनामा मिला है तो पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या यह मजाक हो रहा है? यदि आपकी इस मामले में दिलचस्पी नहीं है तो हमसे कहिए। आप किस आधार पर कह रहे हैं कि सिर्फ एक राज्य ने ही हलफनामा दाखिल किया है। आप आफिस रिपोर्ट तक नहीं देखते हैं?

मेघालय के वकील ने कहा कि उन्होनें यौन उत्पीडऩ की 48 पीड़ितों को करीब 30.55 लाख रूपए दिए हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि लैंगिक न्याय के बारे में लंबी चौड़ी बातों, विचार विमर्श और मंशा जाहिर करने के बावजूद 24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने अपने हलफनामे दाखिल नहीं किये हैं। न्यायालय ने कहा कि यदि वे रंच मात्र भी महिलाओं की भलाई में दिलचस्पी रखते हैं तो चार सप्ताह के भीतर हलफनामे दाखिल करें। दिसंबर, 2012 की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर शीर्ष अदालत में कम से कम छह याचिकाएं दायर की गई हैं।  
 


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