स्पेशल चाइल्ड और तस्करी से बचाए गए युवा चला रहे ये अनोखा कैफे, 1200 बेसहारा बच्चों का भर रहे पेट
punjabkesari.in Monday, Nov 25, 2024 - 12:11 PM (IST)
नेशनल डेस्क. कोलकाता के पास दमदम में एक अनोखा कैफे खोला गया है, जिसे 'अपॉर्चुनिटी कैफे' कहा जाता है। यह कैफे दूसरे किसी भी कैफे से बिल्कुल अलग है, क्योंकि इसे चलाने वाले लोग भी खास हैं। यहां काम करने वाले 16 युवाओं में से 9 स्पेशल चाइल्ड हैं। 5 युवाओं को तस्करी से बचाया गया था और 2 युवाओं के माता-पिता सेक्स वर्कर्स हैं। ये सभी 22 से 33 साल की उम्र के युवा हैं और खाना बनाने, परोसने और बिलिंग जैसे सारे काम खुद करते हैं। इनकी कमाई से ही 1200 से ज्यादा बेसहारा बच्चों का भरण-पोषण होता है।
यह कैफे एक स्वयंसेवी संस्था 'रेस्क्यू एंड रिलीफ फाउंडेशन' ने खोला है। इस नॉन-प्रॉफिट कैफे को खोलने में 34 लाख रुपये का निवेश हुआ। इस संस्था के संस्थापक सिद्धांत घोष पेशे से वकील हैं। उन्होंने बताया कि 2013 में अपने पार्टनर सुमंत सिंघरॉय के साथ मिलकर इस संस्था की शुरुआत की थी। संस्था के तहत पश्चिम बंगाल में 8 चिल्ड्रन होम और कानपुर में 1 ओल्ड एज होम भी है, जहां देश भर से रेस्क्यू किए गए बच्चे आते हैं। इन बच्चों में कई स्पेशल चाइल्ड भी होते हैं, जब ये बच्चे 18 साल के हो जाते हैं, तो उन्हें चिल्ड्रन होम से बाहर भेज दिया जाता है। सामान्य बच्चों को तो काम मिल जाता है, लेकिन इन बच्चों को कोई काम नहीं देता। लोग कहते हैं कि इनसे कुछ नहीं हो सकता, लेकिन हम इन्हें स्किल्ड बनाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमसे सबकुछ हो सकता है।
इस कैफे के सफल होने के बाद अब सिद्धांत घोष और उनकी टीम दूसरा कैफे खोलने की योजना बना रहे हैं। कैफे में काम करने वाली 18 साल की पूजा (परिवर्तित नाम) कहती हैं कि अपने पैरों पर खड़े होकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। अगर मेरे माता-पिता जीवित होते तो वे भी बहुत खुश होते। मैं भविष्य में अपने जैसे बच्चों के लिए काम करना चाहती हूं, ताकि उन्हें भी मदद मिल सके।"
बता दें इस कैफे को शुरू करने से पहले इन युवाओं को खाना बनाने, परोसने, ग्राहकों से बात करने आदि की 6 महीने तक ट्रेनिंग दी गई थी, जब संस्था को लगा कि ये बच्चे इन कामों को अच्छे से कर सकते हैं, तब जाकर इस कैफे को खोला गया। अब भी इन बच्चों को रोज नई ट्रेनिंग दी जाती है। इसके अलावा इस कैफे के ऊपर एक अकादमी भी खोली गई है, जहां ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें।