सपा-बसपा गठबंधन: 25 साल पुराने गठबंधन का रीमेक?

punjabkesari.in Wednesday, Dec 19, 2018 - 03:35 PM (IST)

वैब डेस्क (मनीष शर्मा): गानों और फिल्मों के बाद अब राजनीती में भी रीमेक का ट्रेंड शुरू को गया है। बात करें सपा-बसपा गठबंधन के रीमेक की तो राजनीतिक गलियारों से खबर आई है कि अगले लोकसभा चुनावों के लिए सपा और बसपा का गठबंधन होने जा रहा है। सूत्रों की माने तो इस गठबंधन की औपचारिक  घोषणा मायावती के जन्मदिन 15 जनवरी को की जाएगी। इस गठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं मिली है हालांकि कहा जा रहा है कि अमेठी और रायबरेली में गठबंधन  कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी । अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रिय लोक दल ने अभी पत्ते नहीं  खोले हैं, यह तय नहीं हुआ कि  वह बसपा-सपा के गठबंधन के साथ जाएगी या कांग्रेस के साथ बनी रहेगी? राजस्थान में कांग्रेस और आरएलडी का गठबंधन है और कांग्रेस की मदद से आरएलडी राजस्थान में अपना खाता खोल पाई है। लेकिन फिलहाल फोकस करते हैं 2019 में बनने जा रही सपा-बसपा के गठबंधन की। 

दुश्मन बने दोस्त- कहानी पूरी फ़िल्मी है 

1. किरदार -1993 और अब  की कहानी में पार्टियां वहीँ हैं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, बस किरदार बदल गए हैं। कांशीराम का स्थान मायावती ने ले लिया है और मुलायम सिंह यादव की जगह  उनके बेटे अखिलेश यादव हैं।

2 . मजबूरी -1993 में  और आज के समय दुश्मनों को दोस्त बनने के लिए मजबूर करने वाली एक ही शक्ति है- बीजेपी की बढ़ती ताक़त को रोकना। 1993 में गठबंधन के सामने  लाल कृष्ण अडवाणी थे 2019  में मायावती और अखिलेश के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

3. राम मंदिर- 1993 में भी  राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा गरम था और आज भी इसकी गर्मी ज्यों की त्यों है।  यह इकलौता मुद्दा है जो उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को  बदलने की ताक़त रखता  है।  इस एक मुद्दे के चलते हिन्दू वोट एकजुट हो जाता है जिसका फायदा चुनाव में  बीजेपी को मिलता है। हिन्दू वोट अगर जातियों में बंटी रहे तो चुनाव में नतीजे सपा और बसपा के अनुकूल जाते हैं। दलित वोटर बसपा को वोट करते हैं और यादव वोटर सपा को। गठबंधन यह बिलकुल नहीं चाहेगा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव धर्म के नाम पर लड़ा जाए। 

4. फायदा- 1993 में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह की सलाह पर बसपा चीफ कांशीराम उत्तर प्रदेश की इटावा संसदीय सीट के उपचुनाव लड़े और जीते भी। वहीँ विधानसभा चुनाव में भले ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बसपा के समर्थन से मुलायम सिंह यादव सरकार बनाने में सफल रहे। वहीँ 2018 में फूलपुर और गोरखपुर की संसदीय सीट के उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने जीत हासिल की।

5. नारा- हां, अगर कहानी के पात्र बदल गए हैं तो नारों का  भी बदलना तय है ।  1993 में गठबंधन का नारा था - मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम। आज के समय  गठबंधन का नारा जो लोकप्रिय हो रहा है, वह है- बहनजी और अखिलेश जुड़े, मोदी और योगी के होश उड़े।

6. अंत- 26  साल पुरानी कहानी के  रीमेक के अंत पर सस्पेंस है। 2019 में बनने जा रहे गठबंधन का अंत भविष्य के गर्भ में है लेकिन 1995 में गठबंधन का अंत  दुखद  हुआ था। उत्तर प्रदेश विधानसभा में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार 2  साल भी नहीं चल पाई। बसपा ने पहले ही समर्थन वापस ले लिया था । उसके बाद जो हुआ बहुत बुरा हुआ। 2  जून 1995 , मुलायम सिंह की सरकार के  गिरने से ठीक एक दिन पहले सपा नेताओं ने लखनऊ गेस्ट हाउस में मायावती और बसपा विधायकों को बंदी बना लिया । फर्रुखाबाद से तत्कालीन  बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त दिवेदी ने उनको बाहर निकाला और सुरक्षित राजभवन ले गए। बीजेपी के समर्थन से अगले दिन मायावती ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई।


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Anil dev

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