कहीं दाव उल्टा न पड़ जाए

punjabkesari.in Thursday, Jul 14, 2016 - 12:47 PM (IST)

इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान आतंकवाद की नर्सरी है। वह अपनी जमीन पर आतंकियों को प्रशिक्षण देकर तैयार करता है और उनकी भारत में घुसपैठ करवा देता है। इस काम में वह युवा आतंकियों का अधिक इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन आतंकी समूहों में जो लोग मारे जा चुके हैं उनके बच्चों की उच्च शिक्षा दिलाने के लिए पाकिस्तान ने एक नया स्वांग रचा है। भारत के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए आतंकियों के बच्चों को वहां कॉलेजों में कोटा दिया जाएगा। इस योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में लड़ रहे आतंकियों के बच्चों को भी स्कॉलरशिप दी जाएगी। 

भारत के इस प्रांत के लिए पाकिस्तान का जो रवैया है उसकी पोल फिर खुल गई है। आतंकियों के बच्चों को मदद के नाम पर वह आतंकवाद को फलने-फूलने के लिए खुराक दे रहा है। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने के वह लाख दावे करता रहे, मगर सच्चाई यही है कि वह स्वयं इसका पोषक है। मारे गए आतंकियों के बच्चों का कोटा निश्चित करके और स्कॉलरशिप की व्यवस्था करके वह जताना चाहता है कि आतंकी गुटों में शामिल लोगों की संतान की उसे पूरी चिंता है। यानि बेफिक्र होकर लोग इन गुटों में शामिल हो जाएं। उनके परिवारों की चिंता सरकारी तौर पर की जाएगी। 

पाकिस्तान ने यह योजना बनाई है कि जिन कश्मीरी युवकों के रिश्ते आतंकवादियों और अलगाववादियों से हैं, जो भारतीय सेना के खिलाफ हैं, उनके लिए कॉलेजों में सीट आरक्षित की जाएगी। वह आतंकियों को जताना चाहता है कि यदि वे आतंकी कार्रवाई में मारे जाते हैं तो वह उनके बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने का पूरा जिम्मा लेने के लिए तैयार है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को आतंकी संगठनों में शामिल करने के लिए यह उसकी चाल हो सकती है। इस सवाल उठता है कि जरूरी नहीं युवा आतंकियों के अपने बच्चे हों। इस योजना का लाभ वही आतंकी उठा सकते हैं जो बड़ी उम्र के होंगे। उनकी संख्या गिनी चुनी ही होगी।

इस संदर्भ में कश्मीर घाटी के अलगाववादियों का जिक्र करना उचित होगा। अपने परिवारों के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्हें पढ़ने के लिए विदेश भेज दिया गया है। इनमें कई वहां नौकरी कर रहे हैं। जाहिर है वे इस आग में अपनी संतान को नहीं झोंकना चाहते। जब उनकी अगली पीढ़ी अलगाववाद दूर है तो आतंकी भी उनके नक्शेकदम पर चल सकते हैं। यह तथ्य कम अहम नहीं है कि आतंकी संगठनों में कितने ऐसे लोग हैं, जिनके परिवार हैं। क्योंकि ज्यादातर अशिक्षित युवक ही ऐसे अमानवीय कामों को करने के लिए शामिल जाते हैं। ब्रेनवॉश आसानी से करके उन्हें बरगलाया जा सकता है। उन्हें कई सब्जबाग दिखाए जा सकते हैं। यदि गिने चुने उम्रदराज लोग इन समूहों में होंगे भी क्या वे भारी भरकम हथियार लेकर सेना का सामना कर पाते होंगे। 

दूसरा, जिनके बच्चे मेडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज में दाखिला लेकर डिग्री लेकर बाहर निकलेंगे यह जरूरी नहीं कि सभी आतंकवाद से जुड़ना चाहें। शिक्षित होकर वे अपना जीवन संवारना चाहेंगे। वे अभिभावकों की दुर्गति देख चुके हैं। उन्हें समझ आ जाएगा कि आतंकवाद फैलाना उनके जीवन का मकसद नहीं है। संभव है कि शिक्षित होने के बाद वे अपने जीवन को नई दिशा देना चाहें और अमन, शांति की स्थापना करना चाहें। जान हथेली पर रखकर आतंक फैलाने वाले लोग भी नहीं चाहेंगे कि उनकी औलाद आतंक का दिशाहीन रास्ता चुनें। इस तरह पाकिस्तान का यह दाव उल्टा भी पड़ सकता है।

पाकिस्तान की इस नई योजना से साफ है कि वह आईएसआईएस का अनुसरण कर रहा है। बताया जाता है कि उसके पास विद्वानों, इंजीनियरों, डॉक्टरों आदि की खेप है। उनके दिमाग का इस्तेमाल करके वह रणनीति बनाता है। यह ठीक है कि आईएसआईएस के हमले जारी हैं, लेकिन धीरे-धीरे उसकी कमर टूटने लगी है। उसके चंगुल से छूट कर कई आतंकी भाग चुके हैं और कुछ इसके प्रयास करते रहते हैं। भागने वालों को सजा देने का उसका तरीका क्रूर है। संभव है कि नई पीढ़ी उसके भ्रमजाल में कम फंसे।  

पाकिस्ताल यदि दीर्घकालीन योजना बना रहा है कि वह आने वाले समय में शिक्षित आतंकियों की खेप तैयार कर लेगा तो यह उसकी भूल हो सकती है। उसकी अपनी अंदरूनी हालत बहुत बुरी है। पिछले कई सालों से वह आतंकवाद से प्रभावित है। बजाय अपने ही द्वारा पैदा की गई इस विष बेल को समाप्त करने के वह इसे खाद-पानी देने में ही लगा रहता है। अलगाववादी आंदोलन पर भी अब उसकी पकड़ वैसी नहीं रही है जो कभी हुआ करती है। भारतीय सेना के जवाबी हमलों से आने वाले में आतंकवाद की हालत पस्त होना तय है।

 

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