'पुलवामा आतंकी हमले ने J&K से आर्टिकल 370 हटाने पर किया मजबूर'...केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

punjabkesari.in Tuesday, Aug 29, 2023 - 11:00 AM (IST)

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संविधान के अनुच्छेद 370 (article 370) को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर केंद्र की इस दलील से प्रथम दृष्टया सहमति जताई कि जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) का संविधान भारतीय संविधान के "अधीनस्थ" है। इसके साथ ही केंद्र ने यह भी दलील दी कि देश का संविधान उच्च स्थिति में है। केंद्र ने कोर्ट में कहा कि फरवरी 2019 में पुलवामा में CRPF काफिले पर जिहादी हमले के बाद से ही यह सुनिश्चित किया गया था कि कश्‍मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म कर दिया जाएगा और वहां केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाएगा। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि  बहुत सी चीजें हुई। पुलवामा हमला 2019 की शुरुआत में हुआ और यह  कदम कई चीजों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था, जैसे- संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे आदि। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि अलगाव के बाद से लगभग 16 लाख पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया है और क्षेत्र में नए होटल खोले गए हैं, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला।

 

नागरिकों को गुमराह किया गया

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ हालांकि इस दलील से सहमत नहीं प्रतीत हुई कि पूर्ववर्ती राज्य की संविधान सभा, जिसे 1957 में भंग कर दिया गया था, वास्तव में विधानसभा थी। पूर्ववर्ती राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दलों का नाम लिए बिना, केंद्र ने कहा कि नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान "भेदभाव नहीं, बल्कि विशेषाधिकार" थे। तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 11वें दिन केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "आज भी दो राजनीतिक दल इस अदालत के समक्ष अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35A का बचाव कर रहे हैं।" सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के अधीनस्थ है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में कानून बनाने वाली विधान सभा थी। पीठ ने कहा, "एक स्तर पर... आप सही हो सकते हैं कि भारत का संविधान वास्तव में एक दस्तावेज है जो जम्मू-कश्मीर के संविधान की तुलना में उच्च स्तर पर है। 

 

अनुच्छेद 35A का भी उल्लेख

पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे। पीठ ने मेहता से कहा कि इस तर्क के दूसरे हिस्से को स्वीकार करना कठिन होगा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में, अनुच्छेद 370 के प्रावधान के रूप में एक विधानसभा थी। मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा सर्वथा राज्य विधायिका के रूप में काम कर रही थी और इसके साथ ही उसने जम्मू कश्मीर का संविधान नामक एक अधीनस्थ दस्तावेज तैयार करने के अलावा कई कानून पारित भी बनाए। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 42वें संविधान संशोधन के बाद ''समाजवादी'' और ''धर्मनिरपेक्ष'' शब्द जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं किए गए।

 

उन्होंने कहा कि यहां तक कि "अखंडता" शब्द भी वहां नहीं है, मौलिक कर्तव्य भी वहां नहीं थे, जो भारतीय संविधान में मौजूद हैं। उन्होंने भारतीय संविधान के एक और विवादास्पद प्रावधान अनुच्छेद 35A का उल्लेख किया, जिसके तहत तत्कालीन राज्य के केवल स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता था। उन्होंने कहा कि 35ए के प्रावधानों के तहत, पूर्ववर्ती राज्य में दशकों से काम कर रहे सफाई कर्मचारियों जैसे लोगों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों की तरह समान अधिकार नहीं थे। "यह भेदभाव 2019 में प्रावधान निरस्त होने तक जारी रहा। चीफ जस्टिस ने मेहता की दलीलों पर गौर करते हुए कहा कि आर्टिकल 35A को लागू करके, उन्होंने समानता के मौलिक अधिकारों, देश के किसी भी हिस्से में अपना पेशा अपनाने की स्वतंत्रता को छीन लिया। मामले में सुनवाई अभी पूरी नहीं हुई है और यह मंगलवार को भी जारी रहेगी।


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Content Writer

Seema Sharma

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