G7 में प्रधानमंत्री का भाग नहीं लेना एक और कूटनीति विफलता: कांग्रेस
punjabkesari.in Tuesday, Jun 03, 2025 - 05:00 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कांग्रेस ने मंगलवार को दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जी7 शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेना भारत-पाकिस्तान के बीच अमेरिका को ‘‘मध्यस्थता'' करने देने के बाद एक और कूटनीतिक विफलता है। बीते छह साल में पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में आयोजित होने वाले आगामी जी7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना नहीं है। मामले से अवगत लोगों ने सोमवार को यह जानकारी दी थी। कनाडा 15 से 17 जून तक शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जिसमें रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिम एशिया की स्थिति सहित विश्व के सामने मौजूद चुनौतियों पर विचार-विमर्श होने की उम्मीद है।
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G7 शिखर सम्मेलन 15 जून 2025 से कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कानानास्किस में आयोजित हो रहा है। इस सम्मेलन में अमेरिका और फ्रांस के राष्ट्रपतियों, ब्रिटेन, जापान, इटली और कनाडा के प्रधानमंत्रियों तथा जर्मनी के चांसलर की भागीदारी होगी।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 3, 2025
इस बार ब्राजील, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और…
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कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स' पर पोस्ट किया, ‘‘अमेरिका और फ्रांस के राष्ट्रपतियों, ब्रिटेन, जापान, इटली और कनाडा के प्रधानमंत्रियों और जर्मनी के चांसलर का जी7 शिखर सम्मेलन 15 जून, 2025 से कनाडा के अल्बर्टा में हो रहा है। शिखर सम्मेलन में ब्राजील, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और यूक्रेन के राष्ट्रपति और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को भी आमंत्रित किया गया है।''
उन्होंने कहा कि 2014 से पहले जी7 वास्तव में कई वर्षों तक जी8 था क्योंकि इसमें रूस भी शामिल था। रमेश का कहना था, ‘‘डॉ. मनमोहन सिंह को जी8 शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया जाता था जहां उनकी आवाज सुनी जाती थी। जून, 2007 में जर्मनी में ऐसे ही एक शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन वार्ता के लिए प्रसिद्ध ‘सिंह-मर्केल फॉर्मूले' का अनावरण किया गया था।'' उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय प्रधानमंत्रियों को आमंत्रित करने की परंपरा 2014 के बाद भी जारी रही। लेकिन अब 6 साल में पहली बार ‘विश्वगुरु' कनाडा शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे। चाहे भले ही बातों को घुमाने का प्रयास किए जाए, तथ्य यह है कि यह एक और बड़ी कूटनीतिक विफलता है।'' रमेश ने दावा किया कि यह विफलता उस वक्त देखने को मिली है जब अमेरिका को भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करके वर्षों से चली आ रही भारतीय विदेश नीति को बदलने दिया गया और ‘तटस्थ स्थल' पर बातचीत करने पर सहमति देने की गलती की गई है।