नए संसद भवन की आधारशिला रखने के बाद बोले पीएम मोदी- यह ''आत्मनिर्भर भारत'' का गवाह बनेगा

punjabkesari.in Thursday, Dec 10, 2020 - 05:28 PM (IST)

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को नये संसद भवन का शिलान्यास किया और इस अवसर को ‘‘ऐतिहासिक'' और भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ‘‘मील का पत्थर'' करार दिया। उन्होंने कहा कि नया भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का गवाह बनेगा और 21वीं सदी के भारत की आकांक्षाएं पूरी करेगा। नये संसद भवन के भूमि पूजन और शिलान्यास के बाद प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि नये संसद भवन का निर्माण समय और जरूरतों के अनुरूप परिवर्तन लाने का प्रयास है और आने वाली पीढ़ियां इसे देखकर गर्व करेंगी कि यह स्वतंत्र भारत में बना है। चार मंजिला नये संसद भवन का निर्माण कार्य भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ तक पूरा कर लिए जाने की संभावना है। नये संसद भवन का निर्माण 971 करोड रुपए की अनुमानित लागत से 64,500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में किए जाने का प्रस्ताव है।

ज्ञात हो कि नये संसद भवन के निर्माण का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू एवं लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने क्रमशः राज्यसभा और लोक सभा में 5 अगस्त 2019 को किया था। मोदी ने कहा, ‘‘पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद के भारत को दिशा दी तो नया भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का गवाह बनेगा। पुराने संसद भवन में देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम हुआ तो नये भवन में 21वीं सदी के भारत की आकांक्षाएं पूरी की जाएंगी।'' उन्होंने कहा कि आज जैसे इंडिया गेट से आगे नेशनल वॉर मेमोरियल ने नई पहचान बनाई है, वैसे ही संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘आने वाली पीढ़ियां नए संसद भवन को देखकर गर्व करेंगी कि यह स्वतंत्र भारत में बना है और आजादी के 75 वर्ष का स्मरण करके इसका निर्माण हुआ है।''
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नये संसद भवन के शिलान्यास को ‘‘ऐतिहासिक'' बताते हुए उन्होंने कहा कि आज का दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। उन्होंने कहा, ‘‘भारतीयों द्वारा, भारतीयता के विचार से ओतप्रोत भारत के संसद भवन के निर्माण का प्रारंभ हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं के सबसे अहम पड़ाव में से एक है। हम भारत के लोग मिलकर अपनी संसद के इस नए भवन को बनाएंगे। ...और इससे सुंदर क्या होगा, इससे पवित्र क्या होगा, जब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर पर्व मनाएगा, उस पर्व के साथ-साथ प्रेरणा हमारे संसद की नई इमारत बने।''

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के लिए बड़े सौभाग्य और गर्व का दिन है जब सभी इस ऐतिहासिक पल के गवाह बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि नये संसद भवन का निर्माण नूतन और पुरातन के सहअस्तित्व का उदाहरण है और यह समय तथा जरूरतों के अनुरूप खुद में परिवर्तन लाने का प्रयास है। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर उस दिन को भी याद किया जब 2014 में पहली बार एक सांसद के तौर पर वह संसद भवन पहुंचे थे और उस वक्त उन्होंने लोकतंत्र के इस मंदिर में कदम रखने से पहले माथा टेक कर नमन किया था।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे वर्तमान संसद भवन ने आजादी के आंदोलन और फिर स्वतंत्र भारत को गढ़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। आजाद भारत की पहली संसद भी यहीं बैठी। इसी संसद भवन में हमारे संविधान की रचना हुई है। बाबा साहेब आंबेडकर और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने सेंट्रल हॉल में गहन मंथन के बाद हमें संविधान दिया। संसद की मौजूदा इमारत स्वतंत्र भारत के हर उतार-चढ़ाव, हमारी हर चुनौतियों और समाधान, हमारी आशा और आकांक्षाओं और हमारी सफलता का प्रतीक रही है।''
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मोदी ने कहा कि आमतौर पर अन्य जगहों पर जब लोकतंत्र की चर्चा होती है तो चुनाव प्रक्रियाओं और शासन-प्रशासन की बात होती है तथा इस प्रकार की व्यवस्था पर अधिक बल देने को ही कुछ स्थानों पर लोकतंत्र कहा जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन भारत में लोकतंत्र एक संस्कार है। भारत के लिए लोकतंत्र जीवन मूल्य है, जीवन पद्धति है, राष्ट्र जीवन की आत्मा है। भारत का लोकतंत्र, सदियों के अनुभव से विकसित हुई व्यवस्था है। भारत के लिए लोकतंत्र में, जीवन मंत्र भी है, जीवन तत्व भी है और साथ ही व्यवस्था का तंत्र भी है।''

भारत में लोकतंत्र को हमेशा से शासन के साथ ही मतभेदों को सुलझाने का माध्यम बताते हुए उन्होंने कहा कि अलग-अलग विचार और अलग-अलग दृष्टिकोण ही एक जीवंत लोकतंत्र को सशक्त करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मतभेदों के लिए हमेशा जगह हो लेकिन डिसकनेक्ट कभी ना हो, इसी लक्ष्य को लेकर हमारा लोकतंत्र आगे बढ़ा है।'' उन्होंने कहा, ‘‘नीतियों में अंतर हो सकता है, राजनीति में भिन्नता हो सकती है, लेकिन हम जनता की सेवा के लिए हैं। इस अंतिम लक्ष्य में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। वाद-संवाद संसद के भीतर हों या संसद के बाहर, राष्ट्रसेवा का संकल्प, राष्ट्रहित के प्रति समर्पण लगातार झलकना चाहिए।''
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इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने देशवासियों से भारत सर्वोपरि का प्रण लेने का आह्वान किया और कहा कि देश के संविधान की मान-मर्यादा और उसकी अपेक्षाओं की पूर्ति जीवन का सबसे बड़ा ध्येय है। उन्होंने कहा, ‘‘हम प्रण लें कि देशहित से बड़ा और कोई हित कभी नहीं होगा। हम भारत के लोग, ये प्रण करें कि हमारे लिए देश की चिंता, अपनी खुद की चिंता से बढ़कर होगी। हमारे लिए देश की एकता, अखंडता से बढ़कर कुछ नहीं होगा।'' उन्होंने कहा, ‘‘हमें संकल्प लेना है भारत सर्वोपरि का। हम सिर्फ और सिर्फ भारत की उन्नति, भारत के विकास को ही अपनी आराधना बना लें। हमारा हर फैसला देश की ताकत बढ़ाए। हमारा हर निर्णय, हर फैसला, एक ही तराजू में तौला जाए। और वो है- देश का हित सर्वोपरि।''

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की एकता-अखंडता को लेकर किए गए उनके प्रयास, इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की ऊर्जा बनेंगे। जब एक एक जनप्रतिनिधि, अपना ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, अपना अनुभव पूर्ण रूप से यहां निचोड़ देगा, उसका अभिषेक करेगा, तब इस नए संसद भवन की प्राण-प्रतिष्ठा होगी: मोदी ने कहा कि लोकतंत्र के इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा इसमें चुनकर आने वाले जन-प्रतिनिधि, उनका समर्पण, उनका सेवा भाव, और उनका आचार-विचार-व्यवहार, करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें याद रखना है कि वो लोकतंत्र जो संसद भवन के अस्तित्व का आधार है, उसके प्रति आशावाद को जगाए रखना हम सभी का दायित्व है। हमें ये हमेशा याद रखना है कि संसद पहुंचा हर प्रतिनिधि जवाबदेह है। ये जवाबदेही जनता के प्रति भी है और संविधान के प्रति भी है।''


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Yaspal

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