Parliament Winter Session: हंगामे और प्रदर्शन के बीच 84 करोड़ का नुकसान, केवल एक बिल हुआ पास
punjabkesari.in Saturday, Dec 21, 2024 - 09:58 AM (IST)
नेशनल डेस्क: भारत की संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिन तक चला, लेकिन इस दौरान संसद का कामकाज काफी हद तक स्थगित रहा। लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में एक के बाद एक हंगामा, विरोध प्रदर्शन और सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। इस सत्र में जहां जनता से जुड़े अहम मुद्दों पर कोई ठोस चर्चा नहीं हो सकी, वहीं संसद के संचालन पर भारी वित्तीय नुकसान भी हुआ। कुल मिलाकर, यह सत्र संसद की कार्यप्रणाली के लिए एक निराशाजनक अनुभव साबित हुआ, जिसमें एक ही बिल पास हुआ और लाखों रुपये का सार्वजनिक धन बर्बाद हुआ।
संसद सत्र का हंगामेदार अंत
संसद के शीतकालीन सत्र का समापन 20 दिसंबर, 2024 को हुआ, जब लोकसभा और राज्यसभा दोनों की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। सत्र के अंतिम दिन लोकसभा में भी विपक्षी दलों द्वारा हंगामा किया गया। गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान को लेकर विपक्षी सांसदों ने तीखा विरोध किया। इसके बाद सदन में वंदे मातरम का गान हुआ और इसके तुरंत बाद लोकसभा को स्थगित कर दिया गया। इसी तरह राज्यसभा में भी हंगामा और शोर-शराबा जारी रहा, जिसके बाद इसे भी स्थगित कर दिया गया। इस सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने लगातार सरकार पर निशाना साधा, खासकर गृह मंत्री अमित शाह के बयान को लेकर। कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी के नेतृत्व में एक प्रदर्शन भी किया, जिसमें उन्होंने गृह मंत्री से माफी की मांग की। प्रदर्शन में राहुल गांधी भी शामिल नहीं हुए, क्योंकि उनका नाम एक एफआईआर में था और वह दिल्ली से बाहर एक शादी समारोह में व्यस्त थे। हालांकि, बीजेपी के सांसदों ने भी जवाबी प्रदर्शन किया, और राहुल गांधी के खिलाफ नारे लगाए, आरोप लगाया कि वह नागालैंड की महिला सांसद के साथ बदसलूकी में शामिल थे।
महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की कमी
संसद में इस बार जनता से जुड़े गंभीर मुद्दों जैसे महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं और देश की सुरक्षा पर कोई सार्थक चर्चा नहीं हो सकी। इसके बजाय, सत्र का अधिकांश समय हंगामे, व्यक्तिगत हमलों और सत्ता पक्ष-विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप में ही व्यर्थ चला गया। संसद की कार्यवाही के लिए यह एक बड़ी असफलता मानी जा रही है, क्योंकि इन मुद्दों पर चर्चा की न केवल आवश्यकता थी, बल्कि यह देश की नीति और भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण भी थी।
84 करोड़ रुपये का नुकसान
इस शीतकालीन सत्र में संसद के संचालन में अनुमानित 84 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह राशि सीधे तौर पर नागरिकों के टैक्स से आती है, जो संसद के रोजाना के कार्यों के लिए खर्च की जाती है। हर मिनट संसद की कार्यवाही पर लगभग 2.50 लाख रुपये खर्च होते हैं। यदि हम लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के समय को देखें, तो लोकसभा में 61 घंटे 55 मिनट और राज्यसभा में 43 घंटे 39 मिनट काम हुआ। हालांकि, सत्र के दौरान हुआ अधिकांश समय हंगामे और विरोध प्रदर्शन में बर्बाद हुआ, जिससे संसद के उत्पादक घंटे बेहद कम रहे। यदि हम कार्यवाही के समय की बात करें, तो लोकसभा में 20 बैठकें हुईं और राज्यसभा में 19 बैठकें। लेकिन इनमें से बहुत सारी बैठकों में कोई महत्वपूर्ण चर्चा नहीं हुई। इसके अलावा, कुछ दिनों में तो सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई, क्योंकि हंगामे के कारण कामकाजी माहौल ही नहीं बन सका।
संसद में पेश हुए बिल और उनके पास होने की स्थिति
इस शीतकालीन सत्र में बिलों की संख्या बहुत कम रही। 1999 से 2004 के बीच 13वीं लोकसभा के दौरान 38 बिल पेश किए गए थे, जिनमें से 21 पास हुए थे। 2004 से 2009 के बीच 14वीं लोकसभा में 30 बिल पेश किए गए थे, जिनमें से 10 पास हुए। 15वीं लोकसभा (2009 से 2014) में 32 बिल पेश हुए, जिनमें से 17 पास हुए। 16वीं लोकसभा (2014 से 2019) में 30 बिल पेश हुए, जिनमें से 17 पास हुए। 17वीं लोकसभा में 55 बिल पेश हुए, जिनमें से 42 पास हुए। लेकिन इस बार 18वीं लोकसभा के दौरान दो सत्रों में कुल 15 बिल पेश किए गए थे, जिनमें से केवल एक ही बिल पास हो पाया। यह एक चिंताजनक संकेत है कि संसद की कार्यवाही न केवल धीमी रही, बल्कि विधायी कार्यों की गति भी बहुत कम रही। यह संख्या पिछले कुछ दशकों में सबसे कम है, जो संसदीय कार्यप्रणाली की सुस्ती को दर्शाता है। यह सवाल उठाता है कि क्या संसद अपने कर्तव्यों का पालन सही तरीके से कर रही है, और क्या संसद के कामकाजी माहौल को बेहतर बनाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे।
संसद के संचालन की जिम्मेदारी
लोकसभा और राज्यसभा दोनों की कार्यवाही के संचालन की जिम्मेदारी स्पीकर और उपसभापति की होती है। इन दोनों के नेतृत्व में सदनों की कार्यवाही का संचालन होना चाहिए, लेकिन जब विरोध और हंगामे की स्थिति उत्पन्न होती है, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह जिम्मेदारी सही तरीके से निभाई जा रही है। विपक्ष और सरकार के बीच लगातार टकराव ने संसद की कार्यवाही को अव्यवस्थित और अवरुद्ध कर दिया, जिससे यह सत्र अपनी सबसे खराब स्थिति में पहुंच गया। शीतकालीन सत्र में हंगामे, विरोध प्रदर्शन और सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संघर्ष के कारण न केवल कार्यवाही ठप रही, बल्कि संसद की उत्पादकता भी न के बराबर रही। जहां एक ओर जनता से जुड़े मुद्दों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, वहीं वित्तीय नुकसान भी भारी रहा। कुल मिलाकर, यह सत्र संसदीय इतिहास का एक अव्यवस्थित और निराशाजनक दौर साबित हुआ। 84 करोड़ रुपये की बर्बादी और केवल एक बिल का पास होना यह दिखाता है कि संसद की कार्यप्रणाली में गंभीर सुधार की आवश्यकता है।