ऑफ द रिकॉर्ड: PK सिन्हा का पेचीदा ओहदा, कैबिनेट में डोभाल का जलवा

punjabkesari.in Wednesday, Sep 18, 2019 - 04:48 AM (IST)

नेशनल डेस्क: नमो प्रशासन में कुछ भी बिना तर्क के नहीं होता। जब प्रधानमंत्री ने पी.के. सिन्हा के लिए मुख्य सलाहकार का पद बनाया तो पी.एम.ओ. में उनकी नियुक्ति के समय किसी को भी यह जानकारी नहीं थी कि ऐसा क्यों किया गया है। पिछले 70 साल में पी.एम.ओ. में इस तरह के पद के बारे में नहीं सुना गया था और लोग अब भी अंदाजा लगा रहे हैं कि ऐसा क्यों किया गया। प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा और एन.एस.ए. अजीत डोभाल की भूमिकाएं अच्छी तरह से स्पष्ट हैं। पी.के. सिन्हा ने पी.एम.ओ. में बहुत-सी नई चीजों की शुरूआत की है। 
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सिन्हा संभवतया पहले कैबिनेट सचिव हैं जिन्हें पी.एम.ओ. में लाया गया है। क्योंकि कैबिनेट सचिव वरीयता क्रम में सबसे वरिष्ठ नौकरशाह होता है इसलिए वह प्रधान सचिव डा. पी.के. मिश्रा से जूनियर नहीं हो सकते थे और मिश्रा को उनकी रिपोॄटग नहीं हो सकती। ऐसे में प्रश्न यह था कि क्या किया जाए। ऐसे समय में पी.एम. ने अपनी इनोवेटिव कुशलता दिखाते हुए सिन्हा के लिए मुख्य सलाहकार का पद सृजित किया। दूसरे, सिन्हा को सलाहकार की भूमिका में लाने से वह प्रधानमंत्री को नीतियां लागू करने, विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों में समन्वय स्थापित करने के मामले में अपनी सलाह दे सकते हैं। 
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उनकी भूमिका केवल आधारभूत ढांचे तक सीमित नहीं रहेगी। इसके अलावा ऐसा करने से यह विवाद भी नहीं रहेगा कि पी.एम.ओ. में कौन नंबर वन है और कौन नंबर टू। तीनों मुख्य अधिकारी अपनी जगह स्वतंत्र होंगे और कोई भी किसी दूसरे को रिपोर्ट नहीं करेगा। 3 पूर्व प्रमुख बाबुओं को जिस तरह से कार्य का आबंटन किया गया था इससे साफ पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी किस तरह का पी.एम.ओ. चाहते हैं। पी.के. सिन्हा नीतिगत मामलों तथा विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/एजैंसियों/संगठनों के कार्य देखेंगे लेकिन प्रधान सचिव और एन.एस.ए. को विशेष तौर पर सौंपे गए काम में उनका कोई दखल नहीं होगा। रक्षा और सुरक्षा से संबंधित मामलों पर डोभाल की नजर रहेगी जबकि प्रधान सचिव मिश्रा सभी नियुक्तियों, कैबिनेट एजैंडा, केन्द्रीय कैबिनेट, सी.बी. आई. तथा सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मामलों को देखेंगे। 
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पहली बार डोभाल को एक नया काम सौंपा गया है जिसके अनुसार वह विदेश मंत्रालय, प्रवासी भारतीय विभाग, रक्षा, अंतरिक्ष, एटॉमिक एनर्जी तथा देश की बाह्य खुफिया एजैंसी, रिसर्च एंड एनालिसिज विंग का काम देखेंगे। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को अपने मंत्रालयों से संबंधित कोई भी नीतिगत फैसला लेने से पहले डोभाल से विचार-विमर्श करना होगा।


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Pardeep

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