हमारा उद्देश्य भारत को विश्वगुरु बनाना, RSS के 100 साल पूरे होने पर बोले मोहन भागवत

punjabkesari.in Tuesday, Aug 26, 2025 - 10:34 PM (IST)

नेशनल डेस्कः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को देश में सामाजिक एकता और समरसता का संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि एकता के लिए एकरूपता जरूरी नहीं होती, बल्कि विविधता भी एकता का ही रूप होती है। वे आरएसएस की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम “आरएसएस की 100 वर्ष यात्राः नए क्षितिज” को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया।

हिंदुत्व की परिभाषा और विविधता का सम्मान

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि: "हिंदू" कोई पंथ या संप्रदाय नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली है। कई लोग स्वयं को हिंदू नहीं मानते, लेकिन अपने आचरण में वे हिंदू मूल्यों को ही जीते हैं। उन्होंने कहा कि "हिंदू अपने मार्ग पर चलते हैं और दूसरों का सम्मान करते हैं। लड़ाई नहीं, समन्वय में विश्वास रखते हैं।" भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि हमारा डीएनए एक है, और सांस्कृतिक विविधता हमारी ताकत है, न कि कमजोरी।

"भारत को वह दर्जा नहीं मिला, जिसका वह हकदार है"

भागवत ने कहा कि आजादी के 75 सालों बाद भी भारत को वह वैश्विक पहचान और स्थान नहीं मिला है जिसकी वह हकदार है। उन्होंने कहा: "भारत का योगदान दुनिया को बहुत कुछ देने में है और अब वह समय आ गया है जब देश को 'विश्वगुरु' की भूमिका में आगे आना चाहिए।" उन्होंने यह भी कहा कि देश का विकास केवल सरकारों या नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी।

सामाजिक परिवर्तन पर बल

भागवत ने कहा कि भारत के पुनर्निर्माण में सबसे जरूरी है समाज का जागरूक और नैतिक रूप से समर्पित होना। उन्होंने कहा: "समाज को बदलना है तो उसके लिए सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का उत्थान जरूरी है।" "राजनीतिक दलों, सरकारों और नेताओं की भूमिका सहायक हो सकती है, लेकिन मुख्य काम समाज का है।"

“हमारा डीएनए एक है, भिन्नता के बावजूद हम एक हैं”

उन्होंने कहा कि: भारतवर्ष की सभी परंपराएं, बोलियां, रीति-रिवाज चाहे जितने भी भिन्न क्यों न हों, सभी भारतीय एक ही सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े हुए हैं। “विविधता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि भारतीय एकता का प्रतीक है। यह एकता, हमारे पूर्वजों की परंपरा और भारत माता के प्रति समर्पण से उपजती है।”

तीन दिवसीय संवाद श्रृंखला का आगाज़

इस कार्यक्रम की शुरुआत के साथ तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला शुरू हुई है। आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि: इस श्रृंखला के दौरान मोहन भागवत विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों से संवाद करेंगे। इन सत्रों में देश के सामने मौजूद सामाजिक, सांस्कृतिक, और राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

 आरएसएस की 100 साल की यात्रा: एक झलक

  • स्थापना: 1925 में नागपुर में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा।

  • विजन: भारत को सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से स्वावलंबी और मजबूत बनाना।

  • आज, संघ के हजारों शाखाएं देशभर में कार्य कर रही हैं, और यह शिक्षा, सेवा, संस्कृति व राष्ट्रनिर्माण से जुड़े कई संगठनों को प्रेरणा देता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Pardeep

Related News