बकरीद पर बकरे की जगह शख्स ने खुद की कुर्बानी दे दी, सुसाइड नोट में लिखी ये बात
punjabkesari.in Saturday, Jun 07, 2025 - 11:39 PM (IST)

नेशनल डेस्क: उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक बेहद चौंकाने वाली और दुखद घटना सामने आई है। बकरीद के मौके पर जहां लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं, वहीं देवरिया के एक शख्स ने खुद की कुर्बानी दे दी। 60 वर्षीय ईश मोहम्मद ने अपना गला रेत लिया और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। मरने से पहले उन्होंने एक सुसाइड नोट भी लिखा है, जिसमें उन्होंने अपने इस कदम की वजह बताई है।
खुद का गला रेता, एक घंटे तक तड़पते रहे
यह घटना देवरिया के गौरी बाजार थाना क्षेत्र के उधोपुर गांव की है। 60 साल के ईश मोहम्मद ने अपने घर के बाहर बनी झोपड़ी में ही खुद का गला रेत लिया। बताया जा रहा है कि इस भयावह कृत्य के बाद ईश मोहम्मद करीब एक घंटे तक झोपड़ी में तड़पते रहे। परिवार वालों ने जब उनकी कराहने की आवाज सुनी और दौड़कर झोपड़ी में पहुंचे, तो वहां का मंजर देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। खून से लथपथ ईश मोहम्मद को परिजन तुरंत गोरखपुर मेडिकल कॉलेज ले गए, लेकिन इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।
मरने से पहले लिखा भावुक सुसाइड नोट
ईश मोहम्मद ने मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी लिखा है, जो इस घटना को और भी मार्मिक बना देता है। इस नोट में उन्होंने लिखा है: “इंसान अपने घर में बकरे को बेटे की तरह पोसकर कुर्बानी करता है। वो भी जीव हैं। कुर्बानी करनी चाहिए। मैं खुद अपनी कुर्बानी अल्लाह के रसूल के नाम से कर रहा हूं। किसी ने मेरा कत्ल नहीं किया है। सुकून से मिट्टी देना। किसी से डरना नहीं है। जिस जगह खूंटा है उसी जगह पर मेरी कब्र होना चाहिए।” यह सुसाइड नोट ईश मोहम्मद की गहरी धार्मिक भावना और जानवरों के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है।
नमाज पढ़कर लौटे थे घर
परिजनों ने बताया कि ईश मोहम्मद बेहद धार्मिक इंसान थे। घटना वाले दिन सुबह वह ईद-उल-अजहा की नमाज पढ़कर घर लौटे थे। नमाज के बाद वह सीधे घर के बाहर बनी झोपड़ी में चले गए और काफी देर तक बाहर नहीं आए। जब परिवार के लोग परेशान होकर झोपड़ी में देखने गए, तो वहां खून ही खून फैला था और ईश मोहम्मद तड़प रहे थे। आनन-फानन में उन्हें स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से उन्हें गोरखपुर मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, ताकि इस घटना के पीछे के सभी पहलुओं को समझा जा सके। यह घटना निश्चित रूप से समाज में एक बड़ी बहस छेड़ सकती है कि धार्मिक आस्था और व्यक्तिगत मूल्यों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।