मोदी के मिशन में अब केरल और बंगाल की बारी: क्या बीजेपी इन राज्यों में भी कर पाएगी सफलता?
punjabkesari.in Monday, Feb 10, 2025 - 11:45 AM (IST)
नेशनल डेस्क: दिल्ली में 27 साल बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या बीजेपी के अगले लक्ष्य केरल और पश्चिम बंगाल हो सकते हैं। दिल्ली में इस सफलता के बाद बीजेपी की नज़र उन राज्यों पर टिकी हुई है, जहां पार्टी अब तक सत्ता में नहीं आ पाई है, और इनमें प्रमुख राज्य हैं—केरल और पश्चिम बंगाल। इन दोनों राज्यों में वामपंथी दलों और क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहा है, जिसकी वजह से बीजेपी इन राज्यों में अपने पांव नहीं जमा पाई है। लेकिन, अब दिल्ली की जीत के बाद पार्टी इन राज्यों में भी अपनी जीत की संभावनाएं तलाशने में जुटी हुई है।
केरल में बीजेपी की स्थिति
केरल में राजनीति हमेशा से ही दो मुख्य गठबंधनों—लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF)—के बीच घूमती रही है। LDF का नेतृत्व सीपीआई (एम) कर रहा है, जबकि UDF में कांग्रेस प्रमुख पार्टी है। यहां तक कि केरल में वामपंथियों की मजबूत पकड़ और कांग्रेस की भी प्रभावी उपस्थिति रही है, जिसने बीजेपी को कभी भी सत्ता में आने का मौका नहीं दिया। बीजेपी ने 2016 में अपना पहला विधायक (ओ. राजगोपाल) जीता था, लेकिन 2021 में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। इसके बावजूद, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कुछ राहत मिल सकती है, यदि कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच दरार बढ़ी। बीजेपी ने इस दौरान विशेष रूप से ईसाई समुदाय को अपने पक्ष में लाने के लिए कई रणनीतियाँ अपनाई हैं, जो आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण हो सकती हैं। यदि बीजेपी मुस्लिम और ईसाई दोनों समुदायों का समर्थन हासिल करने में सफल हो जाती है, तो उसे राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल सकता है। हालांकि, केरल में बीजेपी का कोर वोट बैंक अभी भी पूरी तरह से मजबूत नहीं हो पाया है, जो पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की संभावनाएं
पश्चिम बंगाल में दशकों तक सीपीआई (एम) का शासन रहा था और 2011 के बाद से तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सरकार बनी हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और राज्य में 18 सीटें जीतीं, जिससे यह संकेत मिला कि पार्टी की स्थिति राज्य में मजबूत हो रही है। हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई और 213 सीटों के साथ अपनी सत्ता बनाए रखी, जबकि बीजेपी 77 सीटों पर सिमट गई। इस चुनावी नतीजे के बावजूद, बीजेपी पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है। बंगाल में हिंदुत्व की राजनीति और NRC-CAA जैसे मुद्दे बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। इसके अलावा, टीएमसी के खिलाफ भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप भी बीजेपी के लिए एक बड़ा हथियार बन सकते हैं। हालांकि, ममता बनर्जी की छवि और टीएमसी का मजबूत वोट बैंक पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। यदि बीजेपी बंगाल में अपना संगठन मजबूत करती है और ममता बनर्जी की पार्टी में अंदरूनी फूट पैदा करने में सफल होती है, तो आने वाले चुनावों में एक दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है।
क्या मोदी का मिशन अब केरल और बंगाल में हो पाएगा सफल ?
दिल्ली में 27 साल बाद बीजेपी की ऐतिहासिक जीत ने पार्टी को काफी उत्साहित किया है। पीएम मोदी और अमित शाह की रणनीति दीर्घकालिक होती है, जिसमें धीरे-धीरे जनाधार बढ़ाना और फिर सत्ता तक पहुंचना शामिल है। पार्टी के लिए अगला लक्ष्य दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्य हो सकते हैं, और इनमें प्रमुख राज्यों के तौर पर केरल और पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। बीजेपी ने दिल्ली में अपनी ताकत बढ़ाने के बाद अब इन दोनों राज्यों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करने का मन बनाया है। हालांकि, दोनों राज्यों की राजनीति और चुनौतियां अलग हैं। केरल में बीजेपी को वामपंथी और कांग्रेस दोनों से मुकाबला करना है, जबकि बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ प्रतिस्पर्धा है। लेकिन अगर बीजेपी सही रणनीति अपनाती है, तो इन दोनों राज्यों में सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। बीजेपी का मानना है कि जैसे दिल्ली में वह अपनी रणनीति के जरिए सत्ता में आई, वैसे ही केरल और पश्चिम बंगाल में भी उसे धीरे-धीरे जनाधार और संगठनात्मक मजबूती हासिल करने का मौका मिलेगा। दिल्ली की जीत के बाद, अब पार्टी के लिए इन राज्यों में भी सत्ता परिवर्तन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।