तलाक के बाद पत्नी को संपत्ति का हिस्सा नहीं देना चाहते? ये चौंकाने वाला तरीका हो रहा वायरल
punjabkesari.in Monday, Jul 21, 2025 - 10:00 AM (IST)

नेशनल डेस्क। भारत में अभी तक शादी से पहले होने वाले समझौते कानूनी तौर पर मान्य नहीं हैं। ऐसे में अमीर लोग शादी टूटने पर होने वाले बड़े वित्तीय नुकसान से बचने के लिए अब नए तरीके अपना रहे हैं। प्राइवेट फैमिली डिस्क्रेशनरी ट्रस्ट (private family discretionary trust) ऐसा ही एक प्रभावी तरीका बनकर उभरा है जिसे आजकल संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के एक कपड़ा निर्यातक ने बताया कि उनके बेटे की शादी जल्दी ही टूट गई लेकिन ट्रस्ट बनाने की वजह से वे बेटे के कारोबार और पारिवारिक घर को शादी से पहले ही सुरक्षित कर चुके थे। इसी तरह मुंबई के एक बड़े जौहरी ने अपनी सारी प्रॉपर्टी एक ट्रस्ट में डाल दी और अपने बेटे को इसका लाभार्थी बना दिया। जब बेटे ने तलाक के लिए अर्जी दी तो उसकी पत्नी उन संपत्तियों पर कोई दावा नहीं कर सकी जिन्हें वह कभी अपना समझती थी।
क्या है इस ट्रस्ट का मतलब और कैसे करता है काम?
इनहेरिटेंस नीड्स सर्विसेज के फाउंडर रजत दत्ता बताते हैं कि ट्रस्ट का मूल मकसद ही ट्रस्टी के जरिए लाभार्थियों के हितों की रक्षा करना होता है। दत्ता ने आगे कहा कि अगर कोई कर्जदार बैंक का पैसा नहीं चुका पाता है तो ट्रस्ट में रखी संपत्ति को बैंक जब्त नहीं कर सकता भले ही कर्जदार ट्रस्टी हो और लाभार्थी भी। इसका सीधा मतलब यह है कि ट्रस्ट एक तरह से संपत्ति को कानूनी लड़ाइयों और देनदारियों से बचाने का काम करता है।
अमीरों से मिडिल क्लास तक पहुंचा यह तरीका
पहले यह तरीका केवल अमीर और बड़े कारोबारी घरानों तक ही सीमित था लेकिन अब मिडिल क्लास के लोग भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अपनी मेहनत की कमाई को कानूनी उलझनों से सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपने परिवार को कानूनी लड़ाई से बचाना चाहते हैं खासकर तलाक जैसे मुश्किल मामलों में।
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यह तरीका केवल पुरुषों की संपत्ति ही नहीं बल्कि महिलाओं की संपत्ति को भी सुरक्षा देता है। एक वकील ने बताया कि एक महिला को अक्सर अपने पति से पैसे मांगने की परेशानी होती थी लेकिन वह अपनी संपत्ति को बचाने में कामयाब रही क्योंकि वह ट्रस्ट में थी। यह ट्रस्ट उसके पिता ने अपनी बेटी और उसके बच्चों के लिए बनाया था।
कानूनी जानकारों के अनुसार यह तरीका अब उन पारंपरिक परिवारों में भी अपनाया जा रहा है जो अपने पुश्तैनी कारोबार को बचाना चाहते हैं। इसके अलावा एनआरआई (अनिवासी भारतीय) के माता-पिता भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं जिनकी शादियां अलग-अलग संस्कृति में हुई हैं जहां तलाक के नियम भिन्न हो सकते हैं।
कैसे बनाया जाता है यह ट्रस्ट?
एवेंडस वेल्थ मैनेजमेंट के फैमिली ऑफिस सॉल्यूशंस के प्रमुख आश्विनी चोपड़ा का कहना है कि कई परिवार बेटों को शादी के बाद होने वाले वित्तीय जोखिमों से बचाने के लिए ट्रस्ट बना रहे हैं खासकर तब जब शादी उनकी जाति और धर्म से बाहर हो रही हो।
ट्रस्ट को इस तरह से बनाया जाता है कि कानूनी तौर पर बेटे के नाम पर कोई संपत्ति नहीं होती है। वह सिर्फ ट्रस्ट का लाभार्थी होता है। इससे तलाक होने पर उसकी संपत्ति पर पत्नी द्वारा दावा करने का स्कोप काफी कम हो जाता है।
वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब ट्रस्ट डीड को तलाक को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है। पहले इसका मुख्य मकसद केवल विरासत को संभालना और पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित करना होता था। हाल ही में हुए कुछ हाई-प्रोफाइल तलाक के मामलों में अलग-अलग फैसले आए हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में प्रीनप जैसा कोई स्पष्ट कानून नहीं है जिससे यह ट्रस्ट एक मजबूत विकल्प के रूप में सामने आया है।