'बेटे को बेचैनी हो रही है, जेनरेटर चला दो!' स्टाफ बोला- डीजल नहीं है... अब हम क्या करें, चली गई जान
punjabkesari.in Tuesday, Jun 17, 2025 - 10:58 AM (IST)

नेशनल डेस्क। उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर के मेडिकल अस्पताल में डायलिसिस के दौरान व्यवस्था का एक ऐसा बदनुमा चेहरा सामने आया जिसने अस्पताल में इलाज कराने वालों को झकझोर कर रख दिया। बिजली गुल होने और जेनरेटर के लिए डीजल न मिलने के कारण 26 वर्षीय एक युवक सरफराज ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। यह घटना तब हुई जब उसका आधा ब्लड डायलिसिस मशीन में ही था और बिजली न होने के कारण मशीन बंद पड़ गई।
बिजली गुल, मां की मिन्नतें और बेटे की मौत
शुक्रवार की सुबह करीब दस बजे सरफराज अपने पैरों पर चलकर डायलिसिस विभाग पहुंचा था। डायलिसिस की प्रक्रिया शुरू हुई लेकिन इसी दौरान बिजली चली गई। सरफराज का आधा खून मशीन में ही था जिसे वापस उसके शरीर में चढ़ाया जाना था। बिजली न होने के कारण मशीन बंद हो गई और सरफराज की हालत बिगड़ने लगी। उसकी मां सलमा स्टाफ के सामने गिड़गिड़ाती रही, "बेटे को बेचैनी हो रही है, वह मर जाएगा... जेनरेटर चला दो!" लेकिन स्टाफ ने डीजल न होने की बात कहकर हाथ खड़े कर दिए। इसी दौरान सरफराज ने दम तोड़ दिया।
सीडीओ भी रह गए स्तब्ध, बोले- 'यह मौत नहीं, खराब व्यवस्था ने जान ली'
जब सरफराज की हालत बिगड़ी तो उसकी मां सलमा दौड़कर वहां निरीक्षण कर रहे मुख्य विकास अधिकारी (CDO) पूर्ण बोरा के पास पहुंचीं। सीडीओ ने तुरंत चिकित्सक और स्टाफ को सीपीआर (CPR) के लिए दौड़ाया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सरफराज की जान जा चुकी थी। बेटे की आंखों के सामने हुई मौत से सलमा रोती-बिलखती रही और इस दर्दनाक मंजर को देखकर सीडीओ पूर्ण बोरा भी स्तब्ध रह गए। उन्होंने प्राचार्या उर्मिला कार्या और सीएमएस से सख्त लहजे में कहा, यह मौत नहीं, खराब व्यवस्था ने जान ली है। सलमा ने रोते-रोते अपने घर वालों को फोन कर बेटे की मौत की खबर दी।
तीमारदार का आरोप: 'एक बूंद डीजल नहीं था, मैनेजर पैसे नहीं देते'
सलमा ने बताया कि उनका बेटा ठीक था और खुद चलकर आया था। वह करीब एक साल से बीमार था और उसकी पांच बार डायलिसिस हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को डायलिसिस शुरू होने के दौरान दो बार बिजली गई और तीसरी बार आधे घंटे से ज़्यादा समय तक बिजली गायब रही। सरफराज का खून फिल्टर हो चुका था और उसे वापस शरीर में चढ़ाया जा रहा था लेकिन बिजली न होने से मशीन बंद हो गई और इसी दौरान सरफराज ने दम तोड़ दिया।
डायलिसिस विभाग में मौजूद एक तीमारदार शादाब ने आरोप लगाया कि यहां कोई सुनने वाला नहीं है। उन्होंने कहा, बिजली जाती है और जेनरेटर चलता ही नहीं। इनके पास एक बूंद डीजल नहीं था। जब पूछा तो बोले, मैनेजर डीजल के पैसे नहीं देते तो कैसे आएगा। इस तपती गर्मी में मशीन तो बंद होती है साथ में बंद वार्ड में बिना पंखा, एसी के मरीजों का दम तक घुटने लगता है।
प्राइवेट कंपनी की लापरवाही, सरकार करती है लाखों का भुगतान
बिजनौर मेडिकल अस्पताल में डायलिसिस का काम संजीवनी प्राइवेट लिमिटेड नामक एक निजी कंपनी को सौंपा गया है जो PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर यह सेंटर चला रही है। सरकार इसके लिए प्रत्येक मरीज पर करीब 1300 रुपये का भुगतान करती है। प्रतिदिन यहां 20 मरीजों की डायलिसिस होती है ऐसे में कंपनी को महीने में 10 लाख रुपये और साल भर में करीब एक करोड़ रुपये तक का भुगतान किया जाता है।
सीडीओ पूर्ण बोरा को सौंपी गई जांच में इस सेंटर में कई गंभीर कमियां पाई गई हैं जिनमें साफ-सफाई की कमी, फुल टाइम डॉक्टर का न होना, टेक्नीशियन की संख्या कम होना और सबसे बड़ी बात - बिजली जाने पर जेनरेटर के लिए डीजल का न होना शामिल है। सीडीओ ने कहा है कि उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर इस कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी और उसे ब्लैकलिस्ट भी किया जाएगा। यह घटना सरकारी अस्पतालों में निजी कंपनियों द्वारा दी जा रही सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करती है।