मालेगांव-मुंबई ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी: तो फिर दोषी कौन? न्यायिक प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल

punjabkesari.in Friday, Aug 01, 2025 - 03:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत की न्यायिक प्रणाली और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। 29 सितंबर 2008 के मालेगांव बम विस्फोट कांड के सभी आरोपी, जिनमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे, NIA की विशेष अदालत से बरी हो गए हैं। इस फैसले ने एक बार फिर यही सवाल खड़ा कर दिया है कि अगर आरोपी बरी हो गए, तो इन आतंकी वारदातों को अंजाम किसने दिया?

जांच एजेंसियों पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
यह पहली बार नहीं है जब किसी बड़े आतंकी हमले के सभी आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हुए हों। हाल ही में हुई कुछ और घटनाओं पर भी नजर डालें:

मुंबई सीरियल ब्लास्ट (2006): 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए 7 सीरियल धमाकों में 209 लोग मारे गए थे। इस मामले में भी 9 साल बाद दोषी ठहराए गए 12 आरोपियों को बॉम्बे हाई कोर्ट ने 21 जुलाई 2025 को बरी कर दिया। महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक तो लगा दी, लेकिन यह साफ कर दिया कि आरोपी अब जेल वापस नहीं जाएंगे।

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट (2007): 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट में 68 लोगों की मौत हुई थी। इस मामले में भी मुख्य आरोपी असीमानंद समेत सभी चार आरोपी 2019 में पंचकुला की NIA अदालत से बरी हो गए थे। इन सभी मामलों में अभियोजन पक्ष किसी भी आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश करने में नाकाम रहा। इससे यह सवाल गहरा हो जाता है कि क्या हमारी जांच एजेंसियां जानबूझकर ढिलाई बरतती हैं, या फिर सबूत जुटाने में अक्षम हैं।

मालेगांव ब्लास्ट: क्या हुआ था?
घटना: 29 सितंबर 2008 को नासिक के पास मालेगांव में एक मस्जिद के पास हुए विस्फोट में 6 लोग मारे गए थे और कई घायल हुए थे। विस्फोट एक मोटर साइकिल में रखे विस्फोटक से किया गया था।
आरोप: इस मामले में शुरू में महाराष्ट्र ATS के प्रमुख हेमंत करकरे ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित समेत कई लोगों पर आरोप लगाए थे। उस समय आरोप था कि विस्फोट में इस्तेमाल हुई मोटर साइकिल साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी।
अंतिम फैसला: 31 जुलाई को NIA कोर्ट ने सभी सात आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला।
जमायत-ए-उलेमा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।


राजनीतिक दांव-पेंच और न्यायिक प्रक्रिया
इन मामलों में अक्सर जांच की दिशा भी बदलती रही है। जहाँ पहले राज्य की पुलिस किसी और पर आरोप लगाती है, वहीं बाद में केंद्रीय एजेंसियां (जैसे NIA) दूसरों को आरोपी बनाती हैं। मालेगांव मामले में भी कांग्रेस सरकार के दौरान 'हिंदू आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल हुआ, जबकि बाद में भाजपा सरकार के आने पर इस बात से इनकार किया गया।


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Content Editor

Mansa Devi

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