(Pics) यहां 24 घंटे जलती हैं लाशें, मिलती है मोक्ष की प्राप्ति
punjabkesari.in Wednesday, Apr 27, 2016 - 07:08 PM (IST)

वाराणसी: मुक्तिधाम के नाम से जाने वाले काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर सैकड़ों सालों से चिताएं जलती आ रही हैं। यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि यह चिताएं आज तक नहीं बुझी है। माना जाता है कि औघड़ रूप में शिव यहां विराजते हैं। काशी में मृत्यु और यहां दाह संस्कार करने से मरने वाले को महादेव तारक मंत्र देते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पं श्रीकांत मिश्र बताते हैं कि पुराणों और धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। मणिकर्णिका घाट की स्थापना अनादी काल में हुई है। श्रृष्टि की रचना के बाद भगवान शिव ने अपने वास के लिए इसे बसाया था और भगवान विष्णु को उन्होंने यहां धर्म कार्य के लिए भेजा था। यह कहना काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पं श्रीकांत मिश्र का है।
इस तरह पड़ा कुंभ का नाम
भगवान विष्णु ने हजारों सालों तक मणिकर्णिका घाट पर तप किया था। महादेव के प्रकट होने पर विष्णु ने अपने चक्र से चक्र पुष्कर्णी तालाब का निर्माण किया था। इससे पहले उन्होंने कुंड में स्नान किया था। इस दौरान उनके कान का मुक्तायुक्त कुंडल गिर गया था। इसी के बाद से इस कुंड का नाम मणिकर्णिका कुंड पड़ गया। इस कुंड का इतिहास, पृथ्वी पर गंगा अवतरण से भी पहले का माना जाता है।
घाट पर रहने वाले बुजुर्ग नरेश बिसवानी का कहना है कि महादेव चिता की भस्म से श्रृंगार करते हैं। इसीलिए यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती है। चौधरी परिवार के डब्बू का कहना है कि औसतन 30 से 35 चिताएं रोज जलती हैं। दाह संस्कार के लिए केवल बनारस से ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।