भारत में पर्यावरण को लेकर 29 विभिन्न देशों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

punjabkesari.in Friday, Dec 08, 2023 - 02:41 AM (IST)

जैतो(रघुनंदन पराशर ): जलवायु परिवर्तन विभिन्न मंत्रालयों/विभागों और उनके अधीन संस्थानों में फैला हुआ एक व्यापक विषय है। जलवायु परिवर्तन पर अनुसंधान मुख्य रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं। 

कृषि, जल संसाधन, मानव स्वास्थ्य, विद्युत, नवीकरणीय ऊर्जा, परिवहन, शहरी कार्यों/विकास आदि जैसे क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न मंत्रालय/विभाग जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय पहलुओं का भी अध्ययन करते हैं। इसके अतिरिक्‍त भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालय तथा उनके विभाग जैसे विश्वविद्यालय और सरकारी अनुसंधान संस्थान भी जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनुसंधान करते हैं। जलवायु परिवर्तन पर अनुसंधान कार्य अनेक संस्थान और संगठन अपने स्वयं के बजटीय प्रावधानों के अंतर्गत चलाए जाते हैं। 

सरकार बहुपक्षवाद और दृढ़ घरेलू कार्रवाइयों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की वैश्विक सामूहिक कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें विभिन्न अनुसंधान प्रयासों के माध्यम से इस विषय की समझ में सुधार करना शामिल है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे में 'जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र' (सीसीसीआर) के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की समझ में सुधार लाने तथा वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए क्षेत्रीय जलवायु प्रतिक्रियाओं के बेहतर आकलन को सक्षम करने के लिए विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों का संचालन करता है।

कुछ प्रमुख अनुसंधान गतिविधियों में आईआईटीएम अर्थ सिस्टम मॉडल का विकास- भारत से पहला पृथ्वी प्रणाली मॉडल को प्रकाशन के लिए मंत्रालय के राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट "भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आकलन" 2020, आईपीसीसी एआर6, में दिया गया, भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च-रिज़ॉल्यूशन जलवायु परिवर्तन अनुमानों का विकास, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) सांद्रता और फ्लक्स के जमीन-आधारित माप का संचालन करना, केमिकल ट्रेस गैसें, मौसम संबंधी और भूमि की सतह के पैरामीटर, फील्‍ड अभियानों पर आधारित जलवायु प्रॉक्सी (जैसे, ट्री-रिंग्स, स्पेलियोथेम्स, कोरल, आदि) का उपयोग करते हुए दक्षिण एशियाई मॉनसून में पिछले बदलावों का पुनर्निर्माण करना, प्रयोगशाला माप और जलवायु मॉडल जांच, आउटरीच, प्रशिक्षण और विश्वसनीय जलवायु जानकारी के प्रसार के आधार पर तथा जलवायु मॉडलिंग और अवलोकन मापन में इन-हाउस क्षमता का निर्माण करना शामिल है। 

इसके अतिरिक्‍त, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण तथा संबंधित क्षेत्रों में सहयोग के लिए ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, कनाडा, कंबोडिया, चीन, साइप्रस, डेनमार्क, मिस्र, फिनलैंड, फ्रांस, इजरायल, जापान, मॉरीशस, मोरक्को, म्यांमार, नामीबिया, नीदरलैंड्स, रूस, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, तुर्कमेनिस्तान, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम सहित कई देशों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।यह जानकारी आज राज्यसभा में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।


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Content Writer

Pardeep

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