जैन समाज के कार्यक्रम में पहुंचे मोदी, बोले- ''मानवता की सेवा और अहिंसा से सभी को कराया अवगत''
punjabkesari.in Saturday, Jun 28, 2025 - 07:23 PM (IST)

National Desk : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार, 28 जून 2025 को कहा कि भारत अपने ऋषि-महात्माओं और संतों के अमर विचारों व दर्शन के कारण विश्व की सबसे प्राचीन और जीवंत सभ्यता है। उन्होंने जैन आध्यात्मिक गुरु आचार्य विद्यानंद महाराज जी की जन्मशताब्दी समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके समाज के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए योगदान को याद किया। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं आचार्य विद्यानंद के विचारों से प्रेरित हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि चाहे प्रधानमंत्री आवास योजना हो, जल जीवन मिशन हो या आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य योजनाएं, सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि ये योजनाएं हर व्यक्ति तक पहुंचें ताकि कोई भी इससे वंचित न रहे। उन्होंने अपने संबोधन में एक जैन संत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रशंसा का भी उल्लेख किया।
मानवता सेवा की भावना सर्वोच्च
भारत में सेवा और मानवता की भावना पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां सेवा और मानवता की भावना हमेशा से केंद्रीय रही है। उन्होंने बताया कि जब दुनिया हिंसा का जवाब हिंसा से देती थी, तब भारत ने अहिंसा के मार्ग को अपनाया और मानवता की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। सेवा का यह तरीका स्वार्थ से परे और निःस्वार्थ होता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार इसी सेवा की भावना से प्रेरित होकर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि चाहे प्रधानमंत्री आवास योजना हो, जल जीवन मिशन हो या आयुष्मान भारत, ये सभी योजनाएं समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति तक सेवा की भावना को दर्शाती हैं। मोदी ने सभी से एकजुट होकर आगे बढ़ने की अपील की और कहा कि यही आचार्य विद्यानंद महाराज जी की प्रेरणा है और हमारा संकल्प भी। यह कार्यक्रम विज्ञान भवन में आयोजित किया गया था, जिसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय ने भगवान महावीर अहिंसा भारती ट्रस्ट, दिल्ली के सहयोग से किया। यह समारोह जैन धर्म के प्रमुख आध्यात्मिक नेताओं, विद्वानों और समाज सुधारकों में से एक आचार्य विद्यानंद महाराज की 100वीं जयंती पर आयोजित किया गया।
साहित्य और संगीत में दिया अतुल्य योगदान
साहित्य और संगीत के क्षेत्र में आचार्य विद्यानंद महाराज के योगदान को भी सराहा गया। मंत्रालय ने बताया कि उन्होंने कम उम्र में दीक्षा लेकर आधुनिक समय के प्रमुख जैन विद्वानों में से एक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके पास 8,000 से अधिक जैन आगमिक छंद थे। उन्होंने जैन दर्शन, अनेकांतवाद और मोक्षमार्ग पर 50 से अधिक ग्रंथ लिखे। मोदी ने उनकी विरासत, प्राकृत भाषा के पुनरुद्धार, प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार और साहित्य-संगीत में उनके योगदान की प्रशंसा की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय तीर्थंकरों, संतों और मुनियों की शिक्षाएं समय के साथ भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने जैन संत को ‘युग पुरुष’ और ‘युगद्रष्टा’ बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने साहित्य और संगीत के माध्यम से प्राचीन प्राकृत भाषा को पुनर्जीवित किया, जो भगवान महावीर के उपदेशों की भाषा है।
मातृभाषा को बढ़ावा
मातृभाषा को बढ़ावा देने पर भी उन्होंने जोर दिया। मोदी ने कहा कि प्राचीन पांडुलिपियों को डिजिटल बनाने के अभियान में जैन धर्म से जुड़ी पांडुलिपियां भी शामिल हैं और इस दिशा में और प्रगति की जाएगी। उन्होंने उच्च शिक्षा में मातृभाषाओं के प्रसार पर भी बल दिया। अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करने का संकल्प लिया है। उन्होंने अपने नौ संकल्पों को दोहराया, जिनमें पानी बचाना, एक पेड़ लगाना, स्वच्छता, स्थानीय उत्पादों का उपयोग, देश भ्रमण, प्राकृतिक खेती, स्वस्थ जीवनशैली, खेल और योग को अपनाना और गरीबों की मदद करना शामिल है। उन्होंने सभी से इन संकल्पों का पालन करने की अपील की।