मौन हुए मनमोहन की अमर प्रेम कहानी
punjabkesari.in Saturday, Dec 28, 2024 - 06:12 PM (IST)
साल 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद मनमोहन सिंह भारत लौटे। तब उनके परिवार ने उनके लिए विवाह के प्रस्ताव देखना शुरू किया। एक समृद्ध परिवार से रिश्ता आया लेकिन लड़की शिक्षित नहीं थी। साथ मनमोहन सिंह ने दहेज लेने से इंकार करते हुए स्पष्ट किया कि "मुझे दहेज नहीं एक पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए।" इस बीच गुरशरण कौर की बड़ी बहन बसंत को मनमोहन सिंह के बारे में पता चला और उन्होंने अपनी बहन के लिए यह प्रस्ताव रखा।
डॉ. सिंह की गुरशरण से पहली मुलाकात
मनमोहन सिंह और गुरशरण कौर की पहली मुलाकात छत पर हुई थी। जहां गुरशरण कौर सफेद सलवार-कुर्ते में थीं। इतिहास में एम.ए. कर रहीं गुरशरण को देखकर मनमोहन सिंह ने तुरंत 'हां' कर दी थी। इसके बाद एक संगीत कार्यक्रम में गुरशरण कौर ने कीर्तन गाया, जिसमें उनके गुरु ने आलोचना की। लेकिन इस पर मनमोहन सिंह ने कहा, "नहीं, उन्होंने बहुत अच्छा गाया।" उनकी तारीफ ने गुरशरण को और भी प्रेरित कर दिया। बाद में मनमोहन सिंह ने गुरशरण को अपने घर नाश्ते पर बुलाया, जहां उन्होंने पहली बार उन्हें अंडे और टोस्ट पेश किए थे। फिर साल 1958 में पारंपरिक भारतीय रीति-रिवाजों के अनुसार दोनों का विवाह संपन्न हुआ। वास्तव में मनमोहन सिंह और गुरशरण कौर का रिश्ता शांति, विश्वास और समर्थन से भरा रहा। गुरशरण कौर ने हमेशा अपने पति का साथ दिया, चाहे वह उनके प्रधानमंत्री बनने का समय हो या फिर आर्थिक सुधारों के दौर में उनकी नेतृत्व की चुनौती। मनमोहन सिंह का मानना था कि व्यक्तिगत रिश्तों को हमेशा सम्मानजनक और निजी रखा जाना चाहिए।
पत्नी को राजनीति में क्यों नहीं लायें डॉ. सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी भी अपनी पत्नी को सार्वजनिक जीवन में ज्यादा लाने से बचाया क्योंकि उनका विश्वास था कि व्यक्तिगत रिश्तों को राजनीति के चक्रव्यूह में नहीं घसीटा जाना चाहिए। साधारणता, गहराई और सच्चा प्यार उनके जीवन का मूल था। मनमोहन सिंह का यह विश्वास था कि उन्हें कभी भी शोहरत या सार्वजनिक ध्यान का मोह नहीं रहा। उन्होंने हमेशा अपने फैसलों में अपनी पत्नी गुरशरण कौर का समर्थन लिया। यह समर्थन ही उनकी सच्ची ताकत थी, जो उन्हें राजनीति के संघर्षों और सार्वजनिक जीवन में स्थिरता प्रदान करता था। उनका रिश्ता सिर्फ एक पारंपरिक विवाह नहीं था, बल्कि गहरी दोस्ती, समझ और विश्वास का एक उदाहरण था। मनमोहन सिंह ने हमेशा अपने निजी और सार्वजनिक जीवन के बीच संतुलन बनाए रखा। उनके लिए परिवार और प्यार हमेशा प्राथमिकता रहे और यही उनकी असली ताकत थी।
राजनीति में ऐसा उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है और यही कारण है कि उनकी और गुरशरण कौर की प्रेम कहानी भारत के लिए एक आदर्श बन गई। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सादगी, समर्पण और आपसी समझ से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। उनकी कहानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेंशा एक मिसाल बनी रहेगी।