लोकसभा चुनाव 2019- क्षेत्रीय दलों का नेता भी बन सकता है ‘किंग’

punjabkesari.in Friday, Mar 15, 2019 - 09:36 AM (IST)

जालंधर(नरेश कुमार): लोकसभा चुनाव को लेकर बिसात बिछनी शुरू हो गई है। कांग्रेस और भाजपा ने हर राज्य में अपने-अपने सहयोगी दलों के साथ तालमेल करके सीट शेयरिंग को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है और दोनों पार्टियों का अधिकतर राज्यों में चुनावी तालमेल पूरा हो गया है। इस बीच 2014 के बाद हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों का यदि विश्लेषण किया जाए तो एक बार फिर तस्वीर 1996 के परिणाम जैसी नजर आनी शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में सपा व बसपा के गठजोड़ और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के आक्रामक तेवरों व भाजपा के खिलाफ बन रहे गठबंधन के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि यदि दोनों पार्टियां बहुमत से चूकीं तो किसी तीसरी पार्टी का नेता ‘किंग’ बन सकता है यानी उसका नंबर प्रधानमंत्री पद के लिए लग सकता है। यह उम्मीद इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि पिछले 20 वर्ष में देश की राजनीति में क्षेत्रीय पाॢटयों का दबदबा बढ़ा है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों के आंकड़े भी देश में बढ़ रहे क्षेत्रीय दलों के प्रभाव का प्रमाण हैं। 2014 के बाद हुए विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों को 1,873 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई है जबकि भाजपा 1,281 व कांग्रेस 938 सीटों पर चुनाव जीती।
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भाजपा को दक्षिण में नुक्सान, पूर्वोत्तर व पश्चिम बंगाल में फायदा
पिछले चुनाव दौरान भारतीय जनता पार्टी को कर्नाटक में 17 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि 9 सीटें कांग्रेस व 2 सीटों पर जे.डी.एस. चुनाव जीती थी। इस बार दोनों पार्टियां गठबंधन करके चुनाव लड़ रही हैं लिहाजा कर्नाटक में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती है। हालांकि पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर भाजपा सीधी टक्कर में है और कांग्रेस व लैफ्ट के गठबंधन में स्थिति साफ न होने व तृणमूल कांग्रेस के अकेले चुनाव लडऩे के कारण भाजपा को यहां फायदा हो सकता है। इसके अलावा भाजपा को पूर्वोत्तर की 25 सीटों पर भी फायदे की उम्मीद है। प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल दौरान पूर्वोत्तर पर खास फोकस किया है जिसका भाजपा को फायदा हो सकता है।
10 राज्यों में भाजपा जीती थी 215 सीटें, यही सबसे ज्यादा खतरा
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उत्तर प्रदेश
2014 में यहां भाजपा 71, अपना दल 2, सपा 5 व कांग्रेस 2 सीटें जीती थीं और बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था लेकिन अब उत्तर प्रदेश में स्थितियां बदल गई हैं। भाजपा यहां गोरखपुर व फूलपुर की सीटों पर हुए उपचुनाव में हार चुकी है। पिछली बार अकेले लड़ रही सपा व बसपा अब एक साथ हैं लिहाजा भाजपा के लिए यहां पुराना प्रदर्शन दोहरा पाना एक बड़ी चुनौती होगी।

बिहार
बिहार में भारतीय जनता पार्टी पिछली बार जनता दल (यू) के बिना मैदान में थी लेकिन इस बार उसने अपनी जीती हुई 22 सीटों में से ही 5 छोड़कर 17 सीटों पर लडऩे का समझौता किया है। इस बार भाजपा के सामने कांग्रेस, राजद, सी.पी.आई. और हम का गठबंधन है। लिहाजा भाजपा के गठबंधन के लिए पिछली बार की तरह यहां पर नतीजे दोहरा पाना आसान नहीं होगा।


मध्य प्रदेश
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने यहां सत्ता खोई है और कांग्रेस के पास इस प्रदेश में वापसी का अच्छा मौका है। राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ किसान कर्ज माफी से लेकर अन्य वर्गों को खुश करने के लिए कई फैसले कर चुके हैं। पिछली बार राज्य की 29 में से 27 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं लेकिन इस बार वैसा परिणाम मुश्किल होगा।

राजस्थान
इस राज्य में भी कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की है और पार्टी ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करके लोकसभा चुनाव की जबरदस्त तैयारी शुरू कर दी है। मध्य प्रदेश के बाद यह दूसरा बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से होगा। पिछली बार भाजपा ने राज्य की सारी 25 सीटें जीत ली थीं लेकिन इस बार नतीजा दोहराना आसान नहीं है।

गुजरात
विधानसभा चुनाव में भाजपा की ताकत घटी है। कांग्रेस ने हाल ही में राज्य के तेज-तर्रार हार्दिक पटेल को पार्टी में शामिल करवाया है। हालांकि यह प्रदेश प्रधानमंत्री मोदी का अपना प्रदेश है लेकिन इसके बावजूद राज्य की 26 सीटों पर कांग्रेस इस बार कड़ी टक्कर दे सकती है। पिछली बार कांग्रेस यहां पर भी शून्य रही थी लेकिन गुजरात की 26 सीटों पर 2014 का नतीजा दोहराने के लिए भाजपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में हाल ही में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई है। अजीत जोगी और बसपा का गठबंधन भी कांग्रेस को रोक नहीं पाया और पार्टी ने 15 साल पुरानी रमन सिंह सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। इस राज्य की 11 में से 10 सीटें भाजपा ने जीती थीं लेकिन इस बार पुराना प्रदर्शन दोहराना इतना आसान नहीं होगा।

झारखंड
झारखंड में कांग्रेस ने जे.एम.एम. और जे.वी.एम. के साथ गठबंधन किया है। हालांकि भाजपा ने आजसू के साथ गठजोड़ कर उसे एक सीट दी है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस का गठबंधन ज्यादा मजबूत नजर आ रहा है और इस राज्य में 2004 के नतीजे दोहराए जाने की संभावना है। 2004 में भाजपा यहां 1 सीट ही जीत सकी थी हालांकि पिछले चुनाव के दौरान यहां भाजपा ने 12 सीटें जीती थीं और जे.एम.एम. 2 सीटों पर विजयी रहा था।

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इन राज्यों में लहराया था भाजपा का परचम
2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में परचम लहराते हुए जबरदस्त जीत हासिल की थी। पार्टी के उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और झारखंड की 251 सीटों में से 215 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि भाजपा की सहयोगी पाॢटयों को भी 11 सीटें मिली थीं। इनमें से लोक जनशक्ति पार्टी को 6, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 3 और राष्ट्रीय लोकदल को 2 सीटें हासिल हुई थीं। इस तरीके से भाजपा ने इन 251 सीटों में से अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर 226 सीटों पर कब्जा जमाया था लेकिन 2019 में तस्वीर अलग नजर आ रही है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हारने के साथ-साथ भाजपा लोकसभा के उपचुनाव भी हारी है। लिहाजा 2014 का प्रदर्शन दोहरा पाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है

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Naresh Kumar

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