जानिए पुराने समय में कैसे होती थी प्रेग्नेंसी की जांच, इन तरीकों का इस्तेमाल कर झट से पता कर लेते थे लोग

punjabkesari.in Thursday, Apr 10, 2025 - 12:03 PM (IST)

नेशनल डेस्क. आजकल तो पीरियड्स मिस होते ही महिलाएं फटाफट प्रेग्नेंसी किट से जांच कर लेती हैं, लेकिन पुराने जमाने में यह किट उपलब्ध नहीं थी, तब भी गर्भवस्था की जांच की जाती थी। उस समय महिलाएं कई अलग-अलग तरीके अपनाती थीं, जिनसे यह पता चलता था कि महिला गर्भवती है या नहीं।

प्राचीन मिस्र में प्रेग्नेंसी जांच

करीब 3500 साल पहले भी प्रेग्नेंसी के टेस्ट किए जाते थे। मिस्र के न्यू किंगडम एरा के पैपीरस (लिखित दस्तावेज़ों) में इसका उल्लेख मिलता है। इन दस्तावेज़ों में न सिर्फ गर्भवस्था की जांच के तरीके बताए गए थे, बल्कि अन्य कई रोगों के इलाज के बारे में भी जानकारी दी गई थी।

अनाजों से पहचान

पैपीरस में उल्लेख है कि 1500 से 1300 ईसा पूर्व के बीच प्रेग्नेंसी की जांच के लिए अनाजों का इस्तेमाल किया जाता था। इसके लिए एक बैग में जौ और दूसरे में गेहूं डाला जाता था। फिर इन दोनों बैगों में महिला का यूरिन डाला जाता था। यदि इनमें से कोई भी अनाज अंकुरित होने लगता था, तो यह संकेत होता था कि महिला गर्भवती है। अगर अंकुरण नहीं होता था, तो इसका मतलब था कि महिला गर्भवती नहीं थी।

वैज्ञानिक प्रमाण

1960 के दशक में वैज्ञानिक शोध में यह पाया गया कि गर्भवती महिला के मूत्र में ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रॉपिन (hCG) नामक हार्मोन होता है, जो बीजों के अंकुरण को तेज कर सकता है। यह वही हार्मोन है जिसका उपयोग आजकल प्रेग्नेंसी टेस्ट किट में किया जाता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि प्राचीन समय में उपयोग किए गए तरीके में काफी हद तक वैज्ञानिक आधार था।

चिकित्सा ग्रंथों का उल्लेख

प्राचीन मिस्र से जुड़े करीब 12 चिकित्सा ग्रंथों का अस्तित्व है, जिनमें गर्भावस्था और अन्य रोगों के इलाज के बारे में जानकारी मिलती है। हालांकि ये ग्रंथ क्षतिग्रस्त हैं और प्राचीन लिपि में लिखे गए हैं, जिससे इनका अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण है। फिर भी इनका अध्ययन और अनुवाद जारी है।

नाड़ी परीक्षण

प्राचीन भारतीय और चीनी चिकित्सा पद्धतियों में गर्भवस्था का पता लगाने के लिए नाड़ी परीक्षण किया जाता था। आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा के जानकार महिला की कलाई की नाड़ी को देखकर यह अनुमान लगाते थे कि वह गर्भवती है या नहीं। माना जाता था कि गर्भवती महिला की नाड़ी की गति सामान्य से थोड़ी अधिक होती है। आज की आधुनिक चिकित्सा के अनुसार, यह आंशिक रूप से सही है, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर में रक्त का संचार बढ़ जाता है और मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है, जिससे नाड़ी दर में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, यह तरीका पूरी तरह से सटीक नहीं था।

यूरिन से जांच

कई प्राचीन संस्कृतियों में महिलाओं के यूरिन को सुबह-सुबह एकत्रित करके कुछ समय तक छोड़ दिया जाता था। यदि यूरिन में कोई बदलाव (जैसे झाग, गाढ़ापन या रंग में परिवर्तन) दिखाई देता था, तो इसे गर्भवस्था का संकेत माना जाता था। कुछ जगहों पर यूरिन में अन्य चीजें भी मिलाकर इसका परीक्षण किया जाता था। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो गर्भवती महिलाओं के यूरिन में hCG हार्मोन की उपस्थिति से कुछ रासायनिक बदलाव हो सकते हैं, लेकिन यह तरीका आधुनिक परीक्षणों के मुकाबले कम प्रभावी था।

शारीरिक लक्षण

पुराने समय में महिलाएं अपने शरीर में होने वाले बदलावों के आधार पर भी गर्भवस्था का अनुमान लगाती थीं। यदि महिला को लगातार मतली, सिरदर्द, भूख में बदलाव, चक्कर आना और स्वाद में परिवर्तन जैसे लक्षण महसूस होते थे, तो इसे गर्भवस्था का संकेत माना जाता था। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गर्भवस्था के शुरुआती दिनों में शरीर में प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जिसके कारण यह लक्षण दिखाई देते हैं। आज भी डॉक्टर इन लक्षणों के आधार पर महिलाओं को गर्भवस्था की जांच कराने की सलाह देते हैं।


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Content Editor

Parminder Kaur

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