''कश्मीर में उग्रवाद की कमर टूट चुकी है, राजनीतिक पहल के लिए वक्त माकूल''

punjabkesari.in Wednesday, Sep 27, 2017 - 07:50 PM (IST)

श्रीनगरः उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित दक्षिण कश्मीर में सेना के कमांडर का मानना है कि कश्मीर में सशस्त्र उग्रवाद की कमर टूट चुकी है और अब बहुत ज्यादा ‘‘राजनीतिक दूरंदेशी’’ की जरूरत है ताकि दशकों पुरानी पृथकतावादी समस्या का स्थायी हल सुनिश्चित किया जा सके। दक्षिण कश्मीर के पांच जिलों में उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलाने वाली विक्टर फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल बीएस राजू ने एजेंसी को कहा, ‘अब ऐसा कोई इलाका नहीं है, जहां उग्रवादियों या पृथकतावादियों का प्रभाव हो। उग्रवादी अब अपने बचाव में लगे हैं।’ 

उन्होंने कहा कि उनका पूरा ध्यान अब इस बात पर है कि उग्रवादी संगठनों में अब और नई भर्तियां न हों और लोगों को इस बात का विश्वास दिलाया जाए कि सेना वहां उनकी मदद के लिए है। उन्होंने बताया कि इस काम के लिए उनके सैनिकों ने स्कूलों और कालेजों में विभिन्न कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं। 

दक्षिण कश्मीर को माना जाता है उग्रवाद का केन्द्र 
श्रीनगर से 33 किलोमीटर के फासले पर अवंतीपुरा स्थित विक्टर फोर्स के जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ राजू ने कहा, ‘‘सबसे बड़ी बात यह है कि ज्यादातर लोग समाधान चाहते हैं। वह हिंसा के इस दुष्चक्र से निकलना चाहते हैं।’’ दक्षिण कश्मीर को जम्मू कश्मीर में उग्रवाद का केन्द्र माना जाता है और पिछले वर्ष यहां सुरक्षा बलों पर हमले की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई थीं। इस वर्ष तस्वीर बदली है और अकेले इस इलाके में ही अब तक 73 उग्रवादियों को ढेर कर दिया गया है। यह पिछले वर्षों के औसत आंकड़े से लगभग दुगुना है। यह माना जा रहा है कि तकरीबन 120 सशस्त्र उग्रवादी बचे हैं, ज्यादा से ज्यादा 150 भी हो सकते हैं।

तो राज्य की दुर्दशा लंबे समय तक बनी रहेगी
राजू कहते हैं, ‘‘अब यह केन्द्र सरकार की राजनीतिक समझ पर निर्भर करता है। यह बहुत हद तक केन्द्र सरकार पर निर्भर करेगा। आप उग्रवाद से पुलिस के जरिए ही नहीं निपट सकते.’’ उन्होंने कहा कि कश्मीरियों के साथ सीधे बातचीत करनी होगी ताकि उन्हें यह बताया जा सके कि क्या दिया जा सकता है और क्या देना संभव नहीं है। ‘‘हमें लोगों को बताना होगा कि किसी भी हालत में ‘आजादी’ मुमकिन नहीं है। संविधान के अंतर्गत सब कुछ संभव है।अगर आप ‘आजादी’ की जिद लगाए रहेंगे तो राज्य की दुर्दशा लंबे समय तक बनी रहेगी।’’ उनके अनुसार सुरक्षा बलों और सरकार की एक सबसे बड़ी समस्या युवा और स्कूल जाने वाले बच्चों का कट्टरपंथ की तरफ झुकाव है। यह चीज लगातार आम होती जा रही है कि छोटी उम्र के लड़के और यहां तक कि आठ साल की उम्र के बच्चे भी पत्थर फेंकते नजर आते हैं।  

सुरक्षा बलों की मौजूदगी से आजादी जरूर चाहते हैं
राजू ने बताया कि बच्चों को व्यस्त रखने और उन्हें यह एहसास दिलाने के लिए कि सैनिक उनके मददगार हैं, सेना ने कुछ खास कार्यक्रम शुरू किए हैं जैसे खेल और चित्रकारी प्रतियोगिताएं, पठन पाठन के सामान का वितरण, बच्चों को पहाड़ों पर ले जाना और खाने का सामान देना। उन्होंने बताया कि ज्यादातर उग्रवादियों, स्वतंत्रता के हिमायतियों और यहां तक कि पत्थर फेंकने वालों को ‘आजादी’ का मतलब कुछ ज्यादा मालूम नहीं है, हालांकि वह देखादेखी यह सब कहने लगे हैं। जरूरी नहीं कि वह भारत से आजादी चाहते हैं। 

जम्मू-कश्मीर में किशोर न्याय प्रणाली की हिमायत
सरकारी और सुरक्षा एजेंसियों के अन्य अधिकारियों की तरह ही राजू भी एक मजबूत किशोर न्याय प्रणाली की हिमायत करते हैं, जिसमें लोगों को हिरासत में रखने के केन्द्र हों। इस समय किशोर पत्थरबाजों को सामूहिक तौर पर गिरफ्तार किया जाता है। हालांकि आखिर में तो उन्हें छोड़ना ही होता है लेकिन इस दौरान उन्हें समझाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता और वह बाहर जाकर फिर उन्हीं गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं।


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