बड़ा बदलाव: अब JNU में नहीं होगा कुलपति, जानिए क्या रखा गया नया नाम?

punjabkesari.in Tuesday, Jun 03, 2025 - 12:58 PM (IST)

नेशनल डेस्क। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने अपने कुलपति के लिए हिंदी में इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द 'कुलपति' को बदलकर 'कुलगुरु' करने का एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया है। यह कदम जेंडर न्यूट्रलिटी (लैंगिक-तटस्थता) को बढ़ावा देने और भारत की प्राचीन शैक्षिक परंपराओं के साथ तालमेल बिठाने के उद्देश्य से उठाया गया है। इस महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा विश्वविद्यालय की मौजूदा कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने की है।


इस साल से ही लागू होगा फैसला, डॉक्यूमेंट्स में भी दिखेगा बदलाव

जेएनयू की मौजूदा कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में यह प्रस्ताव पेश किया था जिसे अब मंजूरी मिल गई है। यह निर्णय इसी साल 2025 में ही लागू होने की संभावना है। इसका मतलब है कि अब से जेएनयू के डिग्री सर्टिफिकेट और अन्य ऑफिशियल डॉक्यूमेंट्स में कुलपति की जगह 'कुलगुरु' लिखा नजर आएगा। जेएनयू की मौजूदा वीसी प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित भी अब उन्हीं डॉक्यूमेंट्स पर कुलगुरु के रूप में हस्ताक्षर करेंगी।


 

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'कुलपति' से 'कुलगुरु': क्यों हुआ यह बदलाव?

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कुलपति के पद को कुलगुरु करने का फैसला कई महत्वपूर्ण वजहों से लिया गया है:

  • जेंडर न्यूट्रलिटी का लक्ष्य: 'कुलपति' शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'कुल का पति' या 'परिवार का प्रमुख', जिसे लिंग-विशिष्ट (पुरुष-केंद्रित) माना जाता है। वहीं 'कुलगुरु' का अर्थ है 'शिक्षक' या 'आध्यात्मिक मार्गदर्शक' जो जेंडर न्यूट्रल है और किसी भी लिंग के व्यक्ति के लिए उपयुक्त है। प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने कहा कि यह बदलाव जेंडर न्यूट्रल भाषा को बढ़ावा देने के लिए है जो समावेशिता और समानता को दर्शाता है।

  • प्राचीन परंपराओं से प्रेरणा: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कुलपति के टाइटल में यह बदलाव भारत की गुरु-शिष्य परंपरा से भी प्रेरित बताया जा रहा है। इस परंपरा में गुरु को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है न कि किसी खास जेंडर का। प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने इस बदलाव को भारतीय शैक्षिक मॉडल के हिसाब से बेहद उपयुक्त बताया है। गौरतलब है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी कुलपति को कुलगुरु के रूप में संबोधित करने का प्रस्ताव पहले ही पारित किया जा चुका है।

यह निर्णय जेएनयू के प्रगतिशील दृष्टिकोण और भारतीय जड़ों से जुड़ने की उसकी इच्छा को दर्शाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बदलाव अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी इसी तरह के परिवर्तनों को प्रेरित करता है या नहीं।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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