एकलौता शहीद जवान जो मौत के बाद भी सरहद पर देता है पहरा, अकेले ही 3 दिन में 300 चीनी सैनिकों को उतारा था मौत के घाट

punjabkesari.in Thursday, Oct 01, 2020 - 01:13 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सेना का जवान शहीद हो चुका है लेकिन फिर भी उसे आज तक प्रमोशन भी मिलता है और वो छुट्टी पर भी जाता है। जी हां बात हैरत करने वाली है लेकिन यह सच है कि शहीद हो चुके जवान को आज भी वो सभी सुविधाएं मिलती हैं जो एक सैनिक को ड्यूटी पर रहते हुए दी जाती हैं। इस शहीद जवान का नाम है जसवंत सिंह रावत, इन्होंने 72 घंटे तक अकेले चीनी सेना का सामना किया था और 300 से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया था। शहीद रावत की इसी बहादुरी के चलते इन्हें आज भी इतना सम्मान दिया जाता है।

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तीन जगहों पर अकेले लड़ी जंग
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के रहने वाले थे शहीद रावत का जन्म 19 अगस्त, 1941 को हुआ था। जिस समय जसवंत सिंह शहीद हुए उस वक्त वे राइफलमैन के पद पर तैनात थे और गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में सेवारत थे। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरारंग की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। 1962 का युद्ध अंतिम चरण में था और 14,000 फीट की ऊंचाई पर करीब 1000 किलोमीटर क्षेत्र में फैली अरुणाचल प्रदेश स्थित भारत-चीन सीमा युद्ध का मैदान बनी थी। इस इलाके में इतनी ठंड होती है कि यहां जाने भर के नाम से लोगों की रूह कांप जाती है। लेकिन उस समय जवान यहां पर युद्ध लड़ रहे थे। चीनी सेना लगातार भारत की जमीन पर कब्जा करते हुए अरुणाचल प्रदेश के तवांग से आगे तक पहुंच गई थी। भारतीय सेना भी डटी हुई थी लेकिन संसाधन और जवानों की कमी के चलते बटालियन को वापस बुला लिया गया। जसवंत सिंह पीछे हटने को तैयार नहीं थे और वहीं रहकर चीनी सैनिकों का सामना करने के लिए वे डटे रहे।
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चीनी सेना को दिया चकमा
स्थानीय किवंदतियों के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति की दो लड़कियों नूरा और सेला तब शहीद रावत की मदद की। शहीद जवान ने दोनों लड़कियों की मदद से फायरिंग ग्राउंड बनाया और तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखे। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि चीनी सेना को लगे कि भारतीय सेना बड़ी संख्या में वहां मौजूद है और तीनों स्थान से हमला कर रही है। नूरा और सेला के साथ-साथ जसवंत सिंह तीनों जगह पर जा-जाकर हमला करते थे और ऐसे उन्होंने बड़ी संख्या में चीनी सैनिक ढेर कर दिए। 72 घंटे यानि कि तीन दिनों तक उन्होंने चीन की सेना का मुकाबला किया लेकिन दुर्भाग्य से जो शख्स उनको राशन की आपूर्ति करता था, उसको चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया और सारी सच्चाई जानी की रावत अकेला ही उनका सामना कर रहा है। चीनी सैनिकों ने 17 नवंबर, 1962 को चारों तरफ से जसवंत सिंह को घेरकर उन पर हमला कर दिया। सेला इस हमले में मारी गई थीं लेकिन नूरा को उन्होंने जिंदा पकड़ लिया। जब रावत को चीनी सैनिकों के आने का आभास हुआ तो उन्होंने युद्धबंदी बनने की जगह पर खुद को गोली मार ली।
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रावत की बहादुरी से चीनी भी हुए प्रभावित
कहा जाता है कि चीनी सैनिक शहीद रावत का सिर काटकर साथ ले गए थे। हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने सिर भारत को लौटा दिया था। रावत की बहादुरी और साहस से चीनी सेना भी प्रभावित हुई थी और पीतल की बनी रावत की प्रतिमा भारतीय सेना को भेंट की थी। कई लोग यह भी कहते हैं कि जसवंत सिंह ने खुद को गोली नहीं मारी थी बल्कि चीनी सैनिकों ने उनको पकड़ लिया था और फांसी दे दी थी पर सच अब तक किसी को नहीं पता है। रावत की मदद करने वाली युवती सेला की याद में एक दर्रे का नाम सेला पास रखा गया है और जिस चौकी पर रावत ने आखिरी लड़ाई लड़ी थी उसका नाम अब जसवंतगढ़ रख दिया गया है।

रोज वर्दी होती है प्रेस, दिया जाता है नाश्ता
जिस जगह जसवंत आखिरी दम पर लड़ते रहे वहां उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में रावत से जुड़ी हर चीज रखी गई है। शहीद रावत के कमरे की देखभाल के लिए 5 सैनिक तैनात किए गए हैं। जवान रावत के लिए रात को बिस्तर लगाते हैं, वर्दी प्रेस करते हैं और उनके जूतों तक पॉलिश किए जाते हैं। सुबह करीब 4.30 बजे सैनिक उनके लिए चाय लेकर जाते हैं, 9 बजे नाश्ता और शाम 7 बजे खाना कमरे में ही दिया जाता है।

प्रमोशन और छुट्टी भी मिलती है
जसवंत सिंह रावत एकमात्र ऐसे जवान हैं जिनको शहीद होने के बाद प्रमोशन मिलता है। अब उनकी पोस्ट मेजर जनरल की हो गई है। उनके घर वाले आज भी ठुट्टी के लिए आवेदन करते हैं जिसके बाद सेना पूरे सम्मान के साथ उनके चित्र को उनके पैतृक गांव ले जाती है और छुट्टी खत्म होने के बाद उनको सेना की गाड़ी लेने भी जाती है।

आज भी करते हैं सीमा की रक्षा
सेना के जवानों का मानना है कि जसवंत सिंह की आत्मा आज भी चौकी की रक्षा करती है। जवानों का कहना है कि अगर कोई सैनिक ड्यूटी के दौरान सो जाता है तो वह उनको जगा देते हैं। वे आज भी सेना का पूरा-पूरा मार्गदर्शन करते हैं। सेना उनके नाम के आगे शहीद नहीं लगाती क्योंकि माना जाता हैं वे आज भी अपनी ड्यूटी देते हैं। बता दें कि इस जांबाज सैनिक जसवंत सिंह रावत के जीवन पर एक फिल्म भी बनी है, जिसका नाम 72 Hours Martyr Who Never Died) है। इस फिल्म को अविनाश ध्यानी ने बनाया था और उन्हीं ने इसमें जसवंत सिंह का किरदार निभाया था।


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Anil dev

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