24 घंटे की सर्जरी के बाद अलग हुए जग्गा-बालिया, 8 बार बदली गई त्वचा

punjabkesari.in Sunday, Mar 18, 2018 - 02:43 PM (IST)

नेशनल डेस्कः अलग होकर घर लौटेंगे जग्गा-बालिया ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंस (एम्स) दिल्ली की देखरेख में आठ महीने गुजारने के बाद जुड़वां जग्गा (जगन्नाथ) और बलिया (बलराम) को वापस भुवनेश्वर भेजने का फैसला लिया गया था। गत दिनों एम्स डायरैक्टर, सीनियर डॉक्टरों तथा एम्स भुवनेश्वर के विशेषज्ञों के समूह में हुई बैठक में फैसला हुआ कि ये जुड़वां भुवनेश्वर एम्स भेजे जाने की स्थिति में हैं।  इस बारे में ओडिशा सरकार को रिपोर्ट सौंपी जानी थी परन्तु दोनों के माता-पिता के आग्रह के बाद अब उन्हें कुछ और वक्त दिल्ली एम्स में ही रखा जा सकता है। ओडिशा के कंधमाल जिले के जग्गा तथा बलिया जन्म से ही सिर से जुड़े थे। चिकित्सकीय भाषा में इस तरह सिर से जुड़े जुड़वां बच्चों को ‘क्रानियोपागस कनज्वाइंड ट्विन्स’ कहा जाता है। यह एक बेहद विरल स्थिति है जिसकी संभावना 25 लाख जन्मों में से एक होती है।
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गत वर्ष अगस्त में डॉक्टरों की एक विशेषज्ञ टीम ने दोनों को अलग करने के लिए सर्जरी शुरू की थी। पहली सर्जरी 24 घंटे चली थी। यह बेहद जटिल ऑप्रेशन था क्योंकि दोनों के मस्तिष्क को उनके दिलों से खून पहुंचाने वाली नसें एक थीं। इस वजह से पहली सर्जरी में डॉक्टरों ने उन दोनों के मस्तिष्कों को कुछ हद तक अलग करके दोनों के मस्तिष्कों के लिए अलग-अलग रक्तवाहिकाएं तैयार की थीं। फिर 26 अक्तूबर को दूसरे चरण की सर्जरी में दोनों को सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया था। तब से चिकित्सक दोनों के सिर पर 8 बार त्वचा लगा चुके हैं। उनके सिरों की सुरक्षा के लिए डॉक्टर एक विशेष तरह से डिजाइन किए हैल्मेट का प्रयोग कर रहे हैं। जग्गा तथा बलिया को दिन भर हैल्मेट पहनना होता है जिसे उनके सोते वक्त उतार दिया जाता है। इन हैल्मेट्स को बेंगलूर में बनाया गया है।

दोनों बच्चों की सेहत में बहुत सुधार हुआ है और एम्स के चिकित्सकों का कहना है कि अब वे इतने बेहतर हैं कि उन्हें भुवनेश्वर एम्स भेजा जा सकता है परन्तु इस बारे में अभी अंतिम फैसला लिया जाना है। उन दोनों के आगे के उपचार तथा इसकी रणनीति के बारे में उन्होंने भुवनेश्वर एम्स के चिकित्सकों के साथ चर्चा की है। दोनों के माता-पिता को भी उनकी देखभाल के बारे में अच्छे से सिखा दिया गया है। जानकारों का कहना है कि विश्व भर में अब तक सिर से जुड़े जुड़वां बच्चों के 50 ऑप्रेशन हुए हैं और उनमें से कुछ ही जिंदा बच सके। इस तरह की सर्जरी में सफलता की दर 25 प्रतिशत से भी कम होती है।


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