जगदीप धनखड़ ने कोचिंग सेंटरों को लेकर जताई गंभीर चिंता, कहा ‘पोचिंग सेंटर’ बन गए हैं,
punjabkesari.in Saturday, Jul 12, 2025 - 07:42 PM (IST)

नेशनल डेस्क : भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कोचिंग सेंटरों की बढ़ती समस्या पर चिंता जताते हुए कहा कि ये अब ‘पोचिंग सेंटर’ बन चुके हैं, जो युवाओं की प्रतिभा को सीमित करने वाले काले छिद्र बन गए हैं। उन्होंने कहा कि कोचिंग सेंटर अनियंत्रित रूप से फैल रहे हैं और यह हमारे भविष्य यानी युवाओं के लिए एक गंभीर संकट बनता जा रहा है। धनखड़ ने स्पष्ट किया कि इस समस्या से निपटना बेहद आवश्यक है क्योंकि शिक्षा को इस तरह कलंकित और दूषित नहीं होने दिया जा सकता।
स्वदेशी तकनीक विकसित करने पर दिया जोर
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब देश किसी सैन्य आक्रमण से नहीं, बल्कि विदेशी डिजिटल बुनियादी ढांचे पर निर्भरता से कमजोर और पराधीन होगा। उन्होंने बताया कि सेनाएं अब एल्गोरिद्म में बदल गई हैं और संप्रभुता की रक्षा का संघर्ष तकनीकी स्तर पर लड़ा जाएगा। उन्होंने तकनीकी नेतृत्व को नई राष्ट्रभक्ति का आधार बताया और कहा कि हम एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं जहां तकनीकी नेतृत्व देशभक्ति की नई सीमा रेखा है। धनखड़ ने कहा कि हमें तकनीकी नेतृत्व में वैश्विक अगुवा बनना होगा।
रक्षा क्षेत्र में आयात-निर्भरता पर भी उन्होंने चिंता व्यक्त की और कहा कि यदि हम रक्षा के लिए बाहर से तकनीकी उपकरण प्राप्त करते हैं तो यह देश को ठहराव की स्थिति में ला सकता है। डिजिटल युग में वैश्विक शक्ति संरचनाओं की बदलती प्रकृति की ओर इशारा करते हुए धनखड़ ने कहा कि 21वीं सदी का युद्धक्षेत्र अब भूमि या समुद्र नहीं है, बल्कि ‘कोड, क्लाउड और साइबर’ क्षेत्र है।
कोचिंग सेंटरों को लेकर क्या बोले?
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT), कोटा के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए धनखड़ ने गुरुकुल प्रणाली का उल्लेख किया और कहा कि हमारे संविधान की 22 दृश्य-प्रतिमाओं में एक गुरुकुल की छवि भी शामिल है, जो ज्ञानदान में हमारी परंपरा को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि कोचिंग सेंटरों को अपने ढांचे का उपयोग कौशल केंद्रों में बदलना चाहिए। उन्होंने नागरिक समाज और जनप्रतिनिधियों से इस समस्या की गंभीरता को समझकर शिक्षा क्षेत्र में पुनर्संयम लाने के लिए एकजुट होने की अपील की और कहा कि हमें कौशल आधारित कोचिंग की आवश्यकता है।
धनखड़ ने अंकों की होड़ के दुष्परिणामों पर भी चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि पूर्णांक और मानकीकरण के प्रति जुनून ने जिज्ञासा को समाप्त कर दिया है, जो मानव बुद्धिमत्ता का स्वाभाविक हिस्सा है। उन्होंने बताया कि सीटें सीमित होने के बावजूद कोचिंग सेंटर हर जगह तेजी से फैल रहे हैं और ये वर्षों तक छात्रों के मन को एक ही ढर्रे में ढालते हैं, जिससे उनकी सोचने की क्षमता प्रभावित होती है और कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।