ISRO ने अध्ययन के लिए Proba - 3 उपग्रहों को सूर्य की और भेजा, अंतरिक्ष में एक और मील का पत्थर
punjabkesari.in Thursday, Dec 05, 2024 - 06:53 PM (IST)
नेशनल डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने विश्वसनीय रॉकेट, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV), के माध्यम से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के दो उपग्रहों – प्रोबा-3 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा। यह प्रक्षेपण 5 दिसंबर 2024 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुआ। प्रक्षेपण के एक दिन पहले, 4 दिसंबर को उपग्रहों में कुछ "विसंगतियाँ" पाई गई थीं, जिसके कारण प्रक्षेपण को स्थगित करना पड़ा था। हालांकि, सभी समस्याओं का समाधान करके 5 दिसंबर को इसे पुनः सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
प्रोबा-3 मिशन का मुख्य उद्देश्य सूर्य के बाहरी वातावरण (कोरोना) का अध्ययन करना और उन्नत गठन-उड़ान तकनीकों का परीक्षण करना है। यह मिशन सूर्य ग्रहण के दौरान उत्पन्न होने वाले प्रभावों का अनुकरण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और इसमें दो उपग्रहों को अत्यधिक सटीकता से एक दूसरे के पास उड़ने के लिए तैयार किया गया है। इन उपग्रहों में से एक कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट (CSC) और दूसरा ऑकुल्टर स्पेसक्राफ्ट (OSC) है। इन दोनों उपग्रहों का उद्देश्य सूर्य के कोरोनाग्राफ का अध्ययन करना है, और वे एक साथ बहुत करीबी और सटीक उड़ान भरते हुए सूर्य के बाहरी वातावरण का निरीक्षण करेंगे।
प्रोबा-3 मिशन की विशेषताएँ
- गठन-उड़ान तकनीक: प्रोबा-3 मिशन में दो उपग्रहों को एक सटीक गठन में उड़ाने का काम किया गया है। ये दोनों उपग्रह एक दूसरे से कुछ दूरी पर उड़ेंगे और एक कठोर संरचना की तरह दिखेंगे, जैसे कि एक अकेला उपग्रह। यह तकनीक पहले कभी नहीं देखी गई है और पूरी दुनिया में इसे सबसे पहले ESA द्वारा किया जा रहा है।
- सूर्य ग्रहण का अनुकरण: इन उपग्रहों की उड़ान ऐसी होगी कि एक उपग्रह दूसरे के पीछे आकर सूर्य के कुछ हिस्से को ढकने का काम करेगा, जिससे सूर्य ग्रहण का सटीक अनुकरण हो सके।
- मिनी-उपग्रह: मिशन में शामिल दोनों उपग्रह मिनी-उपग्रह हैं और इनका कुल वजन 545 किलोग्राम है। इन उपग्रहों का उद्देश्य उन्नत तकनीकों का प्रदर्शन करना और सूर्य के कोरोनाग्राफ का निरीक्षण करना है।
PSLV रॉकेट और लॉन्च विवरण
यह मिशन ISRO की वाणिज्यिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) द्वारा एक समर्पित वाणिज्यिक प्रक्षेपण के तहत किया गया।
- रॉकेट: पीएसएलवी (Polar Satellite Launch Vehicle) रॉकेट, जिसका वजन उड़ान के समय 320 टन था, ने दोनों उपग्रहों को अपनी 61वीं उड़ान में अंतरिक्ष में भेजा।
- उड़ान विवरण: लॉन्च के करीब 18 मिनट बाद, उपग्रहों को पृथ्वी से लगभग 600 किमी की ऊँचाई पर तैनात किया गया। यह पीएसएलवी रॉकेट द्वारा किए गए एक और महत्वपूर्ण मिशन को दर्शाता है।
प्रोबा-3 मिशन की तकनीकी सफलता
यह मिशन ESA का पहला सटीक गठन-उड़ान (formation flying) मिशन है। इसके तहत दोनों उपग्रहों को एक साथ उड़ाया जाएगा, जो एक दूसरे के साथ अत्यधिक करीबी दूरी पर उड़ान भरेंगे। इस मिशन में उपग्रहों का रुख और पृथक्करण सटीक रूप से नियंत्रित किया जाएगा। इससे सूर्य के कोरोनाग्राफ का एक अद्वितीय अध्ययन किया जाएगा और नई तकनीकों का विकास किया जाएगा। इससे पहले, ESA ने 2001 में प्रोबा-1 मिशन लॉन्च किया था, जो पूरी तरह से सफल रहा और दो दशकों से अधिक समय तक काम करता रहा। यह मिशन अब तक एक मील का पत्थर माना जाता है, और प्रोबा-3 मिशन को इसी सफलता की कड़ी में देखा जा रहा है।
कैसा रहा इसमें भारत और यूरोप का सहयोग
यह इसरो और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के बीच बढ़ते सहयोग का एक और उदाहरण है। इस मिशन को भारतीय रॉकेट पर दूसरा ESA उपग्रह प्रक्षेपण माना जा रहा है। इससे पहले 2001 में प्रोबा-1 मिशन भी ISRO के पीएसएलवी रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया था। प्रोबा-1 की सफलता ने ESA और ISRO के बीच मजबूत साझेदारी को दर्शाया था, और अब प्रोबा-3 उसी सफलता को आगे बढ़ा रहा है।
न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की भूमिका
NSIL ने इस मिशन के लिए प्रक्षेपण सेवा प्रदान की। NSIL ISRO की वाणिज्यिक शाखा है, जो अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय ग्राहकों के लिए वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करती है। यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस प्रक्षेपण ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक सफलता दिलाई है। प्रोबा-3 मिशन ने न केवल सूर्य के कोरोनाग्राफ का अध्ययन करने का एक नया तरीका प्रस्तुत किया, बल्कि इसने ISRO की क्षमताओं और इसके वाणिज्यिक मिशनों की सफलता को भी साबित किया। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को और भी ऊँचाइयों पर ले जाएगा और वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में भारत की भूमिका को मजबूती से स्थापित करेगा।