ISRO को लगा बड़ा झटका, साल के पहले मिशन में तकनीकी समस्या आई
punjabkesari.in Monday, Feb 03, 2025 - 11:57 AM (IST)
नेशनल डेस्क: ISRO ने हाल ही में अपना 100वां रॉकेट मिशन लॉन्च किया था, लेकिन इस मिशन से जुड़ी एक बुरी खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि टेक्नीकल खराबी के चलते नेविगेशन सैटेलाइट एनवीएस-02 कारण अपनी तय कक्षा में नहीं पहुंच सका। ISRO ने अपनी वेबसाइट पर जानकारी देते हुए बताया कि सैटेलाइट को सही जगह पर पहुंचाने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जा रही थी, उसमें कोई समस्या आ गई।
सैटेलाइट के ऑर्बिट को बढ़ाने के लिए इसके इंजन में ऑक्सीडाइज़र पहुंचाने वाले वॉल्व नहीं खुल पाए, जिसकी वजह से इसकी ऊंचाई बढ़ गई और आगे की प्रक्रिया में मुश्किलें आ गईं। यह सैटेलाइट यू आर राव सैटेलाइट सेंटर में तैयार किया गया था और इसे जियोस्टेशनरी कक्षा में भेजा जाना था। लेकिन इसके तरल ईंधन इंजन में खराबी के कारण अब इसे सही कक्षा में भेजने में परेशानी हो रही है।
साल 2025 का पहला मिशन था, जिसे ISRO ने बुधवार सुबह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से GSLV-F15 रॉकेट के जरिए NVS-02 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। यह मिशन ISRO के नए अध्यक्ष वी नारायणन के लिए भी खास था, क्योंकि उनके नेतृत्व में यह पहली लॉन्चिंग थी। यह इसरो का इस साल का पहला बड़ा मिशन भी था। हालांकि, अब तकनीकी खराबी के कारण मिशन की सफलता पर सवाल उठने लगे हैं।
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𝗡𝗩𝗦-𝟬𝟮 𝗠𝗶𝘀𝘀𝗶𝗼𝗻 𝗨𝗽𝗱𝗮𝘁𝗲:
— ISRO InSight (@ISROSight) February 2, 2025
The orbit raising operations towards positioning the satellite to the designated orbital slot could not be carried out as the valves for admitting the oxidizer to fire the thrusters for orbit raising did not open.
Alternate mission… pic.twitter.com/T4JeuOdMln
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इसरो के वैज्ञानिक अब इस सैटेलाइट का दूसरा उपयोग खोजने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि इसे किसी तरीके से जानकारी प्राप्त करने के काम में लाया जा सके। क्योंकि अब तक की जानकारी के अनुसार, सैटेलाइट को जिस उद्देश्य से भेजा गया था, वह पूरा करना मुश्किल हो सकता है। इसरो के मुताबिक, सैटेलाइट सुरक्षित है और फिलहाल एक अंडाकार कक्षा में घूम रहा है।
एनवीएस-02 सैटेलाइट का मुख्य उद्देश्य भारत के नेविगेशन सिस्टम, नविक (NavIC) को और मजबूत करना था। नविक भारत का खुद का क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम है, जो अमेरिका के जीपीएस (GPS) की तरह काम करता है। इसे भारत ने 1999 में कारगिल युद्ध के बाद विकसित करना शुरू किया था, जब भारत को अमेरिका से उच्च-स्तरीय जीपीएस डेटा नहीं मिल पाया था, और इसके बाद सरकार ने अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम बनाने का फैसला किया।