Expert report:  ईरान के ब्रिक्‍स में शामिल होने से बढ़ेगी भारत की टेंशन, अमेरिका के भी बढ़ेंगे दुश्मन

Sunday, Jul 03, 2022 - 01:36 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः  चीन और रूस के सदस्‍य देश वाले ब्रिक्‍स में  ईरान के शामिल होने पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत और अमेरिका के संबंधों पर इसका क्‍या प्रभाव पड़ेगा। ब्रिक्‍स के इस बदलाव को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि इससे  भारत के समक्ष नई चुनौती खड़ी होगी।  ब्रिक्‍स में ईरान के शामिल होने से नया बदलाव आना तय है ।  विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत के अनुसार ईरान ने ब्रिक्‍स का हिस्‍सा बनने के लिए आवेदन किया है। ईरान के विदेश मंत्री के इस ऐलान के बाद  सवाल यह है कि क्‍या ईरान में प्रवेश से भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी।

 

यही नहीं  गर ईरान ब्रिक्स में शामिल होता है तो इस संगठन में अमेरिका विरोधी देशों की संख्या में इजाफा होगा। ईरान लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, जिससे उसके आर्थिक हालात खराब हुए हैं। उसे भी नए बाजार चाहिए और ब्रिक्स उसके लिए एक बेहतरीन मौका हो सकता है। ऐसे में ईरान और भारत के संबंधों के बीच अमेरिका के साथ संतुलन बनाना भारत के लिए एक चुनौती बन सकता है।

 

चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने ईरानी राष्‍ट्रपति इब्राहिम रईसी को ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में हिस्‍सा लेने के लिए बुलाया था। चीन के इस कदम से भारत की चिंता लाजमी है। प्रो पंत इसे चीन और अमेरिका के आपसी टकराव व मतभेद के बीच भारत के संतुलन और अपना महत्व बनाए रखने की कोशिशों के नजरिए से देखते हैं।
 उन्‍होंने कहा कि ब्रिक्स में और देशों के शामिल होने की चर्चा पहले भी होती रही है, लेकिन चीन और रूस की पश्चिम विरोधी नीति और भारत के क्‍वाड जैसे पश्चिमी समर्थित समूह में शामिल होना ईरान की सदस्यता को अहम बना देता है। इसका असर न सिर्फ ब्रिक्स पर पड़ेगा, बल्कि ये अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चल रहे भारत की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा।

 

प्रो पंत ने कहा कि इससे भारत के लिए स्वतंत्र विदेश नीति का रास्ता और कठिन हो सकता है। साथ ही ब्रिक्स का महत्व भी कम हो सकता है। अनुमान ये भी है कि इससे भारत की अमेरिका के लिए अहमियत भी बढ़ सकती है।  प्रो पंत  की माने तो ब्रिक्स को आर्थिक तौर पर पश्चिम के विकल्प के तौर पर गठित किया गया है ताकि पश्चिम के साथ मोलभाव की ताकत बढ़ सके। इसके साथ उस पर निर्भरता भी कम हो सके। अब चीन इस गुट को अमेरिका विरोध में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। 14वें सम्मेलन में भी चीन ने अमेरिका पर निशाना साधते हुए गुटबाजी में शामिल नहीं होने और शीत युद्ध की मानसिकता को बढ़ावा ना देने की बात कही थी।

 

उधर, इस बार रूस भी खुलकर चीन के साथ दिख रहा है। लेकिन, जब चीन उभरती हुई ताकत बना तो अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार कियाय़चीन को भारत के ज़रिए एशिया में ही चुनौती दी गई। ये भारत के पक्ष में था क्योंकि उसका चीन के साथ सीमा विवाद चलता रहा है।  हालांकि, भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति की वकालत करता रहा है। भारत कहता है कि वह किसी एक गुट का हिस्सा नहीं रहेगा और अपने हित के अनुसार समूहों से जुड़ेगा।

Tanuja

Advertising