रूस से S-400 की खरीद पर भारत को नहीं करना पड़ेगा प्रतिबंधों का सामना, काट्सा से छूट वाला बिल पास

Saturday, Jul 16, 2022 - 12:27 AM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः अमेरिका की प्रतिनिधि सभा ने भारत को रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के लिए सीएएटीएसए प्रतिबंधों से खास छूट दिलाने वाले एक संशोधित विधेयक को बृहस्पतिवार को पारित कर दिया। भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना द्वारा पेश किए गए इस संशोधित विधेयक में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन से भारत को चीन जैसे आक्रामक रुख वाले देश को रोकने में मदद करने के लिए ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट' (सीएएटीएसए) से छूट दिलाने के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया गया है। राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकार कानून (एनडीएए) पर सदन में चर्चा के दौरान बृहस्पतिवार को ध्वनि मत से यह संशोधित विधेयक पारित कर दिया गया।

खन्ना ने कहा, ‘‘अमेरिका को चीन के बढ़ते आक्रामक रूख के मद्देनजर भारत के साथ खड़ा रहना चाहिए। भारत कॉकस के उपाध्यक्ष के तौर पर मैं हमारे देशों के बीच भागीदारी को मजबूत करने और यह सुनिश्चित करने पर काम कर रहा हूं कि भारतीय-चीन सीमा पर भारत अपनी रक्षा कर सकें।'' उन्होंने कहा, ‘‘यह संशोधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है और मुझे यह देखकर गर्व हुआ कि इसे दोनों दलों के समर्थन से पारित किया गया है।'' सदन में अपनी टिप्पणियों में खन्ना ने कहा कि अमेरिका-भारत भागीदारी से ज्यादा महत्वपूर्ण अमेरिका के रणनीतिक हित में और कुछ भी इतना जरूरी नहीं है।

विधेयक में कहा गया है कि ‘यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीस' (आईसीईटी) दोनों देशों में सरकारों, शैक्षणिक समुदाय और उद्योगों के बीच करीबी साझेदारी विकसित करने के लिए एक स्वागत योग्य और आवश्यक कदम है ताकि कृत्रिम बुद्धिमता, क्वांटम कम्प्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी, एरोस्पेस और सेमीकंडक्टर विनिर्माण में नवीनतम प्रगति को अपनाया जा सकें।

विधेयक कि इंजीनियर और कम्प्यूटर वैज्ञानिकों के बीच ऐसी भागीदारी यह सुनिश्चित करने में अहम है कि अमेरिका और भारत के साथ ही दुनियाभर में अन्य लोकतांत्रिक देश नवोन्मेष और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा दे सकें, ताकि ये रूस और चीन की प्रौद्योगिकी को पछाड़ सकें। वर्ष 2017 में पेश सीएएटीएसए के तहत रूस से रक्षा और खुफिया लेन-देन करने वाले किसी भी देश के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का प्रावधान है। इसे 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे और 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मॉस्को के कथित हस्तक्षेप के जवाब में लाया गया था।

हिंद महासागर में PLAN से बढ़ सकता है तनाव
पिछले दो दशकों में अपने सैन्य आधुनिकीकरण और विस्तार के चलते चीन दुनिया की सबसे प्रभावशाली ताकतों में से एक बनने की कगार पर पहुंच गया है। विशेष रूप से, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN), संख्यात्मक रूप से सबसे बड़ी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का केंद्र बिंदु रही है। दक्षिण चीन सागर के ज्यादातर हिस्सों में पहले से आक्रामक गतिविधियां देखी जा रही हैं और अब सीसीपी PLAN का इस्तेमाल हिंद महासागर में करना चाह रही है जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बिगाड़ सकता है।

चीन की नजरें अब हिंद महासागर पर
2020 तक, PLAN ने 355 जहाजों को इकट्ठा किया है जिनमें से 145 प्रमुख लड़ाकू जहाज, छह परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन, छह परमाणु-संचालित अटैक सबमरीन और 46 डीजल-संचालित अटैक सबमरीन शामिल हैं। बीजिंग हिंद महासागर में अनिश्चित काल तक बलों को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। चीन ने कंबोडिया, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान, जिबूती, केन्या, तंजानिया, संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया में बंदरगाहों पर बड़ा निवेश किया है।

चीन को रोक सकते हैं भारत-अमेरिका सैन्य संबंध
हिंद महासागर से दुनिया का 75 फीसदी से अधिक व्यापार होता है जिससे पूर्वी एशिया, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के संसाधन संपन्न देशों की सीमाएं जुड़ती हैं। यह दुनिया की 14 फीसदी से अधिक जंगली मछलियों का घर भी है। इस क्षेत्र को नियंत्रित करके चीन 'अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के नेता' के रूप में अमेरिका की छवि को कमजोर करना चाहता है। लेकिन भारत-अमेरिका सैन्य संबंध चीन को पीछे धकेल सकते हैं। इसलिए अगर अमेरिका हिंद महासागर में चीन के सैन्य विस्तार का मुकाबला करना चाहता है तो वह भारत के साथ सुरक्षा संबंधों को खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठा सकता।

भारत-रूस से जुड़े अमेरिका के हित
भारत चीन को रोकने के उद्देश्य से अपनी क्षमता को मजबूत करने के लिए एस-400 का इस्तेमाल कर रहा है। अमेरिका को रूस से भारत के एस-400 खरीदने पर अब ऐतराज नहीं है क्योंकि यह बड़े पैमाने पर चीन को काउंटर करता है। अमेरिका के लिए यह बड़ी भूल होगी अगर वह भारत को ऐसा हथियार खरीदने से रोके जिससे खुद उसके हित भी जुड़े हुए हैं। साथ ही CAATSA को लेकर अनिश्चितता ने भारत में अमेरिकी हथियारों के कार्यक्रम को भी मुश्किल में डाल दिया था।

 

Yaspal

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