सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए बाघ संरक्षण के कड़े नियम, कोर क्षेत्र में सफारी और रात के पर्यटन पर रोक
punjabkesari.in Monday, Nov 24, 2025 - 09:29 PM (IST)
नेशनल डेस्क: भारत के बाघ अभ्यारण्यों (Tiger Reserves) की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया है कि टाइगर सफारी (Tiger Safaris) का संचालन केवल "गैर-वन भूमि या बफर क्षेत्रों में खराब हो चुकी वन भूमि पर ही किया जा सकता है, बशर्ते वे बाघ गलियारे (Tiger Corridor) का हिस्सा न हों।" यह 80 पन्नों का फैसला अनियमित पर्यटन और अन्य गतिविधियों से संवेदनशील बाघ आवासों को होने वाले पारिस्थितिक नुकसान को उलटने की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करता है।
कोर और क्रिटिकल आवास में सफारी प्रतिबंधित
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, जस्टिस ए जी मसीह और जस्टिस ए एस चांदुरकर की पीठ ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अंदर हुए उल्लंघनों पर एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों की समीक्षा की। कोर्ट ने "स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया कि कोर या क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट क्षेत्र में टाइगर सफारी की अनुमति नहीं दी जाएगी।" न्यायालय ने साफ किया कि संवेदनशील आवासों में व्यावसायिक हितों पर बाघों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सफारी के लिए शर्त: बचाव और पुनर्वास केंद्र से जुड़ाव
टाइगर सफारी किन शर्तों के तहत संचालित हो सकती है, इस पर कोर्ट ने स्पष्टता दी। इसने कहा कि सफारी की अनुमति "केवल बाघों के लिए एक पूर्ण विकसित बचाव और पुनर्वास केंद्र के साथ मिलकर दी जाएगी, जहाँ संघर्ष वाले, घायल या छोड़े गए जानवरों को पुनर्वास के लिए रखा जाता है।" यह सुनिश्चित करता है कि पर्यटन केवल मनोरंजन के बजाय बाघों के कल्याण और पुनर्वास से निकटता से जुड़ा हो।
इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZs) का निर्माण अनिवार्य
शीर्ष अदालत ने इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZs) पर भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि इन टाइगर रिजर्व के लिए ESZs का निर्माण MoEF&CC (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) द्वारा 23 अप्रैल 2018 को जारी पत्र का पालन करेगा, जो यह स्पष्ट करता है कि ESZs में शामिल न्यूनतम क्षेत्र टाइगर रिजर्व का बफर या फ्रिंज क्षेत्र होगा। इसके साथ ही, यह भी अनिवार्य किया गया है कि सभी टाइगर रिजर्व के पास एक वर्ष के भीतर आधिकारिक रूप से अधिसूचित ESZs होने चाहिए।
बफर और फ्रिंज क्षेत्रों में सख्त प्रतिबंध
फैसले में बफर और फ्रिंज क्षेत्रों में गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। निम्नलिखित गतिविधियों पर रोक है:
वाणिज्यिक खनन (Commercial Mining)
आरा मशीनें (Sawmills)
प्रदूषणकारी उद्योग
बड़े पैमाने पर जलविद्युत परियोजनाएँ
विदेशी प्रजातियों का प्रवेश
खतरनाक पदार्थों का उत्पादन
कम ऊँचाई पर उड़ान भरने वाले विमान
प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में अपशिष्ट डालना
उचित अनुमति के बिना पेड़ काटना
हालांकि, कुछ विनियमित गतिविधियाँ, जैसे सड़कों का चौड़ीकरण और रात में नियंत्रित वाहनों की आवाजाही की अनुमति हो सकती है, लेकिन उन्हें सख्त दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।
इको-टूरिज्म और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा
कोर्ट ने पर्यटन के प्रबंधन पर भी ध्यान दिया। उसने कहा कि "इकोटूरिज्म बड़े पैमाने के पर्यटन (Mass Tourism) जैसा नहीं हो सकता और इसे पर्याप्त रूप से विनियमित किया जाना चाहिए... नए इको-फ्रेंडली रिसॉर्ट्स को बफर क्षेत्र में अनुमति दी जा सकती है लेकिन पहचाने गए गलियारों में अनुमति नहीं दी जाएगी।" इसके अतिरिक्त, "होमस्टे और समुदाय-प्रबंधित प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए," जिससे स्थानीय समुदायों को लाभ पहुँचाने वाले टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
रात का पर्यटन और मोबाइल उपयोग पर प्रतिबंध
वन्यजीवों की परेशानी को कम करने के लिए, शीर्ष अदालत ने कोर आवासों के भीतर पर्यटन क्षेत्रों में मोबाइल फोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया और रात के पर्यटन पर पूर्ण रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा, "जिन टाइगर रिजर्व में सड़कें कोर/क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट से होकर गुजरती हैं, वहाँ सख्त रात का विनियमन (एम्बुलेंस/आपातकाल को छोड़कर शाम से सुबह तक कोई यातायात नहीं) लागू करने की आवश्यकता है।"
राज्य सरकारों को भी अनुपालन के लिए स्पष्ट समय सीमा दी गई है। उन्हें तीन महीने के भीतर बाघ संरक्षण योजनाएँ (Tiger Conservation Plans) तैयार या संशोधित करनी होंगी और छह महीने के भीतर कोर और बफर क्षेत्रों को अधिसूचित करना होगा। इन निर्देशों का उद्देश्य बाघ संरक्षण और अभ्यारण्यों के आसपास मानवीय गतिविधियों के प्रबंधन के लिए एक कानूनी रूप से लागू करने योग्य ढाँचा तैयार करना है।
बाघों के आवासों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए, हानिकारक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने, पर्यटन को विनियमित करने और कोर तथा बफर क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के साथ-साथ कोर्ट ने इको-फ्रेंडली पर्यटन पहलों के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देने पर भी ज़ोर दिया है। भारत में आवास के नुकसान और मानवीय हस्तक्षेप से बाघों की आबादी पर लगातार खतरा बना हुआ है। उम्मीद है कि ये दिशानिर्देश बाघों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण ढाँचे के रूप में कार्य करेंगे।
