भारत की चाल से चौंका अमेरिका! मोदी के फैसले से ट्रंप को लगेगा झटका?
punjabkesari.in Thursday, Sep 18, 2025 - 10:38 AM (IST)

नई दिल्ली: भारत ने रूस-बेलारूस के बड़े सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेकर अमेरिका को हैरान कर दिया है। इस कदम से अमेरिका और खासकर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। जानिए क्यों ये फैसला महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
भारत ने एक बार फिर अपनी वैश्विक रणनीतिक भागीदारी का दमदार परिचय दिया है। दुनिया की निगाहों में उस वक्त हलचल मच गई जब भारतीय सेना ने रूस और बेलारूस द्वारा आयोजित 'Zapad 2025' (ज़ापाड) नामक विशाल संयुक्त सैन्याभ्यास में हिस्सा लिया। पांच दिन तक चले इस युद्धाभ्यास में भारत की भागीदारी न केवल उसके रूस और बेलारूस के साथ मजबूत सैन्य रिश्तों को दर्शाती है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में भारत की सक्रिय और स्वतंत्र भूमिका को भी उजागर करती है।
भारत की भागीदारी कितनी बड़ी थी?
भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट के 65 जवानों का एक दल इस युद्धाभ्यास में शामिल हुआ, जिसकी पुष्टि भारत के रक्षा मंत्रालय ने की है। यह टीम रूस के आमंत्रण पर ज़ापाड 2025 में पहुंची और वहां सैन्य रणनीतियों, हथियारों के समन्वय और बहुराष्ट्रीय युद्ध संचालन में हिस्सा लिया।
‘ज़ापाड 2025’ कितना विशाल था?
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कुल 1 लाख सैनिक शामिल हुए
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333 फाइटर जेट्स और अन्य विमानों की तैनाती
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247 युद्धपोत और पनडुब्बियाँ अभ्यास में शामिल
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41 ट्रेनिंग लोकेशन पर युद्धाभ्यास हुआ – रूस और बेलारूस में
यह अब तक का सबसे बड़ा पूर्वी यूरोपीय सैन्याभ्यास माना जा रहा है।
अभ्यास का उद्देश्य क्या था?
‘ज़ापाड 2025’ का मूल उद्देश्य था:
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युद्ध-स्तर की तैयारियों का परीक्षण
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रक्षा सहयोग को मजबूत करना
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नाटो जैसी शक्तियों के संभावित खतरों से निपटने की रणनीति पर काम करना
रूस और बेलारूस के लिए यह अभ्यास एक स्ट्रैटजिक मेसेज भी था कि वे किसी भी बाहरी खतरे से निपटने को तैयार हैं।
कौन-कौन से देश हुए शामिल?
एक्टिव पार्टिसिपेंट्स:
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भारत
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ईरान
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बांग्लादेश
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बुर्किना फासो
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माली
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नाइजर
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कांगो (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक)
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ताजिकिस्तान
ऑब्जर्वर के तौर पर शामिल:
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चीन
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कंबोडिया
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म्यांमार
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कज़ाकिस्तान
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सर्बिया
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यूएई
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थाईलैंड
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पाकिस्तान
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उत्तर कोरिया
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क्यूबा
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मंगोलिया
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नॉर्थ कोरिया
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नाइरागुआ
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उज़्बेकिस्तान
यह दिलचस्प है कि अमेरिका के सैन्य अधिकारी भी पहली बार इस अभ्यास में निरीक्षक के तौर पर पहुंचे – जो इस अभ्यास के महत्व को दर्शाता है।
अमेरिका की बढ़ी चिंता?
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पहले से ही अमेरिका और नाटो देशों की रूस से तनातनी बनी हुई है। ऐसे में भारत जैसे कूटनीतिक रूप से संतुलित देश का इस अभ्यास में शामिल होना वाशिंगटन के लिए चिंता की बात बन सकता है। खासतौर पर तब जब भारत-अमेरिका के बीच टैरिफ और व्यापारिक नीतियों को लेकर हाल के दिनों में मतभेद सामने आए हैं, और अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए। अब भारत के इस कदम को अमेरिका एक "जियोपॉलिटिकल सिग्नल" की तरह देख सकता है।
भारत की रणनीति क्या कहती है?
भारत लंबे समय से “स्टेबल मल्टी-अलाईंस पॉलिसी” पर काम कर रहा है – यानी वो अमेरिका, रूस और अन्य देशों के साथ अपने रिश्ते संतुलित रखना चाहता है। रूस से भारत के रक्षा और ऊर्जा संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत हैं। वहीं, भारत बेलारूस के साथ भी औद्योगिक सहयोग, रक्षा ट्रेनिंग और टेक्नोलॉजी एक्सचेंज में साझेदार है। ऐसे में भारत की भागीदारी सिर्फ सैन्य ही नहीं, बल्कि रणनीतिक विश्वास का भी प्रतीक है।