नासा का चौंकाने वाला दावा: दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में इस वजह से घुट रहा लोगों का दम

punjabkesari.in Tuesday, Dec 16, 2025 - 05:30 PM (IST)

नेशनल डेस्क : अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को लेकर चौंकाने वाला दावा किया है। नासा का कहना है कि पराली जलाने के समय में हुए दो घंटे के बदलाव ने इन इलाकों में प्रदूषण को और गंभीर बना दिया है। नासा पिछले एक दशक से भूस्थिर उपग्रह GEO-KOMPSAT-2A से पराली जलाने का डेटा इकट्ठा कर रहा है और इसी आधार पर रिपोर्ट जारी की गई है।

पराली जलाने का प्रभाव
नासा ने बताया कि हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों के किसान धान की कटाई के बाद पौधों के अवशेष जलाते हैं। इसके कारण उत्तरी भारत के इंडो-गंगा मैदान में धुएं और धुंध की लंबी-लंबी परतें बन जाती हैं। नासा का कहना है कि यह धुआं अन्य प्रदूषण स्रोतों जैसे धूल, गैस और कणों के साथ मिलकर गंभीर धुंध का कारण बनता है।

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का गंभीर असर
दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप ले चुका है। बीते कुछ दिनों से राजधानी में AQI 600 के पार जा चुका है। प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में ग्रैप-4 लागू कर दिया गया है। सरकार ने छोटे बच्चों और बुजुर्गों को घर के अंदर रहने की सलाह दी है।

विदेशों ने भी जारी की चेतावनी
ब्रिटेन, कनाडा और सिंगापुर समेत कई देशों ने दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले अपने नागरिकों को घर के अंदर रहने और सावधानी बरतने की सलाह दी है। सिंगापुर दूतावास ने विशेष चेतावनी देते हुए कहा कि आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलें।

समय में बदलाव ने बढ़ाई समस्या
नासा के हिरेन जेठवा, वायुमंडलीय वैज्ञानिक, ने बताया कि पहले पराली दोपहर 1-2 बजे के आसपास जलाई जाती थी, जबकि अब इसका समय बदलकर शाम 4-6 बजे कर दिया गया है। इससे पराली जलाने की घटनाएं रिकॉर्डिंग में अक्सर दर्ज नहीं हो पाती हैं। नासा ने इसमें इसरो की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। इसरो के अनुसार 2020 से पहले पराली जलाने का चरम समय दोपहर 1:30 बजे था, जो अब बदलकर शाम 5 बजे के आसपास हो गया है।

पराली जलाने का प्रदूषण पर प्रभाव
नासा से जुड़े वैज्ञानिक पवन गुप्ता के अनुसार, पराली जलाने का प्रदूषण पर असर साल, महीने और दिन के हिसाब से अलग-अलग देखा जा सकता है। सालभर के प्रदूषण में पराली का योगदान लगभग 10 प्रतिशत है। महीने के हिसाब से यह 20 प्रतिशत और दिन के हिसाब से 40 प्रतिशत प्रदूषण में योगदान देती है।


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Content Editor

Shubham Anand

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