दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर देश का पहला वाइल्डलाइफ कॉरिडोर तैयार, बाघों-भालुओं को मिलेगा सुरक्षित रास्ता

punjabkesari.in Wednesday, Jul 23, 2025 - 04:44 PM (IST)

नेशनल डेस्क : देश में पहली बार राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने ऐसा हाईवे बनाया है, जो विकास के साथ-साथ जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा को भी ध्यान में रखता है। यह 12 किलोमीटर लंबा वाइल्डलाइफ कॉरिडोर दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का हिस्सा है और रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बफर जोन से होकर गुजरता है।

क्यों खास है यह वाइल्डलाइफ कॉरिडोर?

यह भारत का पहला ऐसा हाईवे है जो न सिर्फ वाहनों के लिए बनाया गया है, बल्कि इसमें वन्यजीवों के लिए भी सुरक्षित रास्ते की व्यवस्था की गई है। इस कॉरिडोर में –

  • 5 बड़े वाइल्डलाइफ ओवरपास (हर एक 500 मीटर लंबे) बनाए गए हैं।
  • 1.2 किलोमीटर लंबा अंडरपास बनाया गया है, जो भारत का सबसे लंबा वाइल्डलाइफ अंडरपास है।

यह इलाका रणथंभौर और चंबल घाटी के बीच स्थित है, जहां बाघ, भालू, चिंकारा, नीलगाय और कई अन्य वन्यजीव पाए जाते हैं।

निर्माण के दौरान रखी गई खास सावधानियां

NHAI के रीजनल ऑफिसर प्रदीप अत्री ने बताया कि यह दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा था, क्योंकि यह रणथंभौर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के बफर जोन में आता है।

  • वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और पर्यावरण मंत्रालय के निर्देशों पर काम किया गया।
  • जमीन की प्राकृतिक संरचना को बिना बदले अंडरपास और ओवरपास बनाए गए, ताकि जानवरों को बिना किसी रुकावट के आने-जाने का रास्ता मिले।
  • लगभग 5 किलोमीटर हाईवे को या तो ऊंचा बनाया गया या नीचे किया गया, ताकि इलाके की टोपोग्राफी बरकरार रहे।

जानवरों की सुरक्षा के लिए कड़े इंतज़ाम

  • हाईवे के दोनों ओर 4 मीटर ऊंची दीवार बनाई गई ताकि जानवर गलती से सड़क पर न आ जाएं।
  • 2 मीटर ऊंची साउंड बैरियर दीवारें लगाई गईं, ताकि ट्रैफिक की आवाज़ से वन्यजीव परेशान न हों।
  • निर्माण के दौरान हर 200 मीटर पर गश्त करने के लिए वर्कर्स तैनात किए गए ताकि किसी भी जानवर को नुकसान न पहुंचे।

इसी वजह से पूरे प्रोजेक्ट में एक भी वाइल्डलाइफ एक्सीडेंट नहीं हुआ। निर्माण के बाद लगे कैमरा ट्रैप में बाघ और भालू को इन रास्तों का इस्तेमाल करते हुए भी देखा गया।

पर्यावरण के लिए भी उठाए कदम

  • कॉरिडोर के आसपास 35,000 पेड़ लगाए गए।
  • हर 500 मीटर पर रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया।
  • पानी की बचत के लिए ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल किया गया।
  • निर्माण में लो-वेस्ट मेथड और मॉड्यूलर फॉर्मवर्क का इस्तेमाल किया गया ताकि पर्यावरण पर कम असर पड़े।

विकास और प्रकृति का संतुलन

यह वाइल्डलाइफ कॉरिडोर भारत में बुनियादी ढांचे के विकास और जैव विविधता को साथ लेकर चलने की नई मिसाल बना है। अब यह प्रोजेक्ट दिखाता है कि अगर सोच सही हो तो हाईवे निर्माण जैसे बड़े प्रोजेक्ट भी पर्यावरण और वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाए बिना पूरे किए जा सकते हैं।


 

 


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Content Editor

Mehak

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