ऑफ द रिकॉर्डः किसान को समर्थन मूल्य की गारंटी देकर ‘सबसिडी का अंधा कुआं कैसे भरेगी सरकार’
punjabkesari.in Wednesday, Jan 06, 2021 - 05:49 AM (IST)
नई दिल्लीः दिल्ली की सीमा पर धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) देने के लिए केंद्र सरकार तैयार है लेकिन इसी बात को कानून का रूप देना परेशानी में डालने वाला एक मसला है।
एम.एस.पी. सूची में डाली गई 23 फसलों में से केवल गेहूं, चावल और मक्का एम.एस.पी. पर खरीदे जाते हैं। जहां तक गेहूं और चावल की खरीद की बात है तो इसकी मात्र 8 से 10 प्रतिशत खरीद पंजाब व हरियाणा से बाहर केंद्र द्वारा की जाती है। प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी तो मानते हैं कि खरीदारी का यह आंकड़ा मात्र 6 प्रतिशत है जबकि वास्तव में यह 30 प्रतिशत से अधिक हो सकता है।
किसान शक्ति फोरम के संयोजक पुष्पिंदर सिंह कहते हैं कि सरकार यह अनिवार्य करे कि जो प्राइवेट मंडियां ए.पी.एम.सी. से बाहर हैं, वे भी एम.एस.पी. पर ही खरीदारी करें। सरकार की कीमत सूचना प्रणाली एगमार्कनैट के अनुसार किसानों की फसलें शायद ही कभी एम.एस.पी. से ऊपर बिकती हैं।
एगमार्कनैट ने देशभर की 3000 मंडियों से कीमत और मात्रा के आंकड़े लेकर उनका विश्लेषण किया है। जो बात सामने आई, उसमें यह पाया गया कि मक्का, मूंगफली और अन्य फसलों की बिक्री में नुक्सान ही हुआ। उदाहरण देखें, कर्नाटक में अक्तूबर में बाजरा एम.एस.पी. से 45 प्रतिशत कम पर बिका जबकि मध्य प्रदेश में अक्तूबर में जवार एम.एस.पी. से 56 प्रतिशत कम पर बिका।
देश में वित्त वर्ष 21 में खाद्य सबसिडी 2,53,000 करोड़ होने का अनुमान है। इसमें कोविड संकट के दौरान अप्रैल से नवम्बर तक मुफ्त में बांटी गई खाद्य सामग्री पर खर्च हुए 1,50,000 करोड़ शामिल नहीं हैं।
अब इस हालात में यदि सरकार किसान द्वारा पैदा किए जाने वाले हर दाने पर एम.एस.पी. की गारंटी देती है तो सबसिडी की क्या अनंत सीमा होगी, इसका अनुमान लगाना कठिन है। सरकार सबसिडी के इस अंधे कुएं को भरने की स्थिति में नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछले हफ्ते 8 आश्वासन देते हुए कहा था-‘सरकार 7 अन्य मुद्दों के साथ एम.एस.पी. पर लिखित में आश्वासन देने के लिए तैयार है।’ परंतु क्या यह हो पाएगा?