एक साथ चुनाव कराने से चुनावी खर्च में आ सकती है कम से कम 30 प्रतिशत कमी
punjabkesari.in Wednesday, Sep 18, 2024 - 09:57 PM (IST)
नई दिल्लीः चुनाव खर्च पर नजर रखने वाले एक विशेषज्ञ के अनुसार, 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' लागू होने पर चुनाव खर्च में कम से कम 30 प्रतिशत की कमी आ सकती है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता और राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करेगा।
तीन दशकों से चुनाव व्यय पर नजर रख रहे एन भास्कर राव ने कहा कि 'वोट के बदले नोट' या मतदाताओं को लुभाने पर अंकुश लगाए बिना चुनाव खर्च में उल्लेखनीय कमी नहीं आएगी। इस साल हुए लोकसभा चुनावों से पहले, सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के प्रमुख राव ने अनुमान लगाया था कि यदि 2024 में भारत में सभी स्तरों पर चुनाव होते हैं, तो इस पर 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे। उन्होंने कहा कि ये अनुमान संसदीय चुनावों से पहले लगाए गए थे और भविष्य के चुनावों में वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है।
राव ने स्पष्ट किया कि इन आंकड़ों में राजनीतिक दलों द्वारा निर्वाचन आयोग को बताए गए आधिकारिक व्यय के आंकड़ों तथा चुनाव कराने में सरकार द्वारा किए गए व्यय के अतिरिक्त बेहिसाबी व्यय भी शामिल हैं। राव ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार को अपनाने से अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपए के चुनाव खर्च में से 3-5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है, जो निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता और राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करेगा।”
उन्होंने कहा, “एक राष्ट्र, एक चुनाव पहल से चुनाव खर्च में कोई महत्वपूर्ण कमी नहीं आएगी। जब तक राजनीतिक दल द्वारा उम्मीदवारों के चयन, प्रचार और वर्तमान पदाधिकारियों की सुविधाओं के संबंध में अपनाए जाने वाले मौजूदा तौर-तरीकों पर लगाम नहीं लगाई जाती, जब तक निर्वाचन आयोग अधिक कार्यकुशल नहीं हो जाता, उसकी आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों द्वारा नहीं अपनाया जाता और चुनाव कार्यक्रम अधिक तर्कसंगत नहीं हो जाता, तब तक चुनाव खर्च में उल्लेखनीय कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती।"
उन्होंने बताया कि 10 लाख करोड़ रुपये के अनुमान में पांच वर्ष के कार्यकाल के आधार पर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं व पंचायतों (तीन स्तरों) के चुनाव व्यय शामिल हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक साथ चुनाव कराने को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को बुधवार को मंजूरी दे दी। राव ने कहा, "साल 2014 (36 दिन) और 2019 (38 दिन) के बजाय एक सप्ताह में चुनाव कराने से चुनाव खर्च में काफी कमी आने की संभावना है।”