आज से शुरू होगी हज यात्रा, जानें इस पवित्र सफर से जुड़ी अहम रस्में और मान्यताएं
punjabkesari.in Wednesday, Jun 04, 2025 - 05:45 AM (IST)

नेशनल डेस्क: इस्लाम धर्म में ज़ुलहिज्जा का महीना बहुत खास होता है। इसी महीने में दुनिया भर के लाखों मुस्लिम मक्का शरीफ में इकट्ठा होकर हज करते हैं और ईद-उल-अजहा मनाई जाती है। इस बार हज यात्रा 4 जून यानि आज से शुरू हो रही है। इस्लाम में माना जाता है कि हर मुसलमान को जीवन में कम से कम एक बार हज जरूर करना चाहिए। यह इस्लाम के पांच प्रमुख स्तंभों में से एक है।
हज क्या है और क्यों किया जाता है?
हज एक पवित्र और आध्यात्मिक यात्रा है, जिसे मुसलमान मक्का जाकर पूरा करते हैं। इसमें कई धार्मिक रस्में निभाई जाती हैं जो अल्लाह के प्रति समर्पण और एकता का प्रतीक होती हैं।
हज की शुरुआत कैसे होती है?
हज की शुरुआत ज़ुलहिज्जा के 7वें दिन मक्का पहुंचने से होती है। इसके बाद हाजी ‘इहराम’ पहनते हैं। इहराम बिना सिला सफेद कपड़ा होता है, जिसे पुरुष लपेटते हैं। महिलाएं सादा और ढका हुआ कपड़ा पहनती हैं। इहराम पहनने के बाद ही हज की रस्में शुरू होती हैं।
सबसे पहले किया जाता है काबा का ‘तवाफ’
हज की शुरुआत मक्का में काबा शरीफ के तवाफ से होती है। इसमें हाजी काबा के चारों तरफ 7 बार उल्टी दिशा में चक्कर लगाते हैं। यह अल्लाह के प्रति इबादत और समर्पण का प्रतीक है। शुरुआत और अंत काबा के कोने में लगे ‘हज्रे अस्वद’ (काले पत्थर) से होती है।
इसके बाद होता है ‘सई’, जिसमें हाजी सफा और मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच 7 बार चक्कर लगाते हैं। यह हजरत हाजरा और उनके बेटे इस्माईल की संघर्ष की याद में किया जाता है।
मिना और अराफात की रस्में
तवाफ और सई के बाद हाजी मक्का से मिना जाते हैं, जहां वे रातभर इबादत करते हैं। इसके बाद वे अराफात के मैदान में इकट्ठा होते हैं। यहां दोपहर से सूर्यास्त तक दुआ और इबादत की जाती है। इसे ‘वुकूफ’ कहा जाता है और यह हज की सबसे अहम रस्म है। अगर कोई इसमें शामिल नहीं होता तो उसका हज अधूरा माना जाता है। इसी मैदान में पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपनी आखिरी तकरीर (खुत्बा) दी थी।
मुजदलिफा और ‘रमी’ की रस्म
अराफात से हाजी मुजदलिफा पहुंचते हैं, जहां वे खुले आसमान के नीचे रात बिताते हैं। यहीं से वे पत्थर (कंकड़) जमा करते हैं, जिन्हें अगले दिन ‘रमी’ की रस्म के लिए इस्तेमाल किया जाता है। रमी में शैतान के प्रतीक तीन खंभों पर ये कंकड़ मारे जाते हैं, जो बुराई को दूर करने का प्रतीक है।
ईद-उल-अजहा से जुड़ती है हज की आखिरी रस्म
रमी के बाद हाजी जानवर की कुर्बानी देते हैं, जो ईद-उल-अजहा से जुड़ा हुआ रिवाज है। यह हज़रत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति भक्ति और बलिदान की याद में किया जाता है। इसी के साथ हज की रस्में पूरी होती हैं।