फडणवीस अकेले नहीं, मिलिए पल-दो-पल के शायरों से
punjabkesari.in Wednesday, Nov 27, 2019 - 05:26 PM (IST)
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): पलट के आऊंगी शाखों पे खुशबुएं लेकर, खिजा की जद में हूं मौसम ज़रा बदलने दे.--- ये वो पहली प्रतिक्रिया थी जो देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद सबसे पहले आई थी। और यह प्रतिक्रिया कहीं और से नहीं उनकी पत्नी अमृता फडणवीस के ट्वीट में आई थी। अचानक सबको चौंकाते हुए 23 नवंबर को शपथ लेने वाले फडणवीस 26 नवंबर को 80 घंटे दोबारा मुख्यमंत्री रहने के बाद इस्तीफ़ा देकर इतिहास बन गए। बहुमत का दावा करने वाले फडणवीस बहुमत के लिए सदन भी नहीं बुला पाए। लेकिन इस मौसम की मार झेलने वाले फडणवीस अकेले नहीं हैं। सियासत में पल-दो-पल के ऐसे शायरों की लम्बी सूची है। इस सूची में कांग्रेस के अर्जुन सिंह और जगदम्बिका पाल सबसे ऊपर हैं। और इसी फेरहिस्त में बिहार के पीएम मैटीरियल नीतीश कुमार भी हैं, तो कांग्रेस के सबसे बुज़ुर्ग नेता वीरभद्र सिंह और ओम प्रकाश चौटाला भी।
2 दिन के अर्जुन, अढ़ाई के जगदम्बिका
कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह सिर्फ 2 दिनों के लिए मुख्मंत्री बने थे। उन्होंने 11 मार्च 1985 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 12 मार्च 1985 को इस्तीफा सौंप दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर पंजाब का राज्यपाल बना दिया था। कोई वजह अभी तक सामने नहीं आ सकीय है। चर्चाएं बहुत हुईं। अर्जुन समर्थकों के मुताबिक उनका राज्यपाल बनना तय था लेकिन मध्य प्रदेश के अपने विरोधियों को दिखने भर के लिए वे दो दिन के सीएम बनी ताकि अपनी ठसक दिखा सकें। अर्जुन सिंह के बाद सबसे कम समय के लिए सीएम बनने का रिकार्ड जगदम्बिका पाल के नाम है। वर्ष 1998 में यूपी की कल्याण सिंह सरकार को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बर्खास्त कर दिया। कांग्रेस के जगदम्बिका पाल मुख्यमंत्री बनाये गए। 54 घंटे के भीतर कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया और जगदम्बिका पाल इतिहास हो गए।
येदुरप्पा को लगा डबल झटका
कर्नाटक में बीजेपी ने 2018 में ऐसी ही जल्दबाजी के कारण येदुरप्पा को इस ज़मात में ला खड़ा किया। सपष्ट बहुमत से आठ सीट दूर रह जाने के बावजूद 17 मई को येदुरप्पा ने शपथ ली। राजयपाल वुजुवाला ने उनको 15 दिन का समय दिया लेकिन अदालत ने तुरंत बहुमत साबित करने को कहा। वो हो नहीं पाया और महज 55 घंटे बाद येदुरप्पा को इस्तीफ़ा देना पड़ा। येदुरप्पा वर्ष 2007 में भी 12 से 19 नवंबर तक 8 दिन के लिए सीएम रहे थे तब उनका जनता दल इस से गठबंधन बनते ही टूट गया था। जबकि 2018 में जनता दल एस और कांग्रेस के गठबंधन ने उनको यह स्थिति दिखाई।
मिस्टर क्लीन पर लगा था दाग
अपनी ईमानदार छवि लिए भारतीय राजनीतिज्ञों में मिस्टर क्लीन का तमगा रखने वाले एस सी मारक भी इस दाग से सन चुके हैं। 1998 में ही मेघालय में एस सी मारक को 12 दिन तक मुख्यमंत्री रहने के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा था। वे 27 फरवरी 1998 से 10 मार्च 1998 तक मुख्यमंत्री रहे थे। विधायकों का साथ नहीं होने के कारण उन्होंने इस्तीफ़ा दिया था जिसके बाद यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीबी लिंगदोह मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि लिंगदोह भी ज्यादा समय नहीं गुज़ार पाए और 30 दिन बाद लिंगदोह सरकार का भी पतन हो गया था।
चौटाला के नाम हैटट्रिक
हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला इस मामले में हैट्रिक लेने वाले इकलौते नेता कहे जा सकते हैं। वी पी सिंह सरकार में देवीलाल के उप प्रधानमंत्री बन जाने पर उन्होंने बेटे चौटाला को हरियाणा सौंपा। विरोध हुआ खासकर महम उपचुनाव में हिंसा को लेकर जब बात बढ़ी तो चौटाला 172 दिन बाद इस्तीफ़ा देकर हट गए और उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को सीएम बना दिया गया। बनारसी दास 22 मई 1990 से 12 जुलाई 1990 तक 52 दिन के लिए सीएम रहे। बाद में12 जुलाई 1990 को फिर से ओमप्रकाश चौटाला को सीएम बना दिया गया । उनके सीएम बनते ही संसद में हंगामा हो गया। काफी प्रदर्शन हुए, राजीव गांधी ने महम कांड को उठाया तो चौटाला को महज 6 दिन के अंदर 17 जुलाई 1990 को इस्तीफा देना पड़ा। 17 जुलाई 1990 को उनकी जगह हुकुम सिंह को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन 248 दिन बाद एकबार फिरसे उनको हटाकर चौटाला ने गद्दी हासिल कर ली। चौटाला ने तीसरी बार 22 मार्च 1991 को सीएम की कुर्सी संभाल ली। उनके दोबारा सीएम बनते ही पहले भी ज्यादा विरोध शुरू हो गया। ऐसे में चौटाला को एकबार फिर से जाना पड़ा। उन्होंने 16 दिन के बाद 6 अप्रैल 1991 को इस्तीफा देना पड़ा और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
नीतीश भी बन चुके हैं बाबू
चंद दिन के मुख्यमंत्रियों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं। नीतीश कुमार साल 2000 में 3 से 10 मार्च तक 8 दिन के सीएम रहे हैं। नीतीश कुमार से पहले महज कुछ दिनों के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले अन्य नेताओं में बिहार के मुख्यमंत्री रहे सतीश प्रसाद सिंह भी हैं, जिन्हें 1968 में 28 जनवरी से एक फरवरी तक महज पांच दिनों के लिए अंतरिम मुख्यमंत्री बनाया गया था।
वीरभद्र भी नहीं बच पाए थे
इसी कड़ी में कांग्रेस के सबसे उम्रदराज नेता वीरभद्र सिंह भी शामिल हैं। 1998 में वीरभद्र सिंह ने चौथी बार हिमाचल के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस द्वारा बीजेपी को समर्थन दिए जाने के चलते वे भी बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफ़ा दे गए थे। उस समय ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दो सीट पीछे रह गयी थी। उसने निर्दलीय रमेश ध्वाला को कब्जाकर सत्ता हासिल करने की कोशिश की। फडणवीस की ही तरह शपथ भी हुई। लेकिन अंतत बीजेपी के बागी ध्वाला बीजेपी के साथ चले गए और ऊपर से सुखराम ने वीरभद्र सिंह को ब्रेक लगा दी।
दस दिन बाद गिर गयी थी गुरूजी की सरकार
राजनीती के गुरूजी यानी शिबू सोरेन भी पल-दो-पल के शायर रह चुके हैं। 2 मार्च, 2005 को झारखंड में राज्यपाल ने झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को अल्पमत में होने के बाद भी सरकार बनाने का निमंत्रिण दिया था। बहुमत के लिए पर्याप्त संख्या नहीं जुगाड़ कर पाने पर शक्ति परीक्षण से पहले ही दस दिन बाद 12 मार्च, 2005 को केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप पर शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद फिर भाजपा के अर्जुन मुंडा ने 12 मार्च, 2005 को जदयू और निर्दलीय विधायकों की मदद से नई सरकार का गठन किया था। बाद में शिबू सोरेन मुख्यमंत्री रहते उपचुनाव हार गए थे और उनको फिर जाना पड़ा था।