दाे भाईयाें के दिलाें में प्यार काे राेशन करेगी 'ट्यूबलाइट'

punjabkesari.in Thursday, Jun 22, 2017 - 10:24 AM (IST)

रिश्ते बेहद सुखदायक होते हैं, लेकिन इनमें अगर खटास आ जाए तो यही एक अनसुलझी गुत्थी बन जाते हैं। ट्यूबलाइट फिल्म रिश्तों की इसी उलझन को सुलझाने की पहल है। फिल्म में रिश्तों की वह लज्जत है, जिसका स्वाद फिल्म देखने के बाद भी जुबां पर कायम रहेगा। कम से कम सुपरस्टार सलमान खान का तो यही मानना है। ईद के मौके पर फिल्म रिलीज होगी। नवोदय टाइम्स व पंजाब केसरी से विशेष बातचीत में सलमान खान ने कहा कि उनकी कोशिश बस इतनी है कि ‘ट्यूबलाइट’ देखने वाला कोई भी इंसान फिल्म देखने के बाद बस इतना ठान ले कि रिश्ते की कड़वाहट का अंत हो जाए। वह फिल्म देखने के बाद सिनेमाघर से निकले और फोन उठाए, चाहे उसकी भाई के साथ रिश्ते में कड़वाहट हो या भाभी के साथ, बस फोन ऑन होते ही यह कहे कि भाई तेरे रिश्ते से ज्यादा कुछ अहम नहीं। और कहे कि रिश्ते का असल मायना ट्यूबलाइट फिल्म समझाती है, जाओ देखकर आओ, असल रिश्ते की तरावट समझ आ जाएगी। 

क्या है फिल्म?
हमेशा क्लास में एक बच्चा होता है वो थोड़ा स्लो होता है। सब लोग हाथ ऊंचा करते हैं और एक बच्चे को समझ नहीं आता कि क्या हो रहा है। वो बच्चे का थोड़ा सा मजाक उड़ा लेते हैं। वो 10वीं तक आते-आते  सबका फेवरेट बन जाता है। सभी को समझ आ जाता है कि यह बहुत सीधा है, भोला है, बड़ा शरीफ बच्चा है। मतलब जिसकी समझ में थोड़ा लेट आता है उसे पहले ट्यूबलाइट बुलाते थे। पहले बच्चे मस्ती करते हैं जैसे उनमें समझ आ जाता है फिर वही लड़का सबका फेवरेट बन जाता है। उसमें सच्चाई बहुत होती है, यकीन बहुत होता है, उसमें कोई छलकपट कुछ नहीं होता। मासूमियत होती है।

इस फिल्म में दो भाई हैं एक ट्यूबलाइट है। स्लो है और बड़ा भाई है। छोटा भाई पहले बड़े भाई की सुनता है। और जैसे-जैसे छोटा बड़ा होता जाता है। अब उनका कनैक्शन बन जाता है इसलिए छोटा बड़े भाई को बचाता है। 1962 की बात है तो उस समय इंडो-चाइना का वार शुरू हो गया था। अब जाहिर है कि ट्यूबलाइट तो सिलेक्ट होगा नहीं तो दूसरा भाई है जो कि पिल्लर है वह चला जाता है।

अब यह सब हंसी-मजाक यहां से जब वार में चला जाता है तो ट्यूबलाइट को समझ आता है कि  यह तो जंग छिड़ गई है अब मेरा भाई वापस आएगा या नहीं आएगा। यहां तो लोग मारे जाते हैं। बंदूकें चलती हैं गोले चलते हैं। ग्रेनेड्स तोप वगैरा। तो अब उसकी ये विल पावर उसका जो एक यकीन है कि मैं मेरे भाई को वापस लाऊंगा। मेरे यकीन से उसे वापस लाउंगा।  इस फिल्म में गाने, ट्विस्ट एंड टर्न, रामांस कॉमेडी इमोशन सब साथ-साथ चलता रहता है।

आपको माचो मैन के तौर पर जाना जाता है। ऐसे में इस फिल्म में एक मासूमियत भरे रोल में आने के लिए कोई खास तैयारी करनी पड़ी क्या?
हमेशा ही कुछ न कुछ अलग करना चाहिए। जैसे अभी सुल्तान हो गया अब इसे कितना ऊपर लेकर जाएंगे। तो यह एक हटकर फिल्म की है। इसके बाद टाइगर जिंदा है। उस फिल्म में एक अलग स्वैग और एक अलग एनर्जी लैवल है। फिर उसके बाद डांसिंग की फिल्म आ जाएगी, ट्रेनिंग शुरू कर दी है। तो वो सब भी अलग-अलग चीजें ट्राई करता हूं। जो कि स्क्रिप्ट में प्लॉट वाइज अपील करती हैं। यह नहीं कि मुझे डांसिंग पिक्चर देनी है। स्लो देना है। स्क्रिप्ट बहुत अच्छी होनी चाहिए। यह नहीं कि कैरेक्टर बेस्ड है। कभी नहीं। फिल्म हमेशा स्क्रिप्ट बेस्ड होती है।

चाइनीन अभिनेत्री जू जू के साथ कैसा अनुभव रहा?
बहुत ही अच्छी लड़की है। बड़ी प्रोफैशनल है। बहुत ही सुशील लड़की है।  एक कल्चर्ड लड़की है। बहुत ही मेहनती है। उसे दो महीने पहले ही डायलॉग दिए गए थे। जब यहां आई तो हर लाइन को अच्छे से जानती थी। यही नहीं वह उसके अर्थ को भी जानती थी। काम चलाऊ हिंदी भी सीख गई थी। उसके साथ काम करके बहुत ही अच्छा अनुभव रहा है।

फिल्म में शाहरुख खान भी दिखाई देंगे?
जी हां, गेस्ट अपीयरेंस है। अहम मौके पर आते हैं फिल्म के अंदर। टर्निंग प्वाइंट पर आते हैं जब ट्यूबलाइट का यकीन टूटने लगता है। पूरा शहर उसका मजाक उड़ाता है तब शाहरुख खान की एंट्री होती है। उसका यकीन वापस बड़ा हो जाता है।

तो शाहरुख खान भद्र पुरुष की तरह नजर आएंगे?
यह आप देखो तब आपको पता चलेगा कि वह किस रूप में नजर आएंगे।

अलग किस्म की फिल्म कर रहे हैं तो क्या कोई खास चुनौती रही?
मैं हर वो पिक्चर कर रहा हूं, जिसका कैरेक्टर बड़ा ही नोबेल है। मतलब पकाउ नहीं है। कोई मैसेजबाजी नहीं। और बिना कोई मैसेजबाही होने के वो एक छाप छोड़ जाता है। तो जब दर्शक बाहर निकलते हैं तो वो कुछ न कुछ उस कैरेक्टर से लेकर जाते हैं। कोशिश रहती है कि दर्शक किरदार के अच्छे पहलुओं को आम जिंदगी के अंदर प्रयोग कर पाएं। काम के प्रति, परिवार के प्रति जो बेहतर है, मनोरंजक है, मैं वही पिक्चर करना चाह रहा हूं। नॉबेलिटी, सच्चाई और ईमानदारी की बात कर रहा हूं। तो यह भी चाहता हूं कि यह मेरा जिंदगी का भी कैरेक्टर बन जाए। मैं खुद उसे अपनाना शुरू करूं। धीरे-धीरे उस सोच को बढ़ाउं। स्क्रीन प्ले के लिए सोच-समझकर कैरेक्टर लिखे जाते हैं। आम जिंदगी में सोचने का वक्त नहीं मिलता। अगर आपने यह देख, आपने मन में ठान ली तो आपको एक्शन का रिएक्शन पता चल जाता है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी से भी प्रभावित है यह फिल्म?
बिल्कुल सही है। दरअसल, इस फिल्म में यकीन का शुभारंभ ही गांधी जी से होता है। जब वह बचपन में हैं। उसके बाद जब हादसे शुरू हो जाते हैं तो शाहरुख खान की एंट्री होती है। इस तरह बचपन से कायम यकीन कायम ही रहता है।

पहली फिल्मों की तरह इस फिल्म से क्या उम्मीदें हैं क्योंकि आपकी ईद पर रिलीज फिल्म ब्लॉकबस्टर ही होती है?
ब्लॉक बस्टर का तो पता नहीं। हां इसके बारे में इतना ही कहूंगा कि अगर कोई स्क्रिप्ट आपको सुना रहा है। जब आपकी आंखों में आंसू आ रहे हैं। आपको वह पसंद आती है। मजा आ रहा है। तो सोचो जब वह फिल्म बनेगी। अढ़ाई घंटे का नरेशन है और सभी कैरेक्टर को एक ही आदमी पढ़ रहा है तो जब वह आर्टिस्ट का एक ही स्टाइल के अंदर डायलॉग बोले जा रहे हैं। तो अब जब वह आर्टिस्ट आ जाएंगे, गाने-विजुअल आएंगे। तो वहां पर हजार गुणा अधिक पसंद आएगी।

बजरंगी भाईजान भी पाकिस्तान में रिलीज हुई थी तो क्या इस फिल्म को भी वहां भेजा जाएगा?        
यह फिल्म पाकिस्तान जाएगी यह तो बाद में पता चलेगा। उनके कुछ नियम हैं कि ईद के दौरान उनकी फिल्में रिलीज होनी चाहिए। तो अब वह निर्णय लेंगे कि एक या दो हफ्ते बाद कब रिलीज करनी है। ओवरसीज का बहुत बड़ा मार्कीट है। अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी मार्कीट है। जहां भी भारतीय हैं वहां-वहां का हमारा मार्कीट बहुत स्ट्रांग है। मिडल ईस्ट और जी.सी.सी. बैल्ट में हमारी फिल्में दिखाई जाती हैं। तो जहां-जहां भारतीय हैं और वैसे फ्रैंच स्पैनिश इटालियन का कल्चर हमसे मिलता जुलता है उन्हें हमारी फिल्में बहुत पसंद आती हैं। तो वह भी हमारी फिल्में देखते हैं, तो हर हिंदुस्तानी का कोई न कोई कनैक्टिविटी है। वहां पढ़े-लिखे हैं, तो उनका वो वहां की राष्ट्रीयता को सब-टाइटल में देखते हैं।

फिल्म इंडस्ट्री में अब फिल्मों की सफलता का पैमाना 100-200 करोड़ के क्लब में शामिल होने से आंका जाता है, इस फिल्म के क्लब में शामिल होने पर क्या कहना चाहेंगे?
सब चाहते हैं कि उनकी फिल्म क्लब में आए लेकिन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि फिल्म उस क्लब में न जाए, जिसमें लोग पैसे हार जाते हैं। सब की यह कोशिश है कि हर फिल्म दूसरी का रिकॉर्ड तोड़े, हर स्टार दूसरे का रिकॉर्ड तोड़े और वह नहीं टूट रहा है। तो एक कोशिश रहती है कि उनकी फिल्म कम से कम फ्लॉप हो। पहले ज्यादा से ज्यादा हिट हो जाए अगर नहीं हो रही तो कम से कम हो।

आपकी हर फिल्म में कोई न कोई संदेश होता है तो इसमें क्या है?
इस फिल्म में प्यार मोहब्बत का संदेश है। ट्यूबलाइट फिल्म बनाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि बहुत सारे भाई हैं। तो वह भाई ज्यादा करीब आ जाएं। ऐसे कई भाई हैं जो छोटे-छोटे कारणों के चलते उस समय कोई बात नहीं की और फिर गैप बढ़ता गया। किसी की बीवी की समस्या है किसी की आर्थिकी समस्या है। किसी के बच्चे लड़ते हैं। तो ये भाइयों के बीच में ऐसी बात नहीं आनी चाहिए। तो मुझे उस समय बहुत बजा आएगा। जब मुझे लोग बोलेंगे कि हम भाइयों की आपस में नहीं बनती थी तो मैंने अपने भाई को फोन किया और बोला कि मैंने ट्यूबलाइट देखी है तू भी देख और पता चल जाएगा कि क्यों मैंने फोन किया, ताकि भाई आपस में कनैक्ट हो सकें। बहुत ही अरसे से भाइयों को लेकर फिल्म नहीं आई।


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