President election: ऐसे होता है भारत के राष्ट्रपति का चुनाव

punjabkesari.in Monday, Jul 17, 2017 - 03:38 PM (IST)

नेशनल डैस्कः भारत के प्रथम नागरिक प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल 25 जुलाई को समाप्त होने जा रहा है। देश के 14वें राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और मतदान 17 जुलाई को होने जा रहा है। कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है, 35 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका है और लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता है, भारत के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार हो सकता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल के द्वारा होता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि लोकसभा और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य इसमें मतदान नहीं कर सकते। साथ ही राज्यों के विधान परिषद के सदस्य भी निर्वाचन मंडल का हिस्सा नहीं होते।

राष्ट्रपति का चुनाव सामानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा एकल संक्रमणीय मत पद्धति से होता है। इस प्रणाली में प्रत्येक राज्य के विधानसभा सदस्य के वोट का मूल्य उस राज्य की जनसंख्या के अनुपात में निर्धारित होता है। इस तरह राष्ट्रपति समूचे राष्ट्र का प्रतिनिधि होता है। किसी राज्य के विधानसभा सदस्य का मत उस राज्य की जनसंख्या को उस राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या से भाग देकर फिर 1000 से भाग देकर निर्धारित किया जाता है। इस मकसद के लिए 1971 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या को आधार माना जाता है।
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ऐसी है प्रक्रिया
उदाहरण के लिए पंजाब विधानसभा के एक सदस्य के वोट की गणना करते हैं। पंजाब राज्य की जनसंख्या 1971 की जनगणना के अनुसार 1,35,51,060 थी।
पंजाब में विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 117 है। इस प्रकार पंजाब विधानसभा के एक सदस्य के वोट का मूल्य 1,35,51,060/ 117*1/1000=116 है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पंजाब विधानसभा के एक सदस्य के वोट का मूल्य 116 है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के एक सदस्य के वोट का मूल्य 208 है जो कि भारत में सबसे अधिक है। इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की विधानसभा के एक सदस्य के वोट का मूल्य 8 है जो कि भारत में सबसे कम है। संसद के सदस्यों के वोट का मूल्य निकालने की प्रक्रिया बहुत ही आसान है। सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के वोट का मूल्य जोड़कर उसमें लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने से संसद से एक सदस्य के वोट का मूल्य निकल जाता है। इस प्रकार, पंजाब विधानसभा के सदस्यों का कुल वोट 116*117=13,572 होता है। इसी तरह से भारत के सभी निर्वाचित सदस्यों का कुल वोट 5,45,495 होता है। लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 233 कुल मिलाकर 776 सदस्य होते हैं। अगर 5,45,495 को 776 से भाग देते हैं तो संसद के सदस्य के वोट का मूल्य 708 आता है। अब 708 को 776 से गुणा करते हैं तो 5,45,408 होता है। इस तरह 5,45,408 और 5,45,495 को जोड़कर कुल 10,98,903 बनता है। इस प्रकार राष्ट्रपति के निर्वाचन में कुल मतों का मूल्य 10,98,903 है।

संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कुल मत मूल्य के आधे से ज्यादा वोट जिस उम्मीदवार को आता है वह विजेता घोषित किया जाता है। इस प्रक्रिया से राष्ट्रपति के पद के लिए विजेता घोषित होने के लिए 5,49,451+1=5,49,452 वोट प्राप्त करना आवश्यक है। इस चुनाव में मतदाता उम्मीदवारों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि वरीयता देता है। अगर प्रथम वरीयता के आधार पर हार-जीत का फैसला नहीं हो पाता है तो प्रथम चरण में सबसे कम वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार के वोट को निकाल दिया जाता है और द्वितीय वरीयता में उस उम्मीदवार को प्राप्त वोटों को बाकी के उम्मीदवारों में बांट दिया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हो जाता। इसी प्रक्रिया को एकल संक्रमणीय मतदान कहते हैं।

इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में भारत के सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य और संसद के दोनों सदनों के सदस्य मतदाता के रूप में पंजीकृत होते हैं। जिक्रयोग्य है कि भारत के 29 राज्यों के अलावा दिल्ली और पुड्डुचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भी राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान करते हैं।
कुंवर विजय प्रताप सिंह (आई.पी.एस.)


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