Election Flashback : एक नजर उन दिलचस्प चुनावी नारों पर, जिन्होंने चलता की सरकारें

punjabkesari.in Thursday, Mar 28, 2024 - 03:25 PM (IST)

नैशनल डेस्क: देश में आम चुनाव का बिगुल बज चुका है और भाजपा 'अब की बार 400 पार' और कांग्रेस 'अब होगा न्याय' के नारे के साथ चुनाव मैदान में हैं। यह पहला चुनाव नहीं है जब देश में चुनावी नारों की बहार है। पिछले चुनाव के दौरान भाजपा ने 'फिर एक बार मोदी सरकार' का नारा दिया था और दूसरी बार सत्ता में आने में कामयाब रही थी। आज हम उन नारों की चर्चा करेंगे जिन्होंने राजनीतिक दलों को सत्ता दिलाई भी और सत्ता छीन भी ली। आजाद भारत के पहले चुनाव में कांग्रेस के चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी के खिलाफ जनसंघ ने नारा दिया था- देखो दीए का खेल, जली झोंपड़ी, भागे बैल... जनसंघ का चुनाव चिन्ह तब दीया बाती था। कांग्रेस ने जवाबी हमला बोला, नारा था- इस दीये में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं। संजय, बंसीलाल। संजय की मम्मी, बड़ी निकम्मी, बेटा कार बनाता है, मम्मी बेकार बनाती है। इन्हीं नारों की बदौलत विपक्ष ने आपातकाल की टीस को खूब कुरेदा और नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी और कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गए।

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'चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर, एक शेरनी, सौ लंगूर 'से छा गई इंदिरा गांधी
जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद जब इंदिरा ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से उपचुनाव लड़ा तो उस समय कांग्रेस के नेता देवराज उर्स ने नारा दिया था "चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर, एक शेरनी, सौ लंगूर"। यह नारा बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया और इसी नारे पर चढ़कर इंदिरा ने संसद में वापसी कर ली। 1980 के चुनाव का वामपंथियों ने नारा दिया कि चलेगा मजदूर उड़ेगी धूल, न बचेगा हाथ न रहेगा फूल लेकिन अंततः श्रीकांत वर्मा के लिखे नारे 'न जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मोहर लगेगी हाथ पर' ने बाजी मारी।
अगला चुनाव आते-आते इंदिरा की हत्या हो चुकी थी। कामरेडों ने नारा दिया- 'लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा हिंदुस्तान।' लेकिन कांग्रेस के नारे 'जब तक सूरज चांद रहेगा इंदिरा तेरा नाम रहेगा' ने पार्टी को अकूत बहुमत दिलाया।
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1989 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। उस दौर का चर्चित नारा था-राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है। यह दीगर बात है कि 1990 में मंडल आयोग आंदोलन ने वी.पी. सिंह की तकदीर को बतौर पी.एम. ग्रहण लगा दिया। उनके लिए तब नारा लगा था गोली मारो मंडल को, इस राजा को कमंडल दो। उसके बाद के चुनाव का सबसे चर्चित नारा भाजपा ने दिया था सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। फिर भाजपा का नया नारा आया अटल, अडवानी कमल निशान मांग रहा हिंदुस्तान। उसी चुनाव में यह भी आया सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी, अटल बिहारी। फिर उसके बाद के चुनाव में कोई ऐसा नारा नहीं आया जो हर किसी की जुबां पर रहा हो। लेकिन 2014 में अच्छे दिन आने वाले हैं नारे ने कमाल खिलाया और मोदी लहर ने पहली बार भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनवाई।

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क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं
नारों की सियासत में क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं हैं। किसी जमाने में बिहार में ऊंची जातियों के खिलाफ लालू प्रसाद यादव का नारा भूरा बाल साफ करो जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू और ऊपर आसमान, नीचे पासवान खासे चर्चित रहे थे। उधर सपा के खिलाफ बसपा ने नारा दिया था, चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर बसपा ने ही एक समय यूपी में नारा दिया था तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार हालांकि बाद मैं जब पार्टी की गत बिगड़ी तो बसपा ने कथित सोशल इंजीनियरिंग के दौर में नारा बदल कर यूं कर दिया हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु, महेश है, पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा जब सपा और बसपा ने मिलकर भाजपा को हराया था उस चुनाव में नारा था- मिले मुलायम और कांशीराम, हवा में उड़ेगा जय श्री राम तो उधर ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में मां माटी और मानुस का नारा दिया जिसे हाथों-हाथ लिया गया।

ये रहे दिलचस्प नारे-

जमीन गई चकबंदी में, मर्द गया नसबंदी में

देश मांगे लाल निशान

संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी

जब तक रहेगा समोसे में आलू, बिहार में रहेगा लालू

हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु- महेश है...

उठे करोड़ों हाथ, राजीव जी के साथ

तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार

 


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News Editor

Radhika

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