Election Diary: जानिए भारत को कैसे मिला पहला वोटर

Thursday, Mar 14, 2019 - 01:53 PM (IST)

शिमला (संजीव शर्मा ): वो जुलाई 2007 की शाम थी। शिमला भारी बरसात की चपेट में था, लेकिन इस बारिश से बेखबर हिमाचल की तत्कालीन मुख्य चुनाव अधिकारी 1985 के बैच की आईएएस मनीषा नंदा देर रात भी अपने दफ्तर में काम कर रही थीं। दरअसल उन दिनों हिमाचल के किन्नौर और सोलन में फोटो युक्त मतदाता पहचान पत्रों के पायलट प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा था। उस समय किन्नौर की जिलाधीश 2003 बैच की युवा आईएस अफसर एम सुधा देवी थीं। उनकी भी इस प्रोजेक्ट में गहरी दिलचस्पी थी। एम सुधा देवी के मुताबिक जब हमने देखा कि एक मतदाता की आयु नब्बे साल से अधिक है तो हमने उनसे बात करने का फैसला किया। 



जिलाधीश खुद उनसे मिलने गईं और उस बातचीत में यह दावा सामने आया कि उन्होंने सबसे पहले वोट डाला था। श्याम शरण नेगी नाम के शख्स ने जब जिलाधीश एम सुधा देवी के समक्ष यह दावा किया तो वे भी हैरान रह गईं। चूंकि श्याम शरण नेगी इलाके के प्रतिष्ठित बुज़ुर्गों में से एक थे लिहाजा जिलाधीश ने उनकी बात को पकड़ लिया। एम् सुधा देवी ने यह बात तुरंत मनीषा नंदा से शेयर की। इस जानकारी ने मनीषा नंदा को एक ऐसी खोज में डाल दिया था जो आगे चलकर इतिहास बन गई। यह खोज थी देश के पहले वोटर श्याम शरण नेगी की। मुख्य चुनाव अधिकारी मनीषा नंदा तक जब यह जानकारी पहुंची तो उन्होंने इसे मिशन बनाकर इसकी तह तक जाना शुरू कर दिया। और फिर कई ऑडियो रिकार्डिंग वीडियो रिकार्डिंग और दस्तावेजों की पड़ताल के बाद यह स्थापित हो गया कि श्याम शरण नेगी सही कह रहे हैं। और इस तरह 2007 के चुनाव में जब श्याम शरण नेगी मतदान करने निकले तो पूरी दुनिया को यह मालूम हो चूका था कि ये शख्स भारत का पहला मतदाता है।  

इतनी आसान नहीं थी यह खोज 
वर्तमान में हिमाचल की अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा नंदा बताती हैं कि  यह काम इतना आसान नहीं था। चार महीने की अथक मेहनत के बाद यह तय हुआ कि श्याम शरण नेगी का दावा सही था। इस बीच हिमाचल सहित दिल्ली में निर्वाचन आयोग के तमाम अभिलेख छाने गए, पढ़े गए,कई बार श्याम शरण नेगी से मिलकर अगले दिन सीधे रिकांगपियो से छह सौ किलोमीटर दिल्ली का सफर किया गया। श्याम शरण नेगी से सैंकड़ों सवाल हुए और हर सवाल का अभिलेखों से मिलान किया गया। अंतत: मनीषा नंदा की खोज को प्रमाण पत्र मिला और श्याम शरण नेगी को आधिकारिक तौर पर देश का पहला वोटर मान लिया गया। हंसते हुए मनीषा नंदा आज भी बताती हैं कि यह करीब करीब किसी विषय पर पीएचडी करने जैसा था जिसमें  आप कई बार  अपने शोध के पन्ने नए सिरे से लिखते हैं। कई संदर्भ ढूंढकर एक-एक लाइन लिखते हैं।  
 

मीडिया में पहली खबर 
मैं उन दिनों एक टीवी चैनल में कार्यरत था। खबरों के सिलसिले में मिलते मिलते मनीषा नंदा से एक निजी रफ्ता भी कायम हो गया था। ऐसे में शायद यही वजह थी कि जब उनका मिशन पूरा हुआ और उसे दुनिया के सामने रखने का वक्त आया तो उन्हें सबसे पहले मेरा ही ध्यान आया। मुझे अच्छी तरह से याद है करीब रात 11 बजे उनका फोन आया था। उन्होंने जब मुझे सारी बात बताई तो जाहिरा तौर पर मेरे भीतर के पत्रकार में उत्साह हिलोरे मारने लगा। मैंने उनसे आग्रह किया कि वे कल शाम तक किसी को यह खबर लीक न करें मैं सुबह चार बजे की बस पकड़ शाम को रिकांगपियो पहुंच जाऊंगा। दूसरी तरफ से उनकी आवाज आई मेरे दफ्तर की गाड़ी सुबह चार बजे रिकांगपिओ जा रही है जरूरी कागजात लेकर। तुम उसमे जा सकते हो। उनकी गाड़ी में लिफ्ट मिली तो अपुन दोपहर को ही पियो पहुंच गए। तीन बजे गुरूजी यानी श्याम शरण नेगी जी के घर पर मैंने चाय की चुस्कियों के बीच उनसे साक्षात्कार किया। नेट से फीड भेजी और शाम के प्राइम टाइम पर देश ने अपने पहले वोटर को पहली बार देखा।  
 

गुरूजी की जुबानी
गुरु जी यानी श्याम शरण नेगी के मुताबिक जब यह तय हो गया कि 1952 के आम चुनाव से पहले कबायली इलाकों में सांकेतिक मतदान कराया जाएगा तो किन्नौर का चयन हुआ था। मैं सरकारी नौकरी में था। मुझे मतदान कराने की जिम्मेदारी मिली। तय दिन  25 अक्टूबर 1951 को मैंने सबसे पहले अपना नाम लिखकर पीपे में डाला। पीपा यानी टीन का कनस्तर जिसे मतपेटी का रूप दिया गया था। उसके बाद रिकांगपियो में कार्यरत एक फारेस्ट कर्मी ने वोट डाला। वोट कोई छपकर नहीं आया था। उम्मीदवार भी  तय नहीं थे। सिर्फ अपना नाम लिखकर पीपे में डालना था। ताकि यह तय हो की लोगों ने चुनाव में शिरकत की है। उन्होंने रिकांगपियो में तीन वोट डलवाने के बाद रिब्बा का रुख किया। एक दिन का सफर करने के बाद वे तीन दिन तक रिब्बा में रुके। फिर अगले गाँव।  इस तरह से करीब 12 गांवों में जाकर नब्बे के करीब वोट डलवाए गए और बर्फबारी शुरू हो जाने के चलते इस काम को विराम दे दिया गया। सरकारी दरफ्तर में वो मतपेटी यानी टीन का कनस्तर जमा करवा दिया गया। हंसते हुए श्याम शरण नेगी ने बताया था पता नई उस पीपे को कोई दिल्ली ले भी गया के नहीं या फिर रिपोर्ट ही गई, लेकिन लेक्शन हो गया और उसके बाद से अब तक उन्होंने हर चुनाव में सबसे पहले बूथ पर पहुंचने का नियम बना लिया जो अनवरत रूप से जारी है।  



सुर्खियों में श्याम शरण नेगी
जब तमाम चीजें और तथ्य स्थापित हो गए तो 2012 आते आते परिस्थितियां बदल गईं। श्याम शरण नेगी अब देश का मान थे। बरसों नेपथ्य में रहने वाला लोकतंत्र का यह प्रथम सिपाही अब निर्वाचन क्षितिज का चमकता सितारा था। खुद तत्कालीन चुनाव आयुक्त नवीन चावला उनके घर चीनी (कल्पा ) पहुंचे और उनको सम्मानित किया। उसके बाद यह सिलसिला ऐसे चला कि वे चुनाव आयोग के ब्रांड अम्बैसेडर बन गए। पिछले चुनाव में जब गुरूजी से मिलना हुआ था तो वे हंसकर बोले थे...यार पंडत तूने तो दिल्ली वाले मेरे दरवाजे पर ला दिए। ऐसा दिखाया टीवी में के अब तो इलेक्शन में लाइन लग जाती है टीवी वालों की,पता नई कहां कहां से पहुंचते हैं आकर इसके बाद गुरूजी ने भीतर से एक हाफ जैकेट यानी पहाड़ी सदरी निकाल कर मुझे दी ये मेरी तरफ से तेरे को, तूने भी बड़ी मेहनत की है वो सदरी आज भी मेरे पास है और उसे चाव से पहनता हूं।
 

अनूठा था वो मतदान 
देश के पहले वोटर से मिली जानकारी के मुताबिक पहला मतदान कई मायनों में अद्भुत था। न कैंडिडेट, न बैलेट पेपर, न पार्टी न वोटर लिस्ट, पहले मतदान में कुछ नहीं था। थे तो सिर्फ वोटर जो श्याम शरण नेगी को बड़ी मशक्क्त से जुटाने पड़े। गुरूजी के अनुसार, कई लोगों ने इंकार कर दिया की पता नई जे गुरु जी क्या करवा रहे कुछ ने बात को समझा तो वोट डाला। कुछ ऐसे भी थे जिनको लिखना नहीं आता था पर मेरी बात सुन, मुझ पर विश्वास कर उन्होंने अंगूठा लगाया और पर्ची डाल दी। इस लिहाज से देखा जाए तो यह मतदान अपने आप में अनूठा था।  

Anil dev

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