इलेक्शन डायरी: राजीव गांधी के दौर में शुरू हुई कम्प्यूटर क्रांति

punjabkesari.in Friday, Apr 12, 2019 - 10:45 AM (IST)

इलेक्शन डेस्क(नरेश कुमार): देश का हर छोटे से बड़ा काम कम्प्यूटर पर निर्भर है और भारत के आई.टी. इंजीनियर्स आज दुनिया भर में डंका बजा रहे हैं लेकिन आजादी के कई साल बाद भी भारत इस मामले में कई देशों के मुकाबले बहुत पिछड़ा हुआ था। देश 1947 में आजाद हुआ और 1978 तक देश में महज 1,000 कम्प्यूटर थे और इसका कारण इन पर लगने वाला टैक्स था। 
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इंदिरा गांधी के निधन के बाद जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कम्प्यूटर की अहमियत को समझा और देश में कम्प्यूटर के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देने के लिए कई बड़े काम किए। राजीव गांधी का बड़ा फैसला पूरी तरह से असैंबल किए गए कम्प्यूटर के आयात को मंजूरी देने का था। आयात को मंजूरी देने के साथ-साथ सरकार ने कम्प्यूटर हार्डवेयर के आयात पर लगने वाले आयात शुल्क में भारी कमी की। 
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इसका असर यह हुआ कि देश में अचानक कम्प्यूटर का इस्तेमाल बढ़ा और 1990 तक देश में कम्प्यूटरों की संख्या बढ़ कर 80 हजार पहुंच गई। देश में आई.टी. कंपनियों को जब कम्प्यूटर आयात की मंजूरी मिली तो कंपनियों ने सॉफ्टवेयर का निर्माण करना शुरू कर दिया और 1990 तक भारत का सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट 128 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। 
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इस बीच देश के नेताओं ने भी इसकी अहमियत समझी और रेलवे में टिकटों की रिजर्वेशन में कम्प्यूटर का इस्तेमाल शुरू किया गया जिससे धांधली रुकने के साथ-साथ लोगों को सुविधा भी मिलने लगी। राजीव गांधी के शासनकाल में ही देश में महानगर टैलीकॉम निगम लिमिटेड (एम.टी.एन.एल.) का गठन हुआ और देश भर में पब्लिक कॉल आफिस लगाने का अभियान शुरू हुआ और लोग टैलीफोन के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े। इसके अलावा राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते ही विभिन्न विभागों में तकनीक के जरिए योजनाओं को लागू करने का अभियान शुरू हुआ।    


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Pardeep

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