मुस्लिम परिवारों ने अपनाई नई परंपरा, केक पर बकरा और सांकेतिक कुर्बानी से मनाई ईको-फ्रेंडली ईद

punjabkesari.in Sunday, Jun 08, 2025 - 10:47 AM (IST)

नेशनल डेस्क: बकरीद यानी ईद-उल-अजहा का त्योहार परंपरागत रूप से कुर्बानी से जुड़ा होता है। लेकिन इस बार गाजियाबाद के लोनी विधानसभा क्षेत्र में कुछ ऐसा हुआ जो देशभर के लिए एक नई मिसाल बन गया। यहां कई मुस्लिम परिवारों ने परंपरागत कुर्बानी की जगह केक पर बकरे की फोटो लगाकर सांकेतिक रूप से बकरीद मनाई। इस खास पहल के पीछे प्रेरणा बनी लोनी के विधायक नंदकिशोर गुर्जर की अपील। उन्होंने कुछ दिन पहले क्षेत्र के लोगों से आग्रह किया था कि इस बार बकरीद पर्यावरण के हित में और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ईको फ्रेंडली तरीके से मनाई जाए। विधायक की इस अपील का असर साफ दिखा जब कई मुस्लिम परिवारों ने इस परंपरा को सांकेतिक रूप देकर केक के ऊपर बकरे की फोटो लगाई और उसी के साथ बकरीद का जश्न मनाया। लोनी के कई मुस्लिम परिवारों ने बताया कि उन्होंने इस बार बकरे की कुर्बानी न देकर विधायक नंदकिशोर गुर्जर की सलाह को अपनाया। उनका कहना है कि वे विधायक को अपना आदर्श मानते हैं और जो उन्होंने सुझाव दिया वो न सिर्फ समाज के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहतर है।

विधायक की अपील पर मिला खास समर्थन

इस मौके पर विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने बड़ा बयान देते हुए कहा “मोहम्मद साहब शाकाहारी थे। उन्होंने मांस से बीमारी फैलने और दूध को शिफा बताया था। जो मुस्लिम इस बात को नहीं मानते और मांस की कुर्बानी करते हैं वे इस्लाम के और मोहम्मद साहब के दुश्मन हैं।” विधायक के इस बयान ने नए विमर्श को जन्म दिया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि लोनी के मुसलमानों ने मोहम्मद साहब के सिद्धांतों को अपनाया है और ईको फ्रेंडली बकरीद मनाकर पूरे देश को प्रेरणा दी है। विधायक ने यह भी बताया कि कई देशों में अब परंपरागत कुर्बानी पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मोरक्को के प्रधानमंत्री ने भी इस बार कुर्बानी को बैन किया है। उन्होंने कहा कि "गाजियाबाद के मुसलमानों ने यह दिखा दिया है कि धर्म और परंपरा को आधुनिक सोच और पर्यावरण की चिंता के साथ भी जोड़ा जा सकता है।"

बच्चों और महिलाओं ने भी जताई खुशी

लोनी के कई घरों में जब केक काटकर सांकेतिक कुर्बानी दी गई तो बच्चों में काफी उत्साह था। उन्होंने बताया कि इस तरीके से वे भी खुशी से त्योहार मना सके और किसी जानवर को नुकसान भी नहीं पहुंचा। महिलाओं ने भी कहा कि यह तरीका साफ-सुथरा, सुरक्षित और आपसी सौहार्द बढ़ाने वाला है।

प्रदूषण और पशु हिंसा से राहत

ईको फ्रेंडली बकरीद से कई फायदे भी जुड़े।

  • स्वास्थ्य: मांस से फैलने वाली बीमारियों से बचाव

  • पर्यावरण: जानवरों के कटने से होने वाले जैव प्रदूषण की रोकथाम

  • समाज: सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश

विधायक ने कहा कि अगर बाकी जिलों में भी इसी तरह ईद मनाई जाए तो बीमारियों और पर्यावरण संकट से काफी हद तक बचा जा सकता है।

 

 


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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