Dussehra Special: ''खलनायक'' रावण नहीं, लंकेश्वर था महान शासक! जानें रावण के वो 5 गुण जो आप नहीं जानते
punjabkesari.in Thursday, Oct 02, 2025 - 12:49 PM (IST)

दशहरे पर रावण का दूसरा पहलू: महान ज्ञानी, न्यायप्रिय राजा, पर अहंकार ने सब डुबोया
नेशनल डेस्क: विजयदशमी यानि की दशहरे को बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। पूरे देश में यह त्याहोर काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है। हालाँकि रावण को 'राक्षसों का राजा' और 'खलनायक' माना जाता है, लेकिन शास्त्रों और ग्रंथों में उसे एक अद्भुत शासक के रूप में भी जिक्र किया गया है। रावण एक उच्च कोटि का विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ और अपनी प्रजा के लिए न्यायप्रिय राजा था। आइए जानते हैं लंका के राजा रावण का वह पहलू, जो अक्सर चर्चा में नहीं आता।
सोने की लंका का सर्वोच्च शासक 'लंकेश्वर'
वाल्मीकि रामायण और कई पुराणों में रावण को 'लंकेश्वर' यानी लंका का सर्वोच्च शासक कहा गया है। उसकी नगरी सोने की लंका अपनी वास्तुकला, समृद्धि और बेहतर व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध थी। माना जाता है कि इस नगरी का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था, जिसे रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर को हराकर अपने अधिकार में ले लिया था। हनुमान जी जब लंका पहुँचे थे, तो वे वहाँ की भव्यता और समृद्धि देखकर हैरान रह गए थे। लंका की दीवारें सोने और मणियों से जड़ी थीं।
प्रजा के लिए आदर्श राजा
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समृद्ध और भयमुक्त प्रजा: रामचरितमानस और कम्ब रामायण जैसे ग्रंथों के अनुसार, रावण के शासन में प्रजा सुखी, समृद्ध और भयमुक्त थी. लंका में गरीबी ('दारिद्र') और डर का नामोनिशान नहीं था।
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कुशल प्रशासन: रावण अपनी प्रजा से कर (टैक्स) लेता था, लेकिन बदले में उन्हें सुरक्षा, व्यापार और समृद्धि सुनिश्चित करता था। उसकी प्रजा को उससे कोई शिकायत नहीं थी, क्योंकि उसने प्रशासनिक रूप से सभी को संरक्षण दिया था। उसका दमन केवल शत्रुओं और देवताओं के प्रति था, न कि अपनी प्रजा पर।
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उच्च शिक्षा का माहौल: शिव पुराण और पद्म पुराण रावण को महान शिवभक्त, विद्वान और संगीतज्ञ बताते हैं। उसने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। आयुर्वेद और ज्योतिष में भी उसकी गहरी विद्वत्ता थी। लंका में उच्च शिक्षा और विद्या का वातावरण था।
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सामरिक शक्ति: रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ और युद्धनीति का जानकार था। उसने लंका को समुद्र-मार्ग से सुरक्षित किया और बाहरी आक्रमणकारियों के विरुद्ध कठोर नीति अपनाई, जिससे प्रजा को आक्रमण का भय नहीं था।
रावण की व्यक्तिगत कमजोरियाँ बनीं पतन का कारण
प्रजा-नीति के मामले में रावण भले ही श्रेष्ठ था, लेकिन उसका व्यक्तिगत अहंकार और महिलाओं के प्रति गलत दृष्टिकोण उसके चरित्र की सबसे बड़ी कमजोरी थी। सीता हरण इसी अहंकार का सबसे बड़ा उदाहरण था। उसने शक्ति और बल पर इतना भरोसा किया कि 'धर्म की मर्यादा' तोड़ दी। हालाँकि उसका अहंकार देवताओं और ऋषियों के विरुद्ध था, लेकिन इसका अंतिम परिणाम पूरे राज्य और उसकी प्रजा को भुगतना पड़ा। विद्वानों और आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार रावण अपनी प्रजा के लिए एक आदर्श और संपन्न शासक था, लेकिन उसकी व्यक्तिगत कमजोरियों (अहंकार और कामासक्ति) के कारण उसका पतन हुआ। उसकी गलतियों की सज़ा उसे ही नहीं, बल्कि उसके पूरे राज्य और प्रियजनों को भी मिली। यहाँ तक कि मरणासन्न रावण से भगवान राम ने लक्ष्मण को राज्य और नीति की शिक्षा लेने के लिए कहा था।